संसद में गत वर्ष 13-14 दिसंबर को ‘भारतीय संविधान के 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा’ पर एक विशेष चर्चा आयोजित की गई थी। 15 घंटे 43 मिनट तक चली इस चर्चा में 62 सदस्यों ने भाग लिया। 14 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने संसद को संबोधित करते हुए कहा कि संविधान का मान-सम्मान ही देश का अभिमान है। प्रस्तुत हैं प्रधानमंत्री के संबोधन के संपादित अंश-
संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर यह उत्सव मनाने का पल है। जब देश आजाद हुआ, तब भारत के लिए जो संभावनाएं व्यक्त की गई थीं, उन्हें निरस्त करते हुए भारत का संविधान हमें यहां तक ले आया है। संविधान निर्माता यह नहीं मानते थे कि भारत का जन्म 1947 में हुआ, वह यह नहीं मानते थे कि भारत में लोकतंत्र 1950 से है। वे यहां की महान परंपरा, महान संस्कृति, महान विरासत को मानते थे और हजारों साल की यात्रा के प्रति सजग थे। भारत का लोकतांत्रिक अतीत बहुत समृद्ध रहा है। विश्व के लिए प्रेरक रहा है। हम सिर्फ विशाल लोकतंत्र ही नहीं, लोकतंत्र की जननी भी हैं।
लोकतंत्र का इतिहास
मैं तीन महापुरुषों के कोट इस सदन के सामने प्रस्तुत करना चाहता हूं। राजऋषि पुरुषोत्तमदास टंडन जी ने कहा था, ‘‘सदियों के बाद देश में एक बार फिर ऐसी बैठक बुलाई गई है। यह हमारे गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है। जब हम स्वतंत्र हुआ करते थे, तो सभाएं आयोजित की जाती थीं, जिसमें विद्वान लोग देश के महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करने के लिए मिला करते थे।’’ संविधान सभा के सदस्य डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था कि इस महान राष्ट्र के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था नई नहीं है। हमारे यहां यह इतिहास की शुरूआत से ही है। तीसरा कोट बाबासाहेब आंबेडकर का है, जिन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं है कि भारत को पता नहीं था कि लोकतंत्र क्या होता है। एक समय था, जब भारत में कई गणतंत्र हुआ करते थे।
महिला शक्ति का योगदान
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में नारी शक्ति ने बड़ी भूमिका निभाई थी। संविधान सभा में अलग-अलग क्षेत्र की 15 महिला सदस्य थीं। मौलिक चिंतन के आधार पर उन्होंने संविधान सभा की चर्चा को समृद्ध किया था। संविधान में उन्होंने जो सुझाव दिए, उनका संविधान के निर्माण पर बहुत बड़ा प्रभाव रहा। हमारे लिए गर्व की बात है कि दुनिया के कई देश आजाद हुए, उनके संविधान भी बने, लोकतंत्र भी चला, लेकिन महिलाओं को अधिकार देने में दशकों लग गए। लेकिन हमारे यहां शुरुआत से ही महिलाओं को वोट का अधिकार संविधान में दिया गया है।
जी-20 की अध्यक्षता के दौरान हमने विश्व के सामने वीमेन लेड डेवलपमेंट का विचार रखा था। हम सभी ने एक स्वर से नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर भारतीय लोकतंत्र में महिला शक्ति की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए। आज हमारी हर बड़ी योजना के केंद्र में महिलाएं हैं। हम संविधान का 75वां वर्ष मना रहे हैं तो यह संयोग है कि भारत के राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला विराजमान हैं। यह हमारे संविधान की भावना की अभिव्यक्ति भी है।
सदन में भी महिला सांसदों की संख्या और उनका योगदान लगातार बढ़ रहा है। मंत्रिपरिषद में भी उनका योगदान बढ़ रहा है। आज सामाजिक, राजनीतिक, शिक्षा व खेलकूद का क्षेत्र हो, रचनात्मक दुनिया हो, जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं का योगदान देश के लिए गौरव दिलाने वाला रहा है। विज्ञान के क्षेत्र में खासकर, अंतरिक्ष तकनीक में उनके योगदान की सराहना हर हिंदुस्तानी बड़े गर्व के साथ कर रहा है। इन सबसे बड़ी प्रेरणा हमारा संविधान है।
एकता की भावना
भारत बहुत तीव्र गति से विकास कर रहा है और बहुत जल्द विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में है। 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प है कि जब हम आजादी की शताब्दी बनाएंगे, तब देश विकसित होगा। लेकिन इस संकल्प सिद्धि के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है—भारत की एकता। हमारा संविधान भारत की एकता का आधार है। संविधान निर्माण में देश के बड़े-बड़े दिग्गज, स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार, विवेचक, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद्, कई क्षेत्रों के पेशेवर, मजदूर नेता, किसान नेता सहित समाज के हर वर्ग के प्रतिनिधित्व था। सभी भारत की एकता के प्रति बहुत ही संवेदनशील थे। बाबासाहब आंबेडकर ने कहा था- समस्या यह है कि देश में जो विविध जनमानस है, उसे किस तरह एक मत किया जाए। कैसे देश के लोगों को एक-दूसरे के साथ निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जाए, जिससे देश में एकता की भावना स्थापित हो। लेकिन आजादी के बाद विकृत मानसिकता के कारण या स्वार्थवश देश की एकता के मूल भाव पर प्रहार हुआ। ‘विविधता में एकता’ भारत की विशेषता रही है। लेकिन गुलामी की मानसिकता में पले-बढ़े, भारत का भला न देख पाने वाले लोगों और जिनके लिए हिंदुस्थान 1947 में ही पैदा हुआ, वे विविधता में विरोधाभास ढूंढते रहे। विविधता के इस अमूल्य खजाने को सेलिब्रेट करने के बजाए उस विविधता में जहरीले बीज बोने के प्रयास करते रहे, ताकि देश की एकता को चोट पहुंचे।
हमें विविधता के उत्सव को अपने जीवन का अंग बनाना होगा और वही बाबासाहेब आंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। पिछले 10 साल से हमारे निर्णयों की प्रक्रिया को देखेंगे, तो हम भारत की एकता को मजबूती देने का निरंतर प्रयास करते रहे हैं। अनुच्छेद- 370 देश की एकता में दीवार था। इसलिए हमने इसे जमीन में गाड़ दिया, क्योंकि देश की एकता हमारी प्राथमिकता है।
एक भारत के लिए कदम
अगर आर्थिक रूप से आगे बढ़ना है, हमारी व्यवस्थाओं और विश्व को भी निवेश के लिए लाना है, तो भारत में अनुकूल व्यवस्थाएं चाहिए। देश में लंबे अरसे तक जीएसटी को लेकर चर्चा चलती रही। इकोनॉमिक यूनिटी में जीएसटी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। पहले की सरकार का भी कुछ योगदान है। हमने इसे आगे बढ़ाया और अब यह ‘वन नेशन, वन टैक्स’ की भूमिका को आगे बढ़ा रहा है।
इसी तरह, एकता के भाव को मजबूत करने के लिए हम ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’ लेकर आए। गरीबों, सामान्य नागरिकों को, जहां वे काम कर रहे हैं, वहां मुफ्त इलाज मिले, इसके लिए ‘वन नेशन, वन हेल्थ कार्ड’ लागू किया है। एकता को पुष्ट करने के लिए हमने ‘आयुष्मान भारत’ की घोषणा की है। देश के एक हिस्से में बिजली थी, लेकिन बिजली आपूर्ति नहीं हो रही थी। उसके कारण दूसरे इलाके में अंधेरा था। एकता के मंत्र के साथ हमने ‘वन नेशन, वन ग्रिड’ को परिपूर्ण कर दिया है। देश में बुनियादी ढांचा विकास में भी भेदभाव होता था। हमने उस भेदभाव को खत्म करके एकता को मजबूत किया। पूर्वोत्तर हो या जम्मू-कश्मीर, हिमालय की गोद के इलाके हों या रेगिस्तान के सटे हुए इलाके, हमने बुनियादी विकास को सामर्थ्य देने का प्रयास किया है।
युग बदल चुका है। हम नहीं चाहते कि डिजिटल क्षेत्र में की स्थिति बन जाए। डिजिटल इंडिया की सफलता उसी दिशा में एक कदम है। हमने तकनीक को deocrtize करने का प्रयास किया है। यह उसी का भाग है जो दिशा हमारे संविधान निर्माताओं ने दिखाई है। हमने हिंदुस्थान की हर पंचायत तक आॅप्टिकल फाइबर ले जाने का प्रयास किया है ताकि भारत की एकता को मजबूती मिले। संविधान का जोर एकता पर है और उसी को ध्यान में रखते हुए हमने मातृभाषा की महत्ता को स्वीकार किया है। मातृभाषा को दबाकर हम देश के जनमानस को सांस्करित नहीं कर सकते। इसलिए नई शिक्षा नीति में भी मातृभाषा पर बहुत जोर दिया है। अब मेरे देश का गरीब का बच्चा भी मातृभाषा में पढ़ाई कर डॉक्टर, इंजीनियर बन सकता है। देश भर में एक भारत श्रेष्ठ भारत के अभियान के साथ देश की एकता को मजबूत करने और नई पीढ़ी को संस्कारित करने का काम चल रहा है। समाज की निकटता को सशक्त करने के लिए काशी तमिल संगमम और तेलुगु काशी संगमम जैसे सांस्कृतिक प्रयास भी चल रहे हैं।
कांग्रेस का पाप नहीं धुलेगा
जब संविधान 25 वर्ष पूरे कर रहा था, तब आपातकाल लाया गया। संवैधानिक व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया। देश को जेल बना दिया गया। नागरिकों के अधिकारों को लूट लिया गया। प्रेस की स्वतंत्रता पर ताले लगा दिए गए। कांग्रेस के माथे पर यह पाप है, जो कभी धुलने वाला नहीं है। लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया था। संविधान निर्माता की तपस्या को मिट्टी में मिलाने की कोशिश की गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के दौरान 26 नवंबर, 2000 को संविधान का 50वां वर्ष मनाया गया था। उन्होंने एकता, जन भागीदारी, साझेदारी के महत्व पर बल देते हुए संविधान की भावना को जीने का प्रयास किया था, जनता को जगाने का भी प्रयास किया था।
मैं जब मुख्यमंत्री था, तब गुजरात में संविधान की 60वीं वर्षगांठ मनाने का निर्णय लिया था। भारत के इतिहास में पहली बार हाथी पर संविधान गौरव यात्रा निकाली गई और राज्य का मुख्यमंत्री उस संविधान के नीचे पैदल चल रहा था। देश को संविधान का महत्व समझाने का सांकेतिक प्रयास कर रहा था। जब मैंने लोकसभा के पुराने सदन में 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की बात कही थी, तब एक वरिष्ठ नेता ने कहा था- 26 जनवरी तो है, 26 नवंबर की क्या जरूरत है? उनके मन में क्या भावना थी?
कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। 75 वर्ष में 55 वर्ष एक ही परिवार ने राज किया है। इस परिवार की कुविचार, कुरीति, कुनीति की परंपरा निरंतर चल रही है। इस परिवार ने हर स्तर पर संविधान को चुनौती दी है। इसलिए देश को यह जानने का अधिकार है कि क्या-क्या हुआ। 1947 से 1952 तक इस देश में चुनी हुई सरकार नहीं थी। न तो राज्यसभा का गठन हुआ था और न ही राज्यों में चुनाव हुए थे। देश में एक अस्थायी व्यवस्था थी। लेकिन अध्यादेश लाकर संविधान को बदला गया और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला किया गया। यह संविधान निर्माता का भी अपमान था। जब संविधान सभा में अपनी मनमानी नहीं कर पाए, पिछले दरवाजे से किया। उन्होंने यह पाप तब किया, जब वे चुनी हुई सरकार के प्रधानमंत्री नहीं थे। (1951 की शुरूआत में जब चुनाव बहुत नजदीक थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश के सभी मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था।) उन्होंने लिखा था- अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए। उस समय राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और लोकसभा अध्यक्ष ने भी चेताया था कि यह गलत हो रहा है। आचार्य कृपलानी, जय प्रकाश नारायण जैसे महान कांग्रेसी लोगों ने भी उन्हें रोकने की कोशिश की थी, लेकिन नेहरू जी का अपना संविधान चलता था। उन्होंने इतने वरिष्ठ महानुभावों की सलाह मानी नहीं, उन्हें दरकिनार किया।
कांग्रेस के मुंह संविधान संशोधन का ऐसा खून लगा कि समय-समय पर वह संविधान का शिकार करती रही और संविधान की आत्मा को लहू-लुहान करती रही। लगभग 6 दशक में 75 बार संविधान बदला गया। जो बीज देश के पहले प्रधानमंत्री ने बोया था, उसे खाद-पानी श्रीमती इंदिरा गांधी ने दिया। उन्होंने 1971 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को संविधान बदल कर पलट दिया। (इंदिरा सरकार सरकार ने 24वां संशोधन गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त करने के लिए लागू किया था।) उन्होंने यहां तक कहा था कि संसद संविधान के किसी भी अनुच्छेद में जो मर्जी बदलाव कर सकती हैं और अदालत उसकी तरफ देख भी नहीं सकती। अदालत के सारे अधिकारों को छीन लिया गया था। यह पाप 1971 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था। इस परिवर्तन ने इंदिरा सरकार को मौलिक अधिकारों को छीनने का और न्यायपालिका पर नियंत्रण करने का अधिकार दिया। इसलिए जब (रायबरेली सीट पर चुनाव में अनियमितता को लेकर राजनारायण की याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा) इंदिरा जी के असंवैधानिक तरीके से चुनाव लड़ने के कारण अदालत ने चुनाव को खारिज कर दिया और सांसद पद छोड़ने की नौबत आई तो उन्होंने गुस्से में आकर देश पर आपातकाल थोप दिया। यही नहीं, उन्होंने लोकतंत्र का गला घोंटते हुए संविधान का दुरुपयोग किया। 1975 में 39वां संशोधन कर उन्होंने क्या किया? उन्होंने ऐसा कर दिया कि कोई राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अध्यक्ष के खिलाफ अदालत में जा ही नहीं सकता।
आपातकाल में लोगों के अधिकार छीन लिए गए। हजारों लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया। न्यायपालिका का गला घोंट दिया गया। अखबारों की स्वतंत्रता पर ताले लगा दिए गए। ‘कमिटेड ज्यूडिशरी’ के विचार को लागू करने के लिए उन्होंने पूरी ताकत दी। उनमें इतना गुस्सा भरा हुआ था कि जिस जस्टिस एचआर खन्ना ने उनके चुनाव के खिलाफ निर्णय दिया था, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया। वे वरिष्ठता के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले थे। उन्होंने संविधान का सम्मान करते हुए इंदिरा गांधी को सजा सुनाई थी। यह ‘संवैधानिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया’ रही इंदिरा गांधी की।
