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प्रकृति बचाने वाली हो प्रवृत्ति

गोवा में आयोजित सागर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित ‘पर्यावरण गतिविधि’ के प्रमुख श्री गोपाल आर्य ने अपने विचार साझा किए

by Rajpal Singh Rawat
Dec 30, 2024, 01:18 pm IST
in विश्लेषण, संघ, संस्कृति, गोवा, पर्यावरण
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गोवा में आयोजित सागर मंथन के तीसरे सत्र का विषय था-‘प्रकृति भी, प्रगति भी।’ इसमें प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित ‘पर्यावरण गतिविधि’ के प्रमुख श्री गोपाल आर्य ने अपने विचार साझा किए। उसी को यहां लेख के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है-

भारत वह देश है, जहां प्रकृति को मां का दर्जा दिया गया है। पहाड़ों, नदियों और वृक्षों की पूजा करना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। लेकिन आज जब हम प्रकृति और पर्यावरण की बात करते हैं, तो यह सोचना जरूरी है कि हम कहां गलत हो रहे हैं। कभी जिस धरती पर भगवान भी जन्म लेने के लिए तरसते थे, आज उसी धरती पर यदि भगवान से पूछा जाए कि क्या वे यहां जन्म लेना चाहेंगे तो शायद उन्हें भी सोचना पड़ेगा।

दिल्ली का पर्यावरणीय संकट

अभी कुछ समय से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत ही घातक श्रेणी में रह रहा है। दिसंबर, 2024 के अंतिम हफ्ते में दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (ए.क्यू.आई.) 400-500 के बीच रहा, जबकि इसे 50-70 के बीच होना चाहिए। दिल्ली में सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। विश्व का सबसे बड़ा कचरे का पहाड़ दिल्ली में है, जो कुतुब मीनार से मात्र 10 मीटर छोटा है। यहां पीने का पानी दूषित है, भोजन अशुद्ध है और लोग बेहतर जीवन की तलाश में शहर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।

प्रगति और प्रलय के बीच संतुलन

जब हम प्रगति और प्रकृति की बात करते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रगति प्रलय का कारण न बने। अगर प्रगति सही दिशा में न जाए, तो वह पर्यावरण के लिए विनाशकारी हो सकती है। आज अस्पतालों में जितने लोग भर्ती हो रहे हैं, उनमें एक बड़ा वर्ग ऐसे लोगों का है, जो दूषित जल और वायु प्रदूषण के कारण बीमार हैं। हमें सोचना होगा कि क्या यह विकास सही दिशा में जा रहा है?

कुछ सावधानियां

बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए ढांचागत विकास तो करना ही होगा, लेकिन उसके लिए कुछ सावधानियों या सुझावों पर ध्यान दिया जाए तो पर्यावरण का उतना नुकसान नहीं होगा। पहली सावधानी है- पर्यावरण अनुकूल योजनाएं बनाना। चाहे उद्योग हो, कृषि हो, या शहरी विकास, इन सबकी योजना बनाते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण को तनिक भी खरोंच न लगे। दूसरी सावधानी है-ग्रीन टेक्नोलॉजी। विकास कार्य के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाना चाहिए, जो न्यूनतम ऊर्जा और न्यूनतम प्रदूषण के साथ कार्य करे। इसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना होगा।

श्री गोपाल आर्य को प्रतीक चिह्न देकर उनका सम्मान करते पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर एवं भारत प्रकाशन के प्रबंधक निदेशक अरुण कुमार गोयल

पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए तीसरा सबसे बड़ा सुझाव है- वृक्षारोपण करना। बता दें स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्रति व्यक्ति 422 पेड़ होने चाहिए, लेकिन वर्तमान में दिल्ली में यह संख्या केवल 28 है। दिल्ली के पास बहादुरगढ़ में केवल एक पेड़ प्रति व्यक्ति है। इस संकट को देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान का शुभारंभ किया है। यह केवल अभियान नहीं है, यह पर्यावरण को संतुलित करने का नेक कार्य है। वृक्षारोपण से न केवल आक्सीजन की आपूर्ति बढ़ेगी, बल्कि यह पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन पैदा करेगा। पेड़ों के महत्व को इन पंक्तियों में समझा जा सकता है-
जब तलक जिंदा रहेगा पेड़, आशिया दे जाएगा।
कत्ल होगा पेड़ तो, लकड़ियां दे जाएगा।।

