भारत शायद दुनिया का ऐसा अकेला देश है। जहां बहुसंख्यक अपने मंदिरों अपने पूजा स्थलों के लिए न्यायालय में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। अयोध्या में करीब 500 वर्ष बाद हिंदुओं के आराध्य भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बनना संभव हो पाया। अभी काशी, मथुरा, सम्भल, बदायूं और बरेली के नाथ कॉरिडोर पर मुसलमानों की तरफ से अड़ंगा लगाया जा रहा है। तभी तो सम्भल के मुद्दे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा कि ‘‘संभल में कुओं को किसने पाट दिया? आखिर मूर्तियां कैसे मिल रही हैं? नोटिस से परेशानी क्यों हो रही है? लखनऊ का शिया-सुन्नी विवाद भी भारतीय जनता पार्टी के समय ही समाप्त हुआ था।’’
सम्भल में है हरिहर मंदिर
पौराणिक इतिहास और साक्ष्यों के आधार पर हिन्दू पक्ष का दावा है कि सम्भल की जामा मस्जिद दरअसल में हरिहर मंदिर है। हिन्दू पक्ष की तरफ से जनपद न्यायालय में वाद योजित किया गया है। इस मुकदमे की सुनवाई करते हुए जनपद न्यायालय ने अधिवक्ता रमेश राघव को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर यह कहा कि विवादित परिसर का सर्वे करके न्यायालय में रिपोर्ट प्रस्तुत की जाय। गौरतलब है कि इस प्रकृति के किसी भी सिविल वाद में न्यायालय, एडवोकेट कमिश्नर से विवादित भूखण्ड या परिसर की सर्वे रिपोर्ट मांगती है। इस दौरान मुसलमानों को उनके नेताओं ने यह कहकर उकसाया कि मस्जिद खतरे में है और मस्जिद को बचाना है। इसके बाद गत 24 नवंबर को जब सर्वे टीम मस्जिद में पहुंची तो उन लोगों पर हमला किया गया था।
अभी हाल ही में बिजली की जांच के दौरान अधिकारियों को सम्भल में एक मंदिर के बारे में पता लगा। मंदिर को 46 वर्ष पहले बंद करा दिया गया था। मंदिर में कई दशक पुरानी हनुमान जी की मूर्ति एवं शिवलिंग भी मिला। वहां सफाई कराने के बाद पूजा अर्चना शुरू कराई गई। इसके साथ ही मंदिर के पास स्थित कुए पर भी अवैध रूप से कब्जा पाया गया। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और मुजफ्फरनगर जिले में भी शिव मंदिर मिले हैं। अलीगढ़ में 50 साल पुराना एक शिव मंदिर मिला है, जो सालों से बंद था। मंदिर मलबे से दबा और ढका हुआ था।
मंदिर की सूचना मिलने पर पुलिस और हिंदू संगठन के लोग मौके पर पहुंचे। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई की गई और देर रात यहां आरती भी की गई। इसी तरह मुजफ्फरनगर जिले के लद्धावाला मोहल्ले में एक खंडहर हुआ शिव मंदिर मिला। 54 साल पहले 1970 में में मंदिर की स्थापना हुई थी। तब यह हिंदू बहुल क्षेत्र था और मंदिर में पूजा-अर्चना होती थी। साल 1992 में हुए दंगों के बाद हिंदू यहां से पलायन कर गए। इसके बाद देखरेख के अभाव में मंदिर खंडहर हो गया था।
सम्भल मामले में याची महंत ऋषिराज का कहना है कि हरिहर मंदिर की लड़ाई बहुत ही पुरानी है। इस क्षेत्र के सभी लोग जानते हैं कि यह हरिहर मंदिर है। बाबर ने अयोध्या और संभल के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी। बाबरनामा में हरिहर मंदिर का उल्लेख है। हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि वर्ष 1920 में नोटिफिकेशन हुआ था। तब से यह परिसर आर्किलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अधीन था। मुस्लिम लोगों ने इस पर कब्जा कर लिया। आर्किलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम को पलायन करना पड़ा। विधिक रूप से यह परिसर केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित है।
श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद
हिंदुओं के मंदिरों को आक्रांताओं ने तोड़कर मस्जिद बनाई थी। उसके बावजूद भी जिन पूजा स्थलों पर विवाद है उन सभी स्थानों पर मुसलमानों की ओर से न्यायालय में कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में दोनों तरफ से 18 मुकदमे दायर हैं। हिंदू पक्षकारों का कहना है कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है और ये लोग उस पर अवैध रूप से काबिज हैं। अगर उक्त संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वक्फ बोर्ड को बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की है। किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करना, उसकी प्रकृति बदलना और बिना स्वामित्व के उसे वक्फ संपत्ति में परिवर्तित करना वक्फ की प्रकृति है और इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती।
यह भी तर्क दिया गया है कि इस मामले में वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे क्योंकि विवादित संपत्ति,वक्फ संपत्ति नहीं है। प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधान विवादित संपत्ति के पूरे हिस्से पर लागू होते हैं। इसकी अधिसूचना 26 फरवरी 1920 को जारी की गई थी और अब इस संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होंगे। यह पूरा विवाद मथुरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है, जिसके बारे में हिन्दुओं का दावा है कि इसे भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर स्थित मंदिर को तोड़कर बनाया गया था।
हिंदू प्रतीक चिन्हों से भी आपत्ति
मथुरा के बाद मुसलमानों को बरेली के नाथ कॉरिडोर से भी खासी परेशानी है। उत्तर प्रदेश सरकार बरेली में नाथ कॉरिडोर बनवा रही है। इसी क्रम में बरेली जनपद में अलकनाथ मंदिर रोड पर बिजली के खंभों पर अब त्रिशूल लगाने का कार्य प्रगति पर है। अब इस पर भी मुसलमानों को आपत्ति है। आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा है कि ‘बिजली के खंभों पर त्रिशूल और ओम बनाने के कार्य को रोका जाए।’ मौलाना को हिन्दू प्रतीक और चिन्हों को लेकर आपत्ति है। हालांकि धमार्चार्यों ने प्रदेश सरकार के इस कार्य का खुलकर समर्थन किया है। हिन्दुओं का कहना है कि बरेली नगरी नाथों की नगरी है। बिजली के खंभों पर त्रिशूल लगाए जा रहे हैं। इससे किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
केशव देव विग्रह विवाद
आगरा जनपद न्यायालय के सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों से केशवदेव के विग्रह को निकलवाया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि विवादित स्थल का जीपीएस सर्वे कराया जाए। याची की तरफ से यह भी मांग की गई है कि मुकदमे का निस्तारण होने तक सीढ़ियों पर आवाजाही पर रोक लगाई जाए। याची का पक्ष सुनने के बाद न्यायालय ने आदेश सुरक्षित रख लिया है। इस मुकदमे में महानिदेशक आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया, छोटी मस्जिद दीवान ए खास, जहांआरा बेगम मस्जिद आगरा फोर्ट और शाही जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी के पदाधिकारियों को पक्षकार बनाया है।
नीलकंठ महादेव विवाद
इसी प्रकार गत 8 अगस्त 2022 को मुकेश पटेल ने न्यायालय में याचिका दाखिल की। याचिका में कहा गया है कि बदायूं की जामा मस्जिद में पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर था। मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि पुरातत्व विभाग इसे राष्ट्रीय धरोहर बता चुका है। इसलिए राष्ट्रीय धरोहर से दो सौ मीटर तक का क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में है। इंतजामिया कमेटी की तरफ से कहा गया कि उच्चतम न्यायालय ने मंदिर-मस्जिद विवाद में कोई भी आदेश देने पर रोक लगा रखी है। इस मुकदमे की अगली सुनवाई 24 दिसंबर को को होगी।
मुसलमान वैसे तो भाई-चारे की बात करते हैं मगर जहां – जहां पर भी हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बनाई गई है वहां से अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है। हिंदुओं की तरफ से कभी भी मुसलमानों के जुलूस पर हमला नहीं किया लेकिन हर बार विजयादशमी पर अनेक स्थानों पर हिन्दुओं पर हमला किया जाता है। इस बारे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कह चुके हैं कि मोहर्रम या कोई भी मुस्लिम त्योहार का जुलूस हिंदू मोहल्ले से, मंदिर के सामने से सुरक्षित निकल जाता है तो कई समस्या नहीं होती। समस्या वहीं पर क्यों खड़ी होती है, जब कोई हिंदू शोभायात्रा किसी मस्जिद के सामने या मुस्लिम बाहुल क्षेत्र से निकलती है। क्या भारत की धरती पर केसरिया झंडा नहीं लग सकता। पूछना चाहता हूं कि हिंदू मोहल्ले से और मंदिर के सामने से मुस्लिम जुलूस निकल सकता है तो मुस्लिम मोहल्ले से कोई शोभायात्रा क्यों नहीं निकल सकती?
काशी में मिला प्राचीन शिव मंदिर
सम्भल के बाद काशी के मुस्लिम बहुल इलाके मदनपुरा में प्राचीन मंदिर मिला है।। सनातन रक्षक दल के अध्यक्ष अजय शर्मा ने बताया कि सिद्धेश्वर मंदिर है। काशी खंड में मंदिर का वर्णन है। हमारी मांग है कि मंदिर में पूजा पाठ करने की अनुमति प्रदान किया जाए। सनातन रक्षक दल के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा ने दावा किया है कि वाराणसी में 18 पौराणिक तीर्थ भी लुप्त हैं। जिसमें दो योगिनियों का मंदिर भी शामिल है।
सम्भल में बांके बिहारी जी का मंदिर
सम्भल के मुस्लिम बाहुल क्षेत्र लक्ष्मणगंज में 150 वर्ष पुराना बांके बिहारी जी का मंदिर मिला है। हिंदुओं के पलायन के बाद मंदिर बंद हो गया था। वर्ष 2010 में कुछ अराजक तत्वों ने मूर्तियों को खंडित कर दिया था। मंदिर चारों ओर से मुस्लिम आबादी से घिरा हुआ है। इसलिए मंदिर में रख-रखाव नहीं हो पाया। लक्ष्मणगंज में कभी हिंदू रहा करते थे, लेकिन अब पूरा इलाका मुस्लिम बाहुल हो गया है।
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