यहां ऐसे कई दल बैठे हैं, जिनके मुखिया के जेलों में ठूंस दिया गया था। अब इनकी मजबूरी है कि उनके साथ बैठे हैं। संविधान को चूर-चूर करने की परंपरा यहीं नहीं रुकी, जो नेहरू ने शुरू की थी। इसे इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने आगे बढ़ाया। उन्होंने ‘सबको समानता, सबको न्याय’ की संविधान की भावना को चोट पहुंचाई। (गुजारा भत्ता के लिए मुस्लिम तलाकशुदा महिला) शाहबानों के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था। सर्वोच्च न्यायालय से एक वृद्ध महिला को उसका हक मिला था। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को नकार दिया। उन्होंने वोट बैंक की राजनीति की खातिर संविधान की भावना की बलि चढ़ा दी और कट्टरपंथियों के सामने सिर झुका दिया। न्याय के लिए तड़प रही एक वृद्ध महिला का साथ देने के बजाय उन्होंने कट्टरपंथियों का साथ दिया। संसद में कानून बनाकर के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को एक बार फिर पलट दिया गया।
जो परंपरा नेहरू ने शुरू की, जिसे इंदिरा गांधी ने आगे बढ़ाया और राजीव गांधी ने उसे ताकत दी, उसे खाद-पानी दिया। क्यों? क्योंकि संविधान से खिलवाड़ करने का लहू उनके मुंह लग गया था। उस परिवार की अगली पीढ़ी भी इसी खिलवाड़ में लगी हुई है। एक किताब में मुझसे पहले जो प्रधानमंत्री थे, उनको किया गया है। इसमें मनमोहन सिंह ने कहा है, मुझे यह स्वीकार करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र है। सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है। इस तरह, इन्होंने संविधान निर्माताओं, चुनी हुई सरकार और चुने हुए प्रधानमंत्री की कल्पना और संविधान की हत्या की। इन्होंने प्रधानमंत्री के ऊपर एक गैर संवैधानिक, जिसने कोई शपथ भी नहीं ली, सलाहकार परिषद को बैठा दिया और उसे अघोषित रूप से पीएमओ से भी ऊपर का दर्जा दे दिया। आगे की एक और पीढ़ी ने क्या किया? इस देश की जनता संविधान के तहत सरकार चुनती है और उस सरकार का मुखिया कैबिनेट बनाता है। लेकिन अहंकार से भरे लोगों ने पत्रकारों के सामने कैबिनेट के निर्णय को फाड़ दिया। हर मौके पर संविधान से खिलवाड़ करना, संविधान को न मानना, इनकी आदत हो गई थी। दुर्भाग्य देखिए, एक अहंकारी व्यक्ति कैबिनेट के निर्णय को फाड़ दे और कैबिनेट अपना फैसला बदल दे, यह कौन-सी व्यवस्था है?
इस तरह, कांग्रेस ने निरंतर संविधान की अवमानना की है। संविधान के महत्व को कम किया है। कांग्रेस का इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है। ये कैसे संविधान के साथ धोखेबाजी करते थे, संवैधानिक संस्थाओं को कैसे नहीं मानते थे। भारत के संविधान का अगर कोई पहला पुत्र है तो यह संसद है। इन्होंने उसका भी गला घोंटने का काम किया। अनुच्छेद-35अ को संसद में लाए बिना देश पर थोप दिया गया। अगर 35अ नहीं होता तो जम्मू-कश्मीर में ऐसे हालात पैदा नहीं होते। राष्ट्रपति के आदेश पर यह काम किया गया और देश की संसद को अंधेरे में रखा गया।
बाबासाहेब के प्रति विद्वेष
यही नहीं, बाबासाहेब आंबेडकर के प्रति भी इनके मन में कितनी कटुता, कितना द्वेष भरा है, मैं विस्तार से इसमें नहीं जाना चाहता हूं। लेकिन जब अटल जी की सरकार थी, तब बाबासाहेब आंबेडकर की स्मृति में एक स्मारक बनवाना तय हुआ था। दुर्भाग्य देखिए, यूपीए की सरकार 10 वर्ष रही, लेकिन उसने न तो यह काम किया और न इसे होने दिया। जब हमारी सरकार आई, अलीपुर रोड पर बाबासाहेब मेमोरियल बनवाया।
1992 में जब चंद्रशेखर की सरकार थी, तब दिल्ली में जनपथ के पास आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर बनाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन 40 वर्ष तक यह योजना कागजों में पड़ी रही। 2014 में जब हमारी सरकार आई तो इसे पूरा किया। बाबासाहेब को ‘भारत रत्न’ देने का काम भी जब कांग्रेस सत्ता से बाहर गई, तब संभव हुआ। यही नहीं, बाबासाहेब आंबेडकर की 125वीं जयंती हमने विश्व के 120 देशों में मनाई। अकेली भाजपा सरकार ने ही बाबासाहेब आंबेडकर की शताब्दी मनाई थी। उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने महू में, जहां बाबासाहेब का जन्म हुआ था, एक स्मारक बनाया था।
तुष्टीकरण के लिए आरक्षण
बाबासाहेब समाज के दबे-कुचले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। उनकी सोच थी कि भारत को अगर विकसित होना है तो इसका कोई भी अंग दुर्बल नहीं रहना चाहिए। इसलिए आरक्षण की व्यवस्था बनी। लेकिन वोट बैंक की राजनीति में खपे हुए लोगों ने मजहब के आधार पर, तुष्टीकरण के नाम पर आरक्षण देना शुरू किया। इसका सबसे बड़ा नुकसान एससी, एसटी और ओबीसी समाज को हुआ है।
नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक, कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने आरक्षण का घोर विरोध किया। आरक्षण के विरोध में लंबी-लंबी चिट्ठियां स्वयं नेहरू जी ने मुख्यमंत्रियों को लिखीं और सदन में आरक्षण के खिलाफ लंबे-लंबे भाषण इन लोगों ने दिए हैं। बाबासाहेब आंबेडकर समता और देश के संतुलित विकास के लिए आरक्षण लेकर के आए तो उसके खिलाफ भी झंडा ऊंचा किया था। दशकों तक मंडल आयोग की रिपोर्ट को डिब्बे में डाले रखा। जब कांग्रेस गई तब जाकर ओबीसी को आरक्षण मिला। यह है कांग्रेस का पाप। अगर समय पर आरक्षण मिला होता तो आज देश में अनेक पदों पर ओबीसी समाज के लोग भी सेवा करते।
जब संविधान का निर्माण चल रहा था, तब संविधान निर्माताओं ने मजहब के आधार पर आरक्षण होना चाहिए कि नहीं, इस पर कई दिनों तक गहन चर्चा की थी। सबका मत था कि भारत जैसे देश की एकता और अखंडता के लिए मजहब, संप्रदाय के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। लेकिन कांग्रेस ने सत्ता की भूख, वोट बैंक और तुष्टीकरण के लिए मजहब के आधार पर आरक्षण का नया खेल खेला है, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। यही नहीं, कुछ जगहों पर आरक्षण दे भी दिया। जब सर्वोच्च न्यायालय से झटके लग रहे हैं, तो अब बहाने बना रहे हैं कि ये करेंगे वो करेंगे। संविधान निर्माताओं की भावनाओं पर गहरी चोट करने का यह निर्ल्लज प्रयास है।
संविधान, लोकतंत्र में आस्था नहीं
संविधान सभा में समान नागरिक संहिता पर लंबी चर्चा के बाद इसे लागू करने का निर्णय लिया गया था। बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, जो लोग संविधान को समझते नहीं हैं, देश को समझते नहीं हैं, सत्ता की भूख के सिवा कुछ पढ़ा नहीं है। उनको पता नहीं है बाबासाहेब ने क्या कहा था। बाबासाहेब ने मजहब के आधार पर बने पर्सनल लॉ को खत्म करने की जोरदार वकालत की थी। संविधान सभा के सदस्य के.एम. मुंशी ने भी समान नागरिक संहिता को राष्ट्र की एकता और आधुनिकता के लिए अनिवार्य बताया था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई बार कहा कि इसे जल्द से जल्द लागू किया जाए। उसने सरकारों को आदेश भी दिए हैं। संविधान और इसके निर्माताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हम पूरी ताकत से इसके लिए लगे हुए हैं, लेकिन कांग्रेस के लोग संविधान निर्माताओं की ही नहीं, सर्वोच्च न्यायालय की भावना का भी अनादर कर रहे हैं। क्योंकि उनकी राजनीति को यह सूट नहीं करता। उनके लिए संविधान पवित्र ग्रंथ नहीं, राजनीति का हथियार है। लोगों को डराने के लिए संविधान को हथियार बनाया जाता है। इसलिए कांग्रेस पार्टी के मुंह से संविधान शब्द शोभा नहीं देता है
कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी अति पिछड़े समाज के थे, लेकिन उनके साथ क्या किया गया? कहते हैं उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया गया। उठा कर फुटपाथ पर फेंक दिया गया। एक परिवार ने पूरी कांग्रेस पार्टी पर कब्जा कर लिया। अपनी पार्टी के संविधान को भी न मानना, लोकतंत्र की प्रक्रिया को न मानना, लोकतंत्र को नकारना और संविधान की आत्मा को तहस-नहस करना कांग्रेस की रगों में रहा है।
संविधान की पवित्रता सर्वोपरि
हमारे लिए संविधान, उसकी शुचिता और पवित्रता सर्वोपरि है। जब-जब हमें कसौटी पर कसा गया, हम तप कर निकले हैं। उदाहरण के लिए, 1996 में सबसे बड़े दल के रूप में भाजपा जीत कर आई। राष्ट्रपति ने संविधान की भावना तहत सबसे बड़े दल को प्रधानमंत्री पद की शपथ के लिए बुलाया और 13 दिन सरकार चली। अगर संविधान में हमारी आस्था नहीं होती तो हम भी सौदेबाजी करके सत्ता सुख भोग सकते थे। लेकिन अटल जी ने सौदेबाजी का रास्ता नहीं, संविधान के सम्मान का रास्ता चुना और 13 दिन बाद इस्तीफा देना स्वीकार कर किया। यही नहीं, 1998 में अटल जी ने सरकार को स्थिर करने के लिए वोटों की खरीद- फरोख्त की बजाए एक वोट से हारना पसंद किया। यह हमारा इतिहास, हमारे संस्कार, हमारी परंपरा है। दूसरी तरफ, अल्पमत की सरकार को बचाने के लिए वोट खरीदे गए। कैश फॉर वोट, जिस पर अदालत ने भी ठप्पा मार दिया। कांग्रेस के लिए सत्ता सुख, सत्ता की भूख यही इतिहास है।
भारतीय संविधान पर रा.स्व.संघ के सरसंघचालक
श्री मोहनराव भागवत के वक्तव्य
‘ऐसी नीतियां चलाकर देश के जिस स्वरूप के निर्माण की आकांक्षा अपने संविधान ने दिग्दर्शित की है, उस ओर देश को बढ़ाने का काम करना होगा।‘ – विजयादशमी उत्सव, नागपुर- 3 अक्तूबर, 2014
इस देश की संस्कृति हम सब को जोड़ती है, यह प्राकृतिक सत्य है। हमारे संविधान में भी इस भावनात्मक एकता पर बल दिया गया है। हमारी मानसिकता इन्हीं मूल्यों से ओतप्रोत है।
(संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष समापन समारोह, नागपुर, 9 जून, 2016)
हमारे प्रजातांत्रिक देश ने एक संविधान को स्वीकार किया है। वह संविधान हमारे लोगों ने तैयार किया है। हमारा संविधान हमारे देश की चेतना है। इसलिए उस संविधान के अनुशासन का पालन करना सबका कर्तव्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसको पहले से मानता है। (भविष्य का भारत : विज्ञान भवन, नई दिल्ली, 18 सितंबर, 2018)
भारत के बच्चों को, जब वे जीवन के प्रारंभिक चरण में होते हैं, संविधान की प्रस्तावना, संविधान में नागरिक कर्तव्य, संविधान में नागरिक अधिकार और अपने संविधान के मार्गदर्शक अर्थात् नीति-निर्देशक तत्व, ये सब ठीक से पढ़ाने चाहिए। क्योंकि यही धर्म है। (हिन्दी मासिक पत्रिका ‘विवेक’ को साक्षात्कार, 9 अक्तूबर, 2020)
संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाए बिना वास्तविक और टिकाऊ परिवर्तन नहीं आएगा। ऐसी चेतावनी पूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने हम सबको दी थी।
(विजयादशमी उत्सव, नागपुर, 5 अक्तूबर, 2022)
‘संविधान पर चर्चा संकल्प लेने का पल’
राज्यसभा में गत16 और 17 दिसंबर को संविधान 17 घंटे 41 मिनट चर्चा हुई, जिसमें 80 सदस्यों ने भाग लिया और गृहमंत्री अमित शाह ने उनके उत्तर दिए। उन्होंने कहा, ”पढ़ने का चश्मा अगर विदेशी है तो संविधान में भारतीयता कभी दिखाई नहीं देगी। एक परिवार पार्टी को परिवार की जागीर समझता है और साथ ही संविधान को भी निजी जागीर समझता है। हमारी सरकार द्वारा किए गए संविधान संशोधन लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किए गए, जबकि विपक्षी पार्टी ने सत्ता को बनाए रखने के लिए परिवर्तन किए। विपक्ष ने संविधान को हाथ में लेकर झूठ बोलकर जनादेश लेने का कुत्सित प्रयास किया है। संविधान सभाओं में लहराने और बहकाने का मुद्दा नहीं है, संविधान एक विश्वास और श्रद्धा है। वीर सावरकर जी के बारे में अपमानजनक बातें करने वाले लोगों को सावरकर जी की महानता पर इंदिरा गांधी के विचारों को पढ़ना चाहिए। मुस्लिम पर्सनल लॉ इस देश में संविधान आने के बाद तुष्टीकरण की शुरुआत है। शरिया लागू करना है तो पूरा कीजिए, क्रिमिनल से क्यों निकाल दिया? नेहरू जी ने ‘भारत’ नाम का विरोध किया… अगर इंडिया के चश्मे से ‘भारत’ को देखोगे, तो ‘भारत’ कभी समझ नहीं आएगा। आज संविधान को स्वीकार करने के 75 साल बाद जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो हमें सरदार पटेल का धन्यवाद करना चाहिए कि उनके अथक परिश्रम के कारण आज देश एक होकर मजबूती के साथ दुनिया के सामने खड़ा है। पिछले 75 साल में हमारे पड़ोस में कई देशों में कई बार लोकतंत्र को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन भारत के लोकतंत्र की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि बिना किसी रक्तपात के हमारे यहां अनेक परिवर्तन हुए। जिस ब्रिटेन ने सालों तक हम पर राज किया, आज वो भी हमारे पीछे खड़ा है। यह हम सबके लिए गौरव और संकल्प लेने का पल है।”
प्रधानमंत्री के 11 संकल्प
- चाहे नागरिक हो या सरकार, सभी अपने कर्तव्यों का पालन करें।
- हर क्षेत्र में विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिले, सबका साथ और सबका विकास हो।
- भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस हो और भ्रष्टाचारियों की सामाजिक स्वीकार्यता न हो।
- देश के कानून, नियम और देश की परंपरओं के पालन में नागरिकों को गर्व हो।
- गुलामी की मानसिकता से मुक्ति मिले और अपनी विरासत पर गर्व हो।
- देश की राजनीति को परिवारवाद से मुक्ति मिले।
- संविधान का सम्मान हो और राजनीतिक स्वार्थ के लिए संविधान को हथियार न बनाया जाए।
- संविधान की भावना के प्रति समर्पण रखते हुए जिनको आरक्षण मिल रहा हो, उनसे न छीना जाए। मजहब के आधार पर आरक्षण न दिया जाए।
- विकास के मामले में देश मिसाल बने।
- राज्य के विकास से राष्ट्र का विकास का मंत्र हो।
- एक भारत श्रेष्ठ भारत का ध्येय सर्वोपरि हो।
राजग का संविधान संशोधन देशहित में
2014 में राजग के सत्ता में आने के बाद पुरानी बीमारियों से मुक्ति के लिए हमने अभियान चलाया। बीते 10 साल में हमने भी संविधान संशोधन किए। लेकिन ये संशोधन देश की एकता, अखंडता, उज्जवल भविष्य और संविधान की भावना के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ किए हैं। हमने संविधान संशोधन किया क्यों किया? क्योंकि इस देश का ओबीसी समाज तीन दशक से ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की मांग कर रहा था। हमें गर्व है यह करने का। हमने संविधान संशोधन कर गरीब परिवारों को 10 प्रतिशत और आरक्षण दिया। आरक्षण को लेकर यह पहला संशोधन था, पर देश में कोई विरोध नहीं हुआ। संसद ने भी सहमति के साथ पारित किया। हमने संविधान में संशोधन किया महिलाओं को संसद और विधानसभा में शक्ति देने के लिए। संसद का पुराना भवन गवाह है, जब देश महिलाओं को आरक्षण देने के लिए आगे बढ़ रहा था और बिल पेश हो रहा था, तब उन्हीं के एक साथी दल ने वेल में आकर कागज छीन कर फाड़ दिया था। 40 वर्ष तक यह विषय लटका रहा। हमने संविधान संशोधन देश की एकता के लिए किया। बाबासाहेब अंबेडकर का संविधान अनुच्छेद-370 की दीवार के कारण जम्मू-कश्मीर की तरफ देख भी नहीं सकता था। बाबासाहेब को श्रद्धांजलि देने और देश की एकता को मजबूत करने के लिए हमने डंके की चोट पर संविधान संशोधन किया और 370 को हटाया। अब तो सर्वोच्च न्यायालय ने भी उस पर मोहर लगा दी है।
जब देश का विभाजन हुआ, तब महात्मा गांधी समेत देश के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि पड़ोसी देश के अल्पसंख्यकों की चिंता यह देश करेगा। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लाकर हमने गांधी जी के वचन को पूरा किया। हमने जो संविधान संशोधन किए हैं, वह पुरानी गलतियों को ठीक करने और उज्जवल भविष्य का रास्ता मजबूत करने के लिए किए हैं। यह देशहित में किया गया पुण्य है।
जुमले पर खिंचाई
जुमला कांग्रेस के साथियों का सबसे प्रिय शब्द है, जिसके बिना वे जी नहीं सकते। लेकिन इस देश को पता है अगर सबसे बड़ा जुमला कोई था, जिसे चार पीढ़ियों ने चलाया, वह था-गरीबी हटाओ। आजादी के इतने सालों के बाद सम्मान के साथ जीने के लिए किसी गरीब परिवार को क्या शौचालय उपलब्ध नहीं होना चाहिए? क्या आपको इस काम के लिए फुर्सत नहीं मिली? देश में शौचालय बनाने का अभियान चलाया गया, जो गरीबों के लिए एक सपना था। इस देश के 80 प्रतिशत जनता पीने के शुद्ध पानी के लिए तरसती रही। यह काम भी हमने बड़े समर्पण भाव से आगे बढ़ाया है। हमने घर-घर गैस सिलेंडर पहुंचा दिया।
जरूरतमंदों को राशन देने का भी मजाक उड़ाया जा रहा है। जब हम कहते हैं कि 25 करोड़ लोग गरीबी को परास्त करने में सफल हुए हैं, तो भी हमसे सवाल पूछा जाता है कि आप गरीबों को राशन क्यों देते हो। जिन्हें हमने गरीबी से बाहर निकाला है, उन्हें दोबारा गरीबी में जाने नहीं देना है और जो अभी भी गरीबी में हैं, उन्हें भी गरीबी से बाहर लाना है।
देश में गरीबों के नाम पर जो जुमले चले, उन्हीं गरीबों के नाम पर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। लेकिन 2014 तक देश में 50 करोड़ लोग ऐसे थे, जिन्होंने बैंक का दरवाजा तक नहीं देखा था। हमने बैंक के दरवाजे गरीबों के लिए खोल दिए हैं। यही नहीं, एक प्रधानमंत्री कहते थे कि दिल्ली से एक रुपया निकलता है तो लोगों तक 15 पैसा पहुंचता है। लेकिन उनके पास उपाय नहीं थे। हमने दिखाया कि आज दिल्ली से एक रुपया निकलता है और 100 पैसे गरीब के खाते में जमा होते हैं।
बिना गारंटी के लोन के लिए जिन लोगों को बैंक के दरवाजे तक जाने की इजाजत नहीं थी। आज वह बिना गारंटी बैंक से लोन ले सकता है। यह ताकत हमने गरीब को दी है।
सबका साथ, सबका विकास
आजादी के सात दशक बाद भी उन्हें दिव्यांग जनों की याद नहीं आई। हमने दिव्यांग फ्रेंडली इन्फ्रास्ट्रक्चर, व्हीलचेयर से उनके ट्रेन के डिब्बे तक पहुंचने, मूक-बधिरों के लिए कॉमन साइन लैंग्वेज की व्यवस्था की है, जो देश के सभी दिव्यांग भाई-बहनों के काम आ रही है। घुमंतू और अर्ध घुमंतू समाज को भी कोई पूछने वाला नहीं था। उनके कल्याण के लिए हमने वेलफेयर बोर्ड बनाया।
हमारी सरकार ने रेहड़ी-पटरी वालों को स्वनिधि योजना के तहत बिना गारंटी लोन देना शुरू किया। विश्वकर्मा के कल्याण के लिए योजना बनाने से लेकर बैंक से लोन दिलाने, प्रशिक्षण देने के साथ उन्हें आधुनिक उपकरण देने की व्यवस्था की।
परिवार और समाज से दुत्कारे गए ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के लिए कानून बनाया। आदिवासी समाज के हित में ढेरों काम किए हैं। जिस आदिवासी समाज को हम आदिपुरुष कहते हैं, उनके लिए आजादी के दशकों बाद भी अलग मंत्रालय नहीं बनाया गया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने आदिवासी मंत्रालय बनाया और आदिवासी विकास और विस्तार के लिए बजट दिया।
नॉर्थ-ईस्ट के कल्याण के लिए अटल जी की सरकार ने पहली बार डोर्नियर मंत्रालय का गठन किया। उसी का परिणाम है कि नॉर्थ-ईस्ट के विकास की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं।
सबका साथ, सबका विकास नारा नहीं है। यह हमारे लिए आस्था का विषय है। इसलिए हमने सरकारी योजनाएं भी बिना भेदभाव के बनाई हैं, ताकि इनका लाभ शत प्रतिशत लोगों को मिले। संविधान हमें भेदभाव की अनुमति नहीं देता है। आने वाले दशकों में हमारा लोकतंत्र, हमारी राजनीति की दिशा क्या होनी चाहिए हमें इस पर मंथन करना चाहिए। क्या इस देश में योग्य नेतृत्व को अवसर नहीं मिलना चाहिए? जिनके परिवार में कोई राजनीति में नहीं है, क्या उनके लिए दरवाजे बंद हो जाएंगे? क्या परिवारवाद से भारत की लोकतंत्र की मुक्ति का अभियान चलाना, संविधान के तहत हमारी जिम्मेदारी नहीं है? देश को, देश के नौजवानों को आकर्षित करने, उन्हें आगे लाने और लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों को प्रयास करना चाहिए। मैं लगातार बोल रहा हूं… 1 लाख ऐसे नौजवानों को देश की राजनीति में लाना है, जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है।
टिप्पणियाँ