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विकास को गति देगा एक साथ चुनाव

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार संविधान की अवधारणा के अनुरूप है। देश में संविधान लागू होने के बाद 1951-52 में एक साथ चुनाव कराए गए। 1967 तक लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव कराए गए थे, लेकिन इसके बाद यह प्रक्रिया टूट गई

by शिवराज सिंह चौहान
Jan 7, 2025, 04:13 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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भारत की लोकतांत्रिक परंपरा अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। स्वतंत्रता, समानता, स्वीकार्यता और समावेशिता के मूल्य हमारे लोकतंत्र की आत्मा हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने जिन मूल्यों को संविधान का आधार बनाया, उन्हें आत्मसात कर आज भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के सिद्धांतों और संविधान के आदर्शों का अनुसरण कर विकास, सौहार्द, जन-भागीदारी और सामाजिक न्याय की नई इबारत लिखी है। बीते समय में संविधान की मूल भावना को अक्षुण्ण रखते हुए भारत नए बदलावों का साक्षी बना है। एक ओर जहां कांग्रेस ने निरंतर संविधान की अवमानना और संवैधानिक मूल्यों के साथ छेड़छाड़ की है। वहीं, दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने संवैधानिक मूल्यों को अधिक सुदृढ़ बनाया है।

शिवराज सिंह चौहान
कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री

भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय लोकतंत्र को अधिक सशक्त, कुशल और संसाधन सम्पन्न बनाने के लिए कई ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं। भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कई आवश्यक संशोधन भी किए हैं, और कई ऐसे प्रावधान जिन्हें कांग्रेस की सरकारों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए जोड़ा था, उन्हें भी सुधारा है। भारत में स्वतंत्रता के बाद से अब तक की लोकतांत्रिक यात्रा में चुनाव प्रक्रिया ने अद्वितीय मिसाल कायम की है। किन्तु समय के साथ कई चुनौतियां और कमियां भी सामने आईं, जो देश के विकास और संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं।

1952 में देश में पहला चुनाव हुआ था, उस समय देश में एक साथ चुनाव हुए थे , जो कि 1967 तक एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा के साथ होते रहे लेकिन कांग्रेस ने अपने स्वार्थों के लिए विधानसभाओं को भंग करना शुरू कर दिया और राज्यों में अलग-अलग चुनाव कराने की परिपाटी शुरू हो गई। कांग्रेस के इस एक गलत कदम के कारण यह समस्या इतनी विकराल हो गई कि आज हालत यह है कि हमारे देश में कुछ हो या न हो, एक चीज जरूर लगातार चलती रहती है, पांचों साल, बारह महीने अगले चुनाव की तैयारी और चुनाव। आप इसे इस तरह समझिए, अभी नवंबर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान की विधानसभा के चुनाव हुए। चार महीने बाद लोकसभा के चुनाव हुए। वो चुनाव खत्म नहीं हुए कि, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव शुरू हो गए और अभी सांस भी नहीं ली कि, दिल्ली में उम्मीदवारों की घोषणा हो रही है और बिहार चुनाव की तैयारियां हो रही है।

देश की प्रगति में बाधा

ये बार-बार होने वाला चुनाव देश की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बन गया है। ये विकास के लिए बाधा है। ये जनकल्याणकारी योजनाओं को रोकता है। सारे नेता चाहे प्रधानमंत्री जी हों, केन्द्रीय मंत्री हों, राज्यों के मुख्यमंत्री हों, सांसद हों, विधायक हों, सभी चुनाव की तैयारियों में लगे रहते हैं। जिन राज्यों में चुनाव नहीं होता, वहां भी दूसरे राज्यों के कार्यकर्ता, नेता जाते हैं और केवल राजनेता और कार्यकर्ता ही नहीं जाते, पर्यवेक्षक बनकर दूसरे प्रदेशों से अधिकारी भी वहां पहुंचते हैं। आचार संहिता लागू हो जाती है, इसके कारण तीन-चार महीने कोई काम नहीं हो पाता। विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं तो चुनाव में खर्च भी होता है। केवल चुनाव आयोग के माध्यम से चुनाव को संचालित करने का खर्चा नहीं होता। राजनैतिक दल और उम्मीदवार भी पैसा खर्च करते हैं। पैसे के साथ-साथ योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, विकास की सारी योजनाएं रुक जाती हैं। इसके साथ ही अगर लंबी अवधि की कोई नीति बनानी हो, बड़े फैसले लेने हो तो कई बार पार्टियां इसलिए डरती हैं कि, दूसरे राज्यों में चुनाव हैं तो उसमें नुकसान ना हो जाए।

संसाधनों की होगी बचत

देश लंबे समय से इन विकराल समस्याओं से जूझ रहा है। इसलिए ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की नितांत आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र्र मोदी ने इस समस्या को समझा और इसे दूर करने के लिए सदन में विधेयक लेकर आए। इस पर देश में चर्चा शुरू हुई। देश की प्रगति में बाधक अनेक समस्याओं का समाधान करने के लिए मोदी सरकार ने ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ के लिए कदम उठाया है। जिसका उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को एक साथ कराना है। इससे संसाधनों की बचत तो होगी, साथ ही प्रशासनिक और राजनीतिक स्थिरता भी सुनिश्चित होगी। कांग्रेस का तो संवैधानिक नियमों और प्रक्रियाओं का निरंतर उल्लंघन करने का इतिहास रहा है। कांग्रेस ने नागरिकों के मौलिक अधिकार कम किए, अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार किए गए। देश पर आपातकाल का कलंक थोपा। कांग्रेस ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए सदैव देशहित को पीछे छोड़ने का पाप किया। आज वन नेशन, ‘वन इलेक्शन’, देश की आवश्यकता है। लेकिन ये बड़ी विचित्र बात है कि कांग्रेस और इंडी गठबंधन के साथी इसे नहीं समझ पा रहे हैं, इसे लेकर अनावश्यक भ्रम फैलाने के प्रयास किये जा रहे है, जबकि ये राष्ट्र हित में हैं, देश की तरक्की के लिए जरूरी है।

विकास कार्यों को मिलेगा समय

वन नेशन-वन इलेक्शन लागू होने से प्रधानमंत्री जी की ऊर्जा और समय की बचत होगी, राज्यों में अलग-अलग चुनाव होने से उन्हें भी प्रचार की लिए जाना पड़ता है, उनका वो समय बचेगा। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दोनों ही हमेशा चुनाव की तैयारी में रहते हैं, ऐसे में देश के विकास के लिए जो ऊर्जा लगनी चाहिए वह चुनाव की तैयारी में लग जाती है। प्रधानमंत्री जी के साथ ही मुख्यमंत्री, मंत्री और दूसरे राजनेताओं का समय भी विकास कार्यों में लग सकेगा। अलग-अलग चुनाव होने से एक समस्या ये भी है कि एक ही व्यक्ति दो-दो, तीन-तीन बार चुनाव लड़ लेता है, बाकि को अवसर ही नहीं मिलता। जब चुनाव एक साथ होंगे तो नये लोगों को ज्यादा अवसर मिलेंगे। कई बार यह भी देखने को मिलता है कि बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं में भी वैसा उत्साह नहीं रहता, उनमें उदासीनता का भाव आ जाता है। उससे भी मुक्ति मिलेगी।

समय अधिक मिलने के कारण चुनाव आयोग भी जन जागरूकता के लिए अधिक नवाचार कर पाएगा। वोटिंग प्रतिशत भी निश्चित तौर पर बढ़ जाएगा। अभी एक के बाद एक चुनाव होने से चुनाव आयोग के अधिकारी-कर्मचारी भी उतनी गंभीरता और सजगता से काम नहीं कर पाते, जिससे कोड आफ कंडक्ट का सही से पालन कराने में समस्याएं आती है। समस्या भी दूर हो जाएगी। आमतौर पर देखा गया है कि जब-जब चुनाव आते हैं आपसी वैमनस्य उभरने लगते हैं, आपसी लड़ाई-झगड़ों की घटनाएं भी घटती हैं। एक साथ चुनाव होने से इनसे मुक्ति मिलेगी, असामाजिक तत्वों पर रोक लगेगी और चुनावी तनाव भी कम होगा।

आज जब भारत विकसित देशों की पंक्ति में खड़ा हो रहा है, तब ऐसे में यह आवश्यक है कि विकास की क्रमिक निरंतरता को बनाए रखने, शासन को सुव्यवस्थित करने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को उसके अनुकूल बनाने के प्रयासों को अमलीजामा पहनाया जाए। अब समय आ गया है और जनता भी चाहती है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हों ताकि सभी राजनीतिक दल देश के विकास और जनता के कल्याण के लिए काम कर सकें।

बीते 10 वर्षों में प्रधानमंत्री जी ने संविधान को पवित्र ग्रंथ और पथ प्रदर्शक मानकर अनेक ऐसे निर्णय लिए जिनसे विश्व में भारत की लोकतांत्रिक परंपरा का मान बढ़ा। इस दौरान संविधान में संशोधन भी किए गए, लेकिन संविधान की भावना के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ देश की एकता, अखंडता और उज्ज्वल भविष्य के लिए। अगर हम पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल को देखें तो यह स्पष्ट होगा कि भाजपा ही देश को सही दिशा दिखा रही है। कांग्रेस ने तो संविधान का दुरुपयोग कर अपना स्वार्थ ही सिद्ध किया। मोदी सरकार की संविधान के प्रति प्रतिबद्धता आजादी के अमृतकाल में जन-जन के कल्याण और भारत के उत्थान का आधार बनी है।

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