नदियां जुड़ेंगी, आएगी खुशहाली
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

नदियां जुड़ेंगी, आएगी खुशहाली

नदी जोड़ो परियोजना के तहत मध्य प्रदेश ओर राजस्थान में नदियों के जुड़ाव से दोनों ही राज्यों में खुशहाली आएगी। पार्वती, काली और सिंध नदी का अटका मामला भी सुलझ जाएगा। जो दोनों ही राज्यों के हित में होगा

by डॉ. क्षिप्रा माथुर
Dec 27, 2024, 08:06 am IST
in भारत, विश्लेषण, संस्कृति, राजस्थान
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

नदियों के पानी का बंटवारा, भारत के भाल पर भाग्य का अक्षत लगाने जैसा है। गांव और नगर की सारी सभ्यताएं नदियों के किनारे ही पनपी हैं। नगर धीरे-धीरे इतने फैलते गए कि उन्हें बसाने वाली नदियों के रास्तों को ही संकरा करते चले गए। नदियों का जो जाल इतिहास में हर इलाके को अपनी पहचान देकर गया, वह विकास की धुन में बिखर गया। अब उसी पहचान को टटोलने, हर इलाका फिर से अपनी नदियों के खोए मुहाने खोज रहा है। कहीं नदियां सूख गईं, कहीं इमारतों ने उन्हें ढक दिया, कहीं वो मैली होकर छिप गईं और कहीं नहरों के कृत्रिम तंत्र ने उसके रास्ते रोक लिए, परंपराओं को बहा दिया तो कहीं वो इतनी उफनी कि कई जीवन बहा ले गईं।

बहाव के उतार-चढ़ाव

डॉ. क्षिप्रा माथुर
वरिष्ठ पत्रकार

ऐसे में संतुलन का सजग भाव कहने लगा, कि क्या ज्यादा पानी से कम पानी वाली नदियों को जोड़ना संभव है? औपनिवेशिक भारत के शासकों ने इसे अपने स्वार्थ से जोड़कर देखा। देश की पहली सशस्त्र क्रांति के साल भर बाद ही यानी साल 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने नदियों को जोड़ने की बात सोची। ये कल्पना भारत के उत्थान से ज्यादा, व्यापार के बंदरगाहों से अपने स्वार्थ साधने की थी। नदी जोड़ने के आधुनिक इतिहास में अहम पड़ाव आया, जब साल 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘नदी जोड़ो परियोजना’ को साल 2016 तक जमीन पर उतारने की मियाद तय की। इस बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी इस चुनौती को स्वीकार किया था। सुरेश प्रभु की अगुआई में ‘रिवर लिंकिंग की टास्क फोर्स’ भी बनी। लेकिन वह समय, नए विचारों पर संशय का था। राज्यों के बीच अनबन ज्यादा थी, लोगों को अपनी आजीविका खोने का डर भी बहुत था और विशेषज्ञों में भी सहमति नहीं थी। आखिर, किसी भी नदी के लिए राजनीतिक विरोधों को परे रखकर, राज्यों की सीमाएं लांघना आसान नहीं था। इन सारी अड़चनों पर बात करते-करते काफी पानी बह गया। सरकार बदल गईं, और नदियों के आपसी मिलन का मुहूर्त निकल ही नहीं पाया।

संसद के पटल पर

तबसे, सबके मन में सवाल तो थे, नदियों को जोड़ना संभव है? ये ख्याली बात तो नहीं? नदियों के नैसर्गिक प्रवाह में ये दखल तो नहीं? नदियों का जीवित तंत्र, कहीं रूठ तो नहीं जाएगा? हिमालयी और तटीय इलाकों की नदियों के लिए अलग-अलग तरह से सोचा गया। हिमालय की नदियां, बारिश और ग्लेशियर दोनों की वजह से बारहमासी बहती हैं। जबकि भारत की बाकी नदियां मौसमी हैं, कहीं बाढ़ से बेहाल, कहीं सूखे से। साल 2014 में आई भाजपा सरकार ने जल्द ही ‘जल शक्ति मंत्रालय’ बनाकर, सब बिखरे कामों को एकछत्र किया। सबसे पहले पुरानी और काम की दबी बातों की धूल झाड़ी। फिर से ये बात चर्चा में आई, और ‘नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान’ में शामिल हिमालय नदियों के लिए 14 और बाकी प्रायद्वीप भूभाग के लिए 16 लिंकिंग यानी कुल 30 योजनाओं पर काम शुरू हुआ। इसी कड़ी में, साल 2021 में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लिए केन-बेतवा परियोजना की घोषणा कर दी गई। दिसंबर 2022 में संसद के पटल पर सारी बात रखी गई। तीस परियोजनाओं में से आधी की विस्तार से बनाई रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार होने, पांच को नेशनल प्लान में प्राथमिकता में लेने और इसके लिए 1282 करोड़ राज्यों को दिए जाने की बात कही।

पानी की राजनीति

मोदी सरकार ने दूसरी और तीसरी बार चुनकर आने के दौरान, नदियों के जोड़ने के काम को रफ़्तार में रखा। राज्यों को याद दिलाया कि देश हित में थोड़ा समझौता करना सीखें। इस बीच राजस्थान में पूर्वी इलाकों की प्यास बुझाने के लिए, साल 2017 में तब की वसुंधरा सरकार ने जाते-जाते ईआरसीपी (ईस्टर्न रीजन रिवर प्रोजेक्ट) को आकार देना शुरू किया। बाद में जब कांग्रेस सरकार राजस्थान में आई और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनें तो उन्होंने इस मुद्दे पर लोगों को भ्रमित करने में कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री और तब के जल शक्ति मंत्री के बीच ये राजनीतिक टकराव का मुद्दा भी बना रहा। राजस्थान, मध्यप्रदेश से अनापत्ति, तकनीकी, वन्यजीव और वैधानिक मंजूरी कुछ नहीं ले पाया। प्रोजेक्ट रिपोर्ट में कुछ गंभीर तकनीकी खामियां भी थीं, जिसकी वजह से बांध बड़े बनाने और इसकी लागत ज्यादा आने का अंदेशा था। इसे राज्यों को मिलकर सुलझाना था। इस बारे में की गई बैठकों में मुख्यमंत्री गए ही नहीं। मध्यप्रदेश में भी उस वक्त कांग्रेस की कमलनाथ सरकार होने के बावजूद, गहलोत इस परियोजना की गाड़ी नहीं खींच पाए।

अनुबंध: पार्वती-कालीसिंध-चंबल

साल 2023 के चुनावों में राजस्थान और मध्यप्रदेश राज्यों में भाजपा सरकार चुनकर आई। इस साल जनवरी में, ईआरसीपी, पार्वती-कालीसिंध-चंबल (पीकेएस) परियोजना में समा गई। राजस्थान, मध्यप्रदेश और भारत सरकार सबने मिलकर इसके लिए करीब 72 हजार करोड़ का बजट दिया है, जो इस कड़ी में सबसे पहले शुरू हुई केन-बेतवा परियोजना पर किए जाने वाले खर्च से कहीं ज्यादा है। केंद्र सरकार इसका 90 फीसदी खर्च उठाएगी, इसलिए राजस्थान के हिस्से 37 हजार करोड़ और मध्यप्रदेश पर 35 हजार करोड़ का भार रहेगा। साल 2004 में नदियों को जोड़ने वाली मूल ‘इंटरलिंकिंग रिवर्स’ के तहत ‘पीकेएस’ योजना सोची गई थी। इसमें मध्यप्रदेश में मोहनपुरा, कुंडलिया और पाटनपुर में पानी को सहेजने की जगह तय की थी, और राजस्थान के 43 हजार हेक्टेयर इलाके को फायदा मिलना था। मध्यप्रदेश ने नेवज और कालीसिंध नदियों पर बांध बना लिया। इधर, राजस्थान के हिस्से आने वाले 1.16 फीसदी सतही और 1.72 फीसदी जमीन का जल, देश के इस 10 फीसदी इलाके के लिए नाकाफी है।

इसीलिए, नई योजना में कूल, पार्वती, कालीसिंध, मेज और बनास नदियों पर बैराज (धीमे प्रवाह वाली नदियों पर) और बांध (तेज बहाव वाली नदियों पर) बनेंगे, फीडर लगेंगे और दो दर्जन से ज्यादा टैंकों को दुरुस्त किया जाएगा। नए बनने वाले 27 बांधों के अलावा 122 बांध और जुड़ेंगे। चार पुराने बांधों से जुड़ी नहरों की क्षमता भी बढ़ेगी। राजस्थान के 13 जिलों के लिए बनी पिछली परियोजना की बजाय अब पीकेएस, राजस्थान के 21 और मध्य प्रदेश के 13 जिलों की करीब पांच-साढ़े पांच करोड़ की आबादी को पांच दशक तक पानी मुहैया कराएगी। इसी के साथ छह दशक चंबल-नहर प्रणाली भी सुधारी जाएगी।

राजस्थान की 40 फीसदी आबादी को मिली पानी की ये सौगात, उन लाखों किसान परिवारों का जीवन आसान करेगी, जिनके सूखे खेत अपने लिए अच्छे दिनों की राह देख रहे हैं। कम पानी में अच्छी फसल लेना भी इस परियोजना का एक हिस्सा रहेगा। नीतिगत मामलों पर काम करने वाले ‘अपाई’ संगठन के संस्थापक सदस्य पंकज मीणा, राज्यों और सीमावर्ती इलाकों के लिए इन योजनाओं को वरदान मानते हैं। उनकी फिक्र में ये बात भी है कि नेता और जनता जल-विवादों में न फंसे। पानी के बेहतर प्रबंधन, संचयन और आपसी साझेदारी से, खेती, शिक्षा और उद्योगों को आगे बढ़ता देखना सबके हित में होगा।

बुंदेलखंड की सुध

केन और बेतवा, यमुना की सखी नदियां हैं। केन नदी से सूखे इलाकों की बेतवा को पानी देने की परियोजना का भी खास मकसद है। बुंदेलखंड का उस त्रासदी से उबरना जरूरी है जिसने हजारों परिवारों को पलायन और सैंकड़ों परिवारों को किसान की आत्महत्या से उजड़ते देखा है। मध्यप्रदेश के दस और उत्तर प्रदेश के चार जिलों को छूती हुई ये नदी परियोजना, बुंदेलखंड, चंबल और मालवा इलाकों की सुध-बुध लेगी। करीब 44 हजार करोड़ से पोषित केन-बेतवा से 10 लाख हेक्टेयर में सिंचाई हो सकेगी, 60 लाख से ज्यादा आबादी की प्यास बुझेगी और 103 मेगावॉट हाइड्रोपावर के साथ 27 मेगावॉट सौर ऊर्जा भी मिलेगी।

इस योजना के पहले चरण में छतरपुर में बनने वाले बांध की आधारशिला प्रधानमंत्री इस साल के आखिरी हफ़्ते में रख रहे हैं। केन से बेतवा तक नहरी तंत्र तैयार हो रहा है, जिससे सिंचाई, बांध, पोखर सबका काम होगा। पेयजल की सुविधा मिल सकेगी, साथ ही बांध और नहर के बनने से, बुंदेलखंड को सूखे से निजात मिलते देखना सुखद होगा। इस परियोजना से छतरपुर जिले के 688 गांव भी आबाद होंगे। छतरपुर के नौ गांव और पन्ना के कुछ इलाके डूब वाले क्षेत्र में भी आ रहे हैं, जिनके साथ संवेदनशीलता से पेश आना और उनका हक उन्हें समय से देना प्रशासन का बड़ा जिम्मा है।

किल्लत की रहे कद्र

बाढ़ और सूखे वाले दोनों इलाके, जब अपनी-अपनी कमियों और खूबियों को बांट लेंगे तो नदियों के सारे तटबंध खुलकर, खुशहाली की खनक सुन पाएंगे। किल्लत कम होने और बड़े संकट से उबरने के मायने ये भी रहें कि हम नीतियों और नागरिक सजगता में ढिलाई न रखें। पानी राज्यों का मामला है और ‘जल-नीति’ के साथ वन-पर्यावरण, सिंचाई, खेती, वन्यजीव और किनारे की आबादी, सबके साथ समन्वय और सबका ध्यान रहे तो बड़ी नदी जोड़ो परियोजनाएं अविरल रहेंगी।

Topics: इंटरलिंकिंग रिवर्सWater policyईस्ट इंडिया कंपनीKalisindh-Chambalजल शक्ति मंत्रालयJal Shakti MinistryEast India CompanyInterlinking riversfeatपाञ्चजन्य विशेषriver linking projectजल-नीतिकालीसिंध-चंबलनदी जोड़ो परियोजना
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

1822 तक सिर्फ मद्रास प्रेसिडेंसी में ही 1 लाख पाठशालाएं थीं।

मैकाले ने नष्ट की हमारी ज्ञान परंपरा

मार्क कार्नी

जीते मार्क कार्नी, पिटे खालिस्तानी प्यादे

हल्दी घाटी के युद्ध में मात्र 20,000 सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने अकबर के 85,000 सैनिकों को महज 4 घंटे में ही रण भूमि से खदेड़ दिया। उन्होंने अकबर को तीन युद्धों में पराजित किया

दिल्ली सल्तनत पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों?

स्व का भाव जगाता सावरकर साहित्य

पद्म सम्मान-2025 : सम्मान का बढ़ा मान

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

‘आतंकी समूहों पर ठोस कार्रवाई करे इस्लामाबाद’ : अमेरिका

भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर की गति बनाए रखना आवश्यक

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ

भारत को लगातार उकसा रहा पाकिस्तान, आसिफ ख्वाजा ने फिर दी युद्ध की धमकी, भारत शांतिपूर्वक दे रहा जवाब

‘फर्जी है राजौरी में फिदायीन हमले की खबर’ : भारत ने बेनकाब किया पाकिस्तानी प्रोपगेंडा, जानिए क्या है पूरा सच..?

S jaishankar

उकसावे पर दिया जाएगा ‘कड़ा जबाव’ : विश्व नेताओं से विदेश मंत्री की बातचीत जारी, कहा- आतंकवाद पर समझौता नहीं

पाकिस्तान को भारत का मुंहतोड़ जवाब : हवा में ही मार गिराए लड़ाकू विमान, AWACS को भी किया ढेर

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से लेकर राजस्थान तक दागी मिसाइलें, नागरिक क्षेत्रों पर भी किया हमला, भारत ने किया नाकाम

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से तिलमिलाए पाकिस्तानी कलाकार : शब्दों से बहा रहे आतंकियों के लिए आंसू, हानिया-माहिरा-फवाद हुए बेनकाब

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies