19 December Special : नेहरू के रिश्तेदार ने रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी पर चढ़वाया
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19 December Special : नेहरू के रिश्तेदार ने रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी पर चढ़वाया

अंग्रेजों की ओर से पं. मोतीलाल नेहरू लोक अभियोजक (पब्लिक प्रोसीक्यूटर) बने और अपने रिश्तेदार और जूनियर पं.जगत नारायण मुल्ला को मैदान में उतार दिया। उन्होंने मोतीलाल नेहरू के आशीर्वाद से रामप्रसाद बिस्मिल सहित अन्य महारथियों को फाँसी की सजा दिलवा कर ही दम लिया।

by डॉ. आनंद सिंह राणा
Dec 19, 2024, 09:00 am IST
in भारत
अमर बलिदानी पं. राम प्रसाद बिस्मिल

अमर बलिदानी पं. राम प्रसाद बिस्मिल

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास और भविष्य की सच्चाई यही रही है कि जिन हुतात्माओं ने स्वतंत्रता संग्राम में बरतानिया सरकार के विरुद्ध जंग लड़ी उनको देशद्रोही, आतंकवादी लुटेरा और डकैत कहा गया तथा उन्हें ही फाँसी और कालापानी की सजाएँ दी गईं, इसके विपरीत बरतानिया सरकार का समर्थन कर, सरकार में सम्मिलित होकर छक्के – पंजे उड़ाने वाले, डोमिनियन स्टेट्स की मांग करने वाले कांग्रेसी और अन्य तथाकथित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बन कर इतिहास में छा गए और सत्ता भी प्राप्त कर ली। सत्ता प्राप्त करने के उपरांत इन तथाकथित नेताओं ने बरतानिया सरकार के मत प्रवाह का ही समर्थन किया और भारतीय इतिहास को बर्बाद करने की जिम्मेदारी वामपंथी और सेक्युलर इतिहासकारों को दे दी, जिसका दुष्परिणाम सबके सामने है। आज महा महारथी श्रीयुत रामप्रसाद बिस्मिल के बलिदान दिवस पर ये तय हो कि राम प्रसाद बिस्मिल सही थे या श्रीयुत मोतीलाल नेहरु के रिश्तेदार और जूनियर पं. जगत नारायण मुल्ला? बरतानिया सरकार के विरुद्ध सर्वप्रथम महा महारथी रामप्रसाद बिस्मिल ने फाँसी पर चढ़ते समय सिंह गर्जन किया था

“I wish the downfall of British Empire.”

विडंबना तो देखिए की काकोरी अनुष्ठान को लूट बताया गया और बिस्मिल सहित समस्त क्रांतिकारियों के विरुद्ध अंग्रेजों की ओर से पं. मोतीलाल नेहरू लोक अभियोजक (पब्लिक प्रोसीक्यूटर)बने, मोतीलाल नेहरु ने चतुराई दिखाते हुए अपने रिश्तेदार और जूनियर पं.जगत नारायण मुल्ला को मैदान में उतार दिया। फिर क्या था प. जगत नारायण मुल्ला ने मोतीलाल नेहरू के आशीर्वाद से रामप्रसाद बिस्मिल सहित अन्य महारथियों को फाँसी की सजा दिलवा कर ही दम लिया।

अंग्रेज़ों और काँग्रेस ने पं जगत नारायण मुल्ला को खूब उपकृत किया, इतना ही नहीं वरन् उनके पुत्र पं आनंद नारायण मुल्ला को कांग्रेस ने 10 वर्ष सांसद बनने का सुख दिया, फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट न्यायधीश भी बनाया गया और पुन: राज्य सभा भेजा गया। परंतु महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों क्या मिला? लुटेरा और आतंकवादी का तमगा-आखिर क्यों? पूँछता है भारत?

