बांग्लादेश में विजय दिवस पर भी जारी रहा भारत से घृणा का रवैया
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बांग्लादेश में विजय दिवस पर भी जारी रहा भारत से घृणा का रवैया

उनकी यह घृणा बार-बार और लगातार ही 5 अगस्त के बाद से दिख रही है। क्या यही कारण है कि इस बार ढाका के सुहरावर्दी पार्क में सेना की परेड नहीं हुई? सुहरावर्दी पार्क वही पार्क है जहां पर पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था

by सोनाली मिश्रा
Dec 18, 2024, 07:30 am IST
in भारत, विश्लेषण
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16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान भाषाई आधार पर बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया था और यह पूरी दुनिया को पता है कि बांग्लादेश कभी भी भारत की सहायता के बिना अस्तित्व में नहीं या पाता। यह भारत की ही सूझबूझ और साहस था, जिसने उर्दू बोलने वाले पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से बांग्ला भाषी पूर्वी पाकिस्तान को अलग कराकर एक नई पहचान दिलाई थी।

शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत सहित अन्य प्रकार की तमाम धरोहरें नष्ट करने वाला नया बांग्लादेश अब भारत की उस भूमिका को भी नकारना चाहता है, जो बांग्लादेश निर्माण में इतिहास में दर्ज हैं। यह विजय दिवस भारतीय सेना का ही विजय दिवस था, जिसमें उसने पाकिस्तान की सेना को हराया था। बांग्लादेश के लिए यह विजय दिवस है या नहीं, यह वह तय करे, परंतु भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम के लिए तो यह दिवस विजय दिवस है ही।

परंतु यह भी बात सत्य है कि मौजूदा दौर में वही तत्व बांग्लादेश की राजनीति में हावी होते जा रहे हैं, जो अपनी पहचान पूर्वी पाकिस्तान की ही रखना चाहते हैं, हाँ वे आवरण जरूर बांग्लादेश नाम का फिलहाल चाह रहे हैं।

उनकी यह घृणा बार-बार और लगातार ही 5 अगस्त के बाद से दिख रही है। और विजय दिवस के अवसर पर भी दिखी। विजय दिवस के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, जिसमें भारतीय सेना के शौर्य की सराहना की गई थी। उन्होनें लिखा कि

“”आज विजय दिवस पर हम उन बहादुर सैनिकों के साहस और बलिदान का सम्मान करते हैं जिन्होंने 1971 में भारत की ऐतिहासिक जीत में योगदान दिया। उनके निस्वार्थ समर्पण और अटूट संकल्प ने हमारे राष्ट्र की रक्षा की और हमें गौरव दिलाया। यह दिन उनकी असाधारण वीरता और उनकी अडिग भावना को श्रद्धांजलि है। उनका बलिदान हमेशा पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और हमारे देश के इतिहास में गहराई से समाया रहेगा।”

Today, on Vijay Diwas, we honour the courage and sacrifices of the brave soldiers who contributed to India’s historic victory in 1971. Their selfless dedication and unwavering resolve safeguarded our nation and brought glory to us. This day is a tribute to their extraordinary…

— Narendra Modi (@narendramodi) December 16, 2024

उनकी इस पोस्ट को लेकर सोशल मीडिया पर बांग्लादेशी शोर मचा रहे हैं। वे अपनी बेइंतहा नफरत दिखा रहे हैं। उनका कहना है कि यह विजय भारत की नहीं बल्कि बांग्लादेश की थी और भारत केवल एक सहयोगी था। उन्हें इस बात से आपत्ति है कि भारत ने इसे अपनी जीत क्यों कहा? बांग्लादेश के नेता से लेकर आम कट्टरवादी लोग भी सोशल मीडिया पर इसे लेकर शोर मचा रहे हैं।

बीएनपी के नेता इशरक हुसैन ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि वह विजय दिवस को लेकर नरेंद्र मोदी के भ्रामक वक्तव्य की निंदा करता है। मोदी के शब्द बांग्लादेश की आजादी की जंग को नकारते हैं। ऐसे कदम बांग्लादेश और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों के लिए मददगार नही होंगे।

I strongly condemn and protest against Narendra Modi’s misleading statement on 16th December Bangladesh’s Victory Day. Modi’s words clearly undermine our liberation war, our sovereignty, our martyrs and our dignity. Such moves will not be helpful for bilateral relations between… pic.twitter.com/ZIsPeW0jM6

— Ishraque Hossain (@ishraqueBD) December 16, 2024

तो वहीं बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कानूनी सलाहकार आसिफ नज़रुल ने अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखा कि भारत 1971 के युद्ध में केवल एक सहयोगी था।

कथित छात्र आंदोलन के नेता हसनत अब्दुल्ला ने भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस वक्तव्य की आलोचना की और कहा कि यह जंग बांग्लादेश की आजादी की जंग थी और भारत ऐसे श्रेय नहीं ले सकता है। उसने इस वक्तव्य को भारत से धमकी कहा और कहा कि उन लोगों को अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए।

बांग्लादेश में भारत की सहायता की छवि से पीछा छुड़ाने की इतनी छटपटाहट है कि इस बार विजय दिवस के अवसर पर उन शेख मुजीबुर्रहमान का जिक्र तक नहीं किया गया, जिन्होनें लोगों को एकत्र करने में और बांग्ला अस्मिता और पहचान को लेकर पश्चिमी पाकिस्तान से जंग छेड़ने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे उस जंग के नेता थे, मगर इस बार उनका जिक्र नहीं किया गया। विजय दिवस के दिन का प्रयोग भी भारत को कोसने के लिए ही बांग्लादेश में किया गया।

यही नहीं दैनिक भास्कर के अनुसार 16 दिसंबर को बांग्लादेश में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की निर्वासित प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ काफी नारेबाजी हुई। इसके अनुसार एक नारा जो सबसे ज्यादा बोला गया वह था

“दिल्ली नी ढाका” अर्थात बांग्लादेश पर अब दिल्ली का नहीं, ढाका का राज चलेगा!

वैसे भी ढाका में ढाका का ही राज चलता था और चलता है, दिल्ली का राज कब और कैसे चला? मगर यह एक ग्रन्थि है जो कट्टर मजहबी पहचान वाले लोगों के भीतर धँसी है, जिसके अनुसार कैसे एक बहुलतावादी अर्थात गैर-मुस्लिम देश कैसे एक इस्लामी मुल्क की मदद कर सकता है? भारत ने बांग्लादेश की आजादी के लिए जो किया है, उसकी मिसाल शायद ही कहीं मिले, मगर बांग्लादेश का एक बहुत बड़ा वर्ग जो शायद पाकिस्तान से अलग होने की बात न करता हो, या जिसकी मंशा पूर्वी पाकिस्तान की ही पहचान की हो, वह भारत को अपना दुश्मन इसलिए मानता है, क्योंकि उसने उसे “ढाका” की पहचान से अलग कर दिया?

बांग्लादेश में ढाका का ही राज चलता है, मगर क्या नारे लगाने वाले उस ढाका की बात कर रहे हैं, जिस ढाका में “मुस्लिम लीग” की नींव रखी गई थी, और दिल्ली का साथ उस ढाका की पहचान बरकरार रखे हुए है, जिसमें ढाकेश्वरी देवी का मंदिर है?

क्या यही कारण है कि इस बार ढाका के सुहरावर्दी पार्क में सेना की परेड नहीं हुई? सुहरावर्दी पार्क वही पार्क है जहां पर पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था और किसके सामने किया था, यह सभी जानते हैं। मीडिया में और सोशल मीडिया में आई रिपोर्ट्स सभी से यही संकेत मिलता है कि बांग्लादेश का इस बार का विजय दिवस केवाल भारत का विरोध करने के लिए ही मनाया गया।

Topics: Pakistan linguistic basisबांग्लादेश विजय दिवसभारत से घृणाबांग्लादेश में विजय दिवसपाकिस्तान भाषाई आधारBangladesh Victory Dayhatred towards IndiaVictory Day in Bangladesh
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