मुस्लिमों की दौलत को विरासत में गैर मुस्लिम नातेदार नहीं ले सकते: लाहौर उच्च न्यायालय
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मुस्लिमों की दौलत को विरासत में गैर मुस्लिम नातेदार नहीं ले सकते: लाहौर उच्च न्यायालय

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को लेकर लाहौर उच्च न्यायालय ने बहुत ही बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि एक गैर-मुस्लिम को किसी भी मुस्लिम रिश्तेदार की दौलत से कोई भी हिस्सा विरासत में नहीं मिल सकता है।

by सोनाली मिश्रा
Dec 30, 2024, 04:35 pm IST
in विश्व
प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

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पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को लेकर लाहौर उच्च न्यायालय ने बहुत ही बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि एक गैर-मुस्लिम को किसी भी मुस्लिम रिश्तेदार की दौलत से कोई भी हिस्सा विरासत में नहीं मिल सकता है। यह फैसला शरिया के अनुसार दिया है। डॉन के अनुसार जस्टिस चौधरी मोहम्मद इकबाल ने तोबा टेक सिंह जिले की गोजरा तहसील के 83 कनाल जमीन के बंटवारे को लेकर दो निचली अदालतों के फैसले को बनाए रखते हुए यह फैसला दिया। दरअसल इस जमीन का मालिक एक मुसलमान था, जिसने अपनी मौत के बाद अपनी सारी दौलत अपने बेटे और बेटियों के बीच बाँट दी थी। मगर उसका एक पोता इस बात को लेकर अदालत में गया कि चूंकि उसका एक चाचा मुसलमान न होकर अहमदिया था, तो उसे दौलत से बेदखल कर दिया जाए।

निचली अदालतों ने पोते के पक्ष में फैसला दिया था, और चूंकि अदालत में बहस के दौरान पूछताछ में अहमदिया आदमी के बेटे ने भी यह बताया कि उसके अब्बा अहमदिया थे तो इस दावे की पुष्टि भी हो गई थी। इसी फैसले को सही ठहराते हुए लाहौर उच्च न्यायालय ने जस्टिस इकबाल ने यह पाया कि वह आदमी अहमदिया था, मगर उसने यह अपने अब्बा को नहीं बताया था। इसलिए शरिया के अनुसार यह निश्चित है कि उसे अपने मुस्लिम अब्बा की दौलत में से कुछ नहीं मिल सकता।

dawn के अनुसार जस्टिस इकबाल ने कहा कि शरिया के अनुसार “किसी मृतक मुस्लिम मालिक द्वारा छोड़ी गई दौलत किसी गैर-मुस्लिम उत्तराधिकारी को विरासत में नहीं मिल सकती। इस बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने सहीह मुस्लिम के खंड 4 से पैगंबर की बात को उद्धृत किया: “एक मुसलमान को काफिर से विरासत नहीं मिलती और एक काफिर को मुसलमान से विरासत नहीं मिलती।”

अहमदिया मुस्लिम होकर भी काफिर या गैर मुस्लिम

यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि अपने आप को मुस्लिम कहने वाले अहमदिया समुदाय के लोगों के पास मुस्लिम कहलाने का भी अधिकार नहीं है। एक ऐसे देश में, जिसे बनाने के लिए अहमदिया समुदाय ने हिंदुओं का खून बहाया था और यह भी सच है कि वर्ष 1940 के लाहौर रेसोल्यूशन को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लाहौर रेसोल्यूशन वह राजनीतिक दस्तावेज था, जिसने ब्रिटिश भारत के भीतर एक अलग मुस्लिम मुल्क बनाने की मांग की थी।

मुहम्मद जफरुला खान, आल इंडिया मुस्लिम लीग के महत्वपूर्ण नेता थे। और मोहम्मद जफरुला खान एक अहमदिया थे। जफरुला खान द्वारा लिखे गए लाहौर रेसोल्यूशन की पाकिस्तान के इतिहास में बहुत ही महत्ता है। लाहौर रेसोल्यूशन में यह मांग की गई थी कि किसी भी संवैधानिक योजना को स्वीकार करने से पहले स्वतंत्र राज्यों की भौगोलिक इकाइयों को चिह्नित कर लिया जाए।

इस रेसोल्यूशन में एक संयुक्त भारत की अवधारणा को अस्वीकार कर दिया था और एक पृथक मुस्लिम मुल्क की मांग की थी। इसने यह अनुशंसा की थी कि “उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत, पंजाब, बंगाल, असम, सिंध और बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों के मुसलमानों को स्वायत्त और संप्रभु घटक इकाइयों के साथ एक स्वतंत्र राज्य बनाना चाहिए।“मजे की बात यही है कि एक अहमदिया मुस्लिम जफरुला खान के लिखे गए लाहौर रेसोल्यूशन ने ही “पाकिस्तान” शब्द को लोकप्रिय किया था। वह प्रस्ताव मुस्लिमों के बीच इतना लोकप्रिय हुआ था कि उसे पाकिस्तान रेसोल्यूशन के नाम से जाना जाता है।

पाकिस्तान शब्द को लोकप्रिय बनाने वाले अहमदिया समुदाय को पाकिस्तान ने ही नकारा

अहमदिया समुदाय के जफरुला खान ने पाकिस्तान शब्द को वर्ष 1940 में मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय बनाया और इस रेसोल्यूशन ने ही पाकिस्तान के बनने का मार्ग प्रशस्त किया था। इतना ही नहीं पाकिस्तान बनने के बाद जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया था तो उसमें भी अहमदिया समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान रहा था। जून 1948 में पाकिस्तान सरकार के निर्देशों के अनुसार अहमदिया नेतृत्व ने अहमदिया समुदाय के युवा लोगों के साथ मिलकर फुरकान बटालियन बनाने में सहायता की थी। इतना ही नहीं अहमदिया समुदाय से जुड़े कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों को बुलाकर भी फुरकान बटालियन में शामिल किया गया था।

अहमदिया नेता मिर्जा बशीरुद्दीन महमूद अहमद से रसद व्यवस्था के लिए मदद मांगी गई थी। बशीरुद्दीन महमूद अहमद ने ही कश्मीरी मुस्लिमों के लिए नागरिक अधिकारियों की स्थापना के लिए आल इंडिया कश्मीर कमिटी बनाई थी। उसने अहमदिया समुदाय के लोगों से कहा था कि वे पाकिस्तान के निर्माण के लिए आल इंडिया मुस्लिम लीग को वोट दें।

जिस समुदाय ने पाकिस्तान के बनने से लेकर पाकिस्तान के खून खराबे वाले हर कुकृत्य में उसका साथ दिया, आज वहाँ पर उसे ही मुस्लिम नहीं माना जाता है और इसी आधार पर उसे अपने परिजनों की दौलत से बेदखल कर दिया जाता है। उसे काफिर कहकर दुत्कार दिया जाता है।

Topics: लाहौर उच्च न्यायालय का फैसलासंपत्ति वितरण नियमअहमदिया मुस्लिमपाकिस्तानPakistanLahore High Court VerdictProperty Distribution RuleAhmadi Muslim
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