पर्यावरण का नुकसान उचित कचरा प्रबंधन के न होने से भी हो रहा है। इसलिए चौथा सुझाव है-हमें ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ का प्रयोग बंद करना होगा। इसके कारण वायु के साथ जल भी दूषित हो रहा है। कचरा उत्पन्न करना हमारी मानसिकता का हिस्सा बन गया है। इसे बदलना होगा। पांचवां सुझााव है-पर्यावरण के लिए स्थानीय परंपराओं का पुनस्स्थापन करना होगा। स्थानीय जरूरतों के अनुसार पारंपरिक प्रथाओं को पुनर्जीवित करना होगा।

व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारी

हर व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में छोटा-सा भी बदलाव लाए, तो पर्यावरण में बड़ा फर्क आ सकता है। उदाहरण के तौर पर एक दिन बिना साबुन के नहाने से 10,000 टन रासायनिक प्रदूषण को रोका जा सकता है। हम अपने जीवन को प्रकृति के अनुकूल बनाएं। हर व्यक्ति को अपने परिवार, समाज और कार्यस्थल पर पर्यावरण संरक्षण के उपाय अपनाने होंगे।

पर्यावरण को संतुलित करने में ‘हरित घर’ बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इनमें सभी कार्यों को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से किया जाता है। पूरे देश में 3 लाख से अधिक हरित घर बनाए जा चुके हैं। यह बताते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है कि 13 जनवरी से प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ में पर्यावरण को बचाने के लिए ‘पर्यावरण गतिविधि’ ने एक अच्छी पहल की है। इसके अंतर्गत ‘थैला और थाली अभियान’ चलाया गया है। इसके अंतर्गत लोगों से एक थैला और थाली देने का आग्रह किया जाता है। इसके लिए देश के अलग-अलग भागों में कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। इस अभियान को बड़ी सफलता भी मिल रही है। लोग थाली और थैला भेंट कर रहे हैं। इन थालियों और थैलियों को महाकुंभ में भेजा भी जा रहा है। वहां इनके प्रयोग से 20,000 टन कचरे को रोका जा सकता है।

पानी की प्राथमिकता

यह तथ्य है कि पेट्रोल और दूध के बिना जीवन संभव है, लेकिन पानी के बिना नहीं। इसलिए हम सब अपने जीवन में पानी को प्राथमिकता दें। पानी की बचत जरूरी है। चाहे कुछ भी हो जाए पानी की बर्बादी को रोकना होगा। उसे प्रदूषित करने से भी बचें।

ए.एम.सी. (एवॉइड, मिनिमाइज और क्रिएट) के सिद्धांत का पालन करें। यहां ‘एवॉइड’ का अर्थ है पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाली चीजों का उपयोग करने से बचें। ‘मिनिमाइज’ यानी संसाधनों का न्यूनतम उपयोग करें, उनका दोहन करने से बचें। ‘क्रिएट’ यानी पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा दें।

विकास का सही मार्ग

हमें विकास के सही मार्ग पर चलना होगा। छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े-बड़े बदलाव ला सकते हैं। अच्छी बात यह है कि कुछ उद्योग इस क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य कर रहे हैं। गुरुग्राम की एक फैक्ट्री ने प्लास्टिक रैपिंग कम करके 6 करोड़ रुपए प्रति माह की बचत की है। यदि हम प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखेंगे, तो न केवल प्रलय से बच सकते हैं, बल्कि सतत विकास की ओर बढ़ सकते हैं। प्रकृति हमारी मां है। एक मां का संरक्षण और उसकी देखभाल करना हर पुत्र का दायित्व है। इसलिए आइए हम सब प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लें।

Topics: पाञ्चजन्य विशेषRSSFEATUREप्रगति और प्रकृतिदूषित पानीस्वच्छ पर्यावरणProgress and NaturePolluted Waterराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघClean Environmentवायु प्रदूषणair pollution
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