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होम भारत उत्तर प्रदेश

बीच सड़क पर मारे गए हिंदू, संभल लौटे शख्स ने बताया दर्दनाक सच

सम्भल के खग्गू सराय मोहल्ले में 1978 के दंगों के दौरान हुई हिंसा की गहरी छाप आज भी कई परिवारों के दिलों में ताजी है।

by Mahak Singh
Dec 19, 2024, 02:19 pm IST
in उत्तर प्रदेश
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सम्भल के खग्गू सराय मोहल्ले में 1978 के दंगों के दौरान हुई हिंसा की गहरी छाप आज भी कई परिवारों के दिलों में ताजी है। 46 साल बाद अपने घर लौटे देवेंद्र रस्तोगी ने अपनी पुरानी गलियों में कदम रखा और जैसे ही उन्होंने मंदिर में पूजा की, उनके भीतर की सारी यादें लौट आईं।

देवेंद्र रस्तोगी उन हिंदू परिवारों में से एक थे, जिन्होंने 1978 के दंगों के कारण अपने घर-परिवार, व्यापार और जड़ों को छोड़ दिया। उनका कहना है कि वे यहीं पले-बढ़े हैं और उनका बचपन यहीं के गलियों में बीता है। यहाँ उनकी परचून की दुकान थी लेकिन दंगों ने सब कुछ छीन लिया, तो उनका परिवार मोहल्ला कोटपूर्वी में जाकर बस गया।

1978 के दंगे और प्रशासन की नाकामी

देवेंद्र रस्तोगी के मुताबिक, 1978 के दंगे उनके जीवन के सबसे दर्दनाक और भयावह समय थे। उस वक्त खग्गू सराय में हिंदू और मुस्लिम परिवार एक साथ रहते थे लेकिन दंगों के दौरान इस मुस्लिम बहुल इलाके में पूरी तरह से भय और हिंसा का माहौल बन गया। उनके अनुसार, उस वक्त 100 से ज्यादा हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और रामनरेश यादव मुख्यमंत्री थे।

देवेंद्र का आरोप है कि उस समय के प्रशासन, विशेष रूप से तत्कालीन जिलाधिकारी फरहत अली ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उनका कहना है कि यदि समय रहते कार्रवाई की जाती, तो इस तरह के बड़े सांप्रदायिक दंगे कभी नहीं होते। उन्होंने बताया कि उस समय जब हिंदू समुदाय के लोग बीच सड़कों पर मारे जा रहे थे, प्रशासन ने कोई मदद नहीं की और दंगाइयों का हौसला लगातार बढ़ता चला गया।

पलायन

देवेंद्र ने इस घटना को याद करते हुए कहा कि दंगों के बाद खग्गू सराय से बड़ी संख्या में हिंदू परिवार पलायन कर गए और इस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की संख्या बढ़ गई। इससे न केवल इस इलाके की जनसांख्यिकी में बदलाव आया, बल्कि शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को भी गहरा धक्का लगा।

बचपन की यादें

हालांकि देवेंद्र ने 46 साल बाद अपने पैतृक मोहल्ले की गलियों में कदम रखालेकिन उनका दिल इस बदलाव को देखकर बहुत भावुक हो गया। उन्होंने बताया कि मंदिर तो अब भी वैसा ही है लेकिन वह पुराना माहौल और आत्मीयता अब नहीं रही। बचपन में जिन गलियों में खेलते थे आज वे सुनी और वीरान नजर आईं।

देवेंद्र रस्तोगी का कहना है कि भले ही वे इस जगह को छोड़कर कहीं और बस गए थे लेकिन इन जगहों और यादों को कभी नहीं भुला पाए। मंदिर में पूजा-अर्चना करते समय पुरानी यादें फिर से ताजगी से लौट आईं और उन्हें यह महसूस हुआ कि उनका दिल हमेशा इन गलियों में बसा रहेगा।

Topics: Sambhal NewsUttar Pradesh NewsSambhal templesambhal mandirSambhal Mandir KhodaiSambhal KuaSambhal Mandir Well#muslim#hinduUP news
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