अब रामप्रसाद बिस्मिल की सुनिए। महान स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून सन 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। उनके पिता एक रामभक्त थे, जिसके कारण उनका नाम राम से रामप्रसाद रख दिया गया।राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने पिता से हिंदी और पास में रहने वाले एक मौलवी से उर्दू सीखी। बिस्मिल शाहजहांपुर के एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में भी गए। इसलिए विभिन्न भाषाओं पर उनकी पकड़ ने उन्हें एक उत्कृष्ट लेखक और कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया।

राम प्रसाद बिस्मिल के बचपन में आर्य समाज उत्तर भारत में प्रभावशाली आंदोलन के रूप में उभर रहा था। बिस्मिल भी आर्य समाज में सम्मिलित हो गए। वह एक लेखक और कवि के रूप में पहचान बनाने लगे। उन्होंने हिंदी और उर्दू में ‘अज्ञात’, ‘राम’ जैसे उपनामों से देशभक्ति के छंद लिखे। उनका सबसे प्रसिद्ध उपनाम ‘बिस्मिल’ था।

स्कूल तक की पढ़ाई समाप्त करने के बाद बिस्मिल राजनीति में शामिल हो गए। हालांकि, शीघ्र ही उनका कांग्रेस पार्टी के तथाकथित उदारवादी धड़े से मोहभंग हो गया। बिस्मिल अपने देश की स्वाधीनता हेतु भिक्षावृति के लिए तैयार नहीं थे। वह स्वाधीनता को शौर्य पूर्वक प्राप्त करना चाहती थे। जैसा कि उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक ‘गुलामी मिटा दो’ में दृष्टिगोचर होता है-अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने ‘मातृवेदी’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। इसके बाद बिस्मिल ने अपने साथी क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित के साथ मिलकर सेना बनाई। तदुपरांत मैनपुरी अनुष्ठान किया गया।

सन 1918 में बिस्मिल अपनी सबसे प्रसिद्ध कविता मैनपुरी की प्रतिज्ञा लिखी, जिसे पैम्फलेट में संयुक्त प्रांत में वितरित किया गया। उनकी कविता की राष्ट्रवादी लोगों ने प्रशंसा की। बिस्मिल के नए बने संगठन को धन की आवश्यकता थी। इसके लिए उन्होंने वर्ष 1918 में मैनपुरी जिले के सरकारी कार्यालयों से तीन बार धन हस्तगत किया। बरतानिया सरकार में सनसनी फैल गई।

बड़े पैमाने पर तलाशी शुरू की गई और बिस्मिल का पता लगा लिया गया। इसके बाद जो हुआ वह एक नाटकीय गोलीबारी थी जिसके अंत में बिस्मिल यमुना नदी में कूद गए और बचने के लिए पानी के नीचे तैरते हुए पलायन कर गये ।इसके बाद बिस्मिल अगले 2 वर्षों तक भूमिगत रहे।

फरवरी 1920 में जब मैनपुरी अनुष्ठान मामले के सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया, तो बिस्मिल अपने घर शाहजहांपुर लौट आए। वहां उन्होंने शुरू में कांग्रेस के नेतृत्व वाले असहयोग आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने का काम किया। लेकिन गांधी द्वारा 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस लेने फैसले से क्षुब्ध होकर बिस्मिल ने अपनी खुद का दल बनाने का निर्णय लिया।

अंततोगत्वा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, शचीन्द्रनाथ सान्याल और योगेश चंद्र चटर्जी जैसे संस्थापक सदस्यों ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद और बाद में भगत सिंह भी एच.आर.ए.में सम्मिलित हुए। उनका घोषणा पत्र मुख्य रूप से बिस्मिल ने लिखा था। आधिकारिक तौर पर घोषणा पत्र 1 जनवरी, 1925 को जारी किया गया, जिसका शीर्षक था- क्रांतिकारी। 9 अगस्त सन 1925 रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क़ो एच.आर.ए.ने बरतानिया सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम लड़ने हेतु धन एकत्रित करने के लिए काकोरी अनुष्ठान किया।

9 अगस्त, सन 1925 को जबआठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन,लखनऊ से लगभग 15 किमी दूर काकोरी स्टेशन से गुजर रही थी, एच.आर.ए.के एक महारथी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, जो पहले से ही अंदर बैठे थे, उन्होंने ट्रेन की चेन खींच दी और ट्रेन को रोक दिया। तदुपरांत राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह खां सहित लगभग दस क्रांतिकारी ट्रेन में घुसे और मुठभेड़ के बाद गार्ड को काबू किया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 4,679 रुपये, एक आना और 6 पैसे क़ी धनराशि क्रांतिकारियों ने हस्तगत कर ली और पलायन कर गए। काकोरी अनुष्ठान ने,न केवल भारत वरन इंग्लैंड की बरतानिया सरकार को हिला कर रख दिया।

काकोरी अनुष्ठान से बरतानिया सरकार थर्रा उठी थी इसलिए येन- केन- प्रकारेण क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया। इस अभियान में बरतानिया सरकार के आठ लाख रुपए खर्च हुए।

अंततः अठारह महीने की लंबी नौटंकी के बाद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, रोशन सिंह और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को मौत की सजा सुनाई गई। 19 दिसंबर, सन 1927 को महारथी राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया।

क्या गलत कहते थे राम प्रसाद बिस्मिल जी? क़ि “हम अमन चाहते हैं,जुल्म के खिलाफ, ग़र फैसला जंग से होगा, तो जंग ही सही “। उन्होंने “मेरा रंग दे बसंती चोला” गीत कारावास में ही लिखा और सरदार भगत सिंह ने इसमें यहां से पंक्तियां जोड़ीं “इसी रंग में बिस्मिल जी ने वंदेमातरम् बोला.”।

विश्व के महान क्रांतिकारी शायर महा महारथी बिस्मिल ने न्यायालय में कहा था क़ि

“मुलाजिम मत कहिए हमको, बड़ा अफसोस होता है..
अदालत के अदब से, हम यहाँ तशरीफ लाये हैं..
पलट देते हैं हम, मौजे – हवादिस अपनी जुर्रत से..
कि हमने आँधियों में भी, चिराग अक्सर जलाये हैं”।

इसलिए रामप्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानतम क्रांतिकारी कवि थे। विश्व के महान् क्रांतिकारी शायर रामप्रसाद बिस्मिल ने कालजयी शेर कहा कि “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।” औऱ ये भी पढ़िए क़ि आखिरी शब दीद के काबिल थी, बिस्मिल की तड़प.. सुब्ह दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या? स्वतंत्रता के महारथी बिस्मिल ने लिखी अपने फाँसी के पूर्व ये अंतिम गज़ल जिसकी अंतिम पंक्तियाँ थीं।

काकोरी की घटना लूट या षड्यंत्र या काण्ड नहीं वरन् स्वतंत्रता के लिए दिव्य अनुष्ठान था।. मेरा विचार है कि काकोरी महायज्ञ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे हैरतअंगेज और अंग्रेजी सरकार भयाक्रांत करने वाली घटना थी।स्वतंत्रता के अमृत काल में क्या अब भी काकोरी अनुष्ठान को षड्यंत्र और लूट कहेंगे?

गूगल में भी यही सब डाल रखा है! क्या अब भी नहीं सुधारेंगे?अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों के खून-पसीने की कमाई को लूटा तो वह लूट नहीं है,इन महावीरों ने अंग्रेज लुटेरों से अपना रुपया देश की स्वाधीनता की लड़ाई के लिए हस्तगत किया, तो वह लूट हो गयी। वाह रे! अंग्रेजी इतिहासकारों और उन पर आश्रित परजीवी इतिहासकारों,मार्क्सवादी इतिहासकारों..अब तो शरम करो, धिक्कार है!! परंतु अब हम और आप मिलकर इतिहास का पुनर्लेखन कर इस दाग को जड़ से मिटाएंगे।

Topics: रामप्रसाद बिस्मिलNehru's relativeRamprasad BismilNehru's relative Jagat Narayanपाञ्चजन्य विशेषपं.जगत नारायण मुल्ला19 दिसंबर स्पेशलपं. मोतीलाल नेहरू19 December SpecialPt. Jagat Narayan Mullaरामप्रसाद बिस्मिल को फांसीPt. Motilal Nehruरामप्रसाद बिस्मिल की पुण्यतिथिनेहरु के रिश्तेदार जगत नारायणRamprasad Bismil hangedRamprasad Bismil's death anniversaryNehru's relative traitor
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