हिंदुओं और शियाओं की हत्या करने वाले और हिंदू मंदिरों को तोड़ने वाले गुलाम वंश के इल्तुतमिश ने इस कारण अपनी बेटी रजिया को गद्दी सौंपी क्योंकि उसका कोई भी बेटा इस लायक नहीं रह गया था कि वह गद्दी पर बैठ सके। रजिया पुरुषों की तरह वस्त्र पहनकर गद्दी पर बैठती थी। वह पर्दा नहीं करती थी। इससे एक बात साबित होती है कि पर्दा भारत में कहां से आया।
रजिया के बारे में यही कहा जाता है कि उसने पर्दा छोड़ा और उसके बाद उसने शासन किया। रजिया सुल्तान के शासनकाल के बारे में बहुत कुछ जानकारी नहीं मिलती है, या फिर यह कहा जाए कि उसके विषय में मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा ही नहीं, क्योंकि उसने पुरुषों के कपड़े पहनने शुरू कर दिए थे और उसने पर्दा छोड़ दिया था।
भारत में फेमिनिस्ट इस बात को बहुत गर्व से बताती हैं कि यह इल्तुतमिश ही था, जिसने अपनी बेटी को गद्दी सौंपी। मगर रजिया को शासन किस कारण नहीं करने दिया, यह नहीं बताती हैं। रजिया की मौत किस कारण हुई, इस बात पर भी वे चुप्पी साध लेती हैं। इल्तुतमिश ने किस कारण से रजिया को गद्दी सौंपी थी, इस सवाल की भी तहकीकात में जाना चाहिए। रजिया के लिए सहानुभूति रखने वाली जमात और उस पर फख्र करने वाली जमात यह नहीं बताती है कि वह उसी कुतुबउद्दीन ऐबक की बेटी की बेटी थी, जिसने असंख्य मंदिर तोड़े थे और वह उसी इल्तुतमिश की बेटी थी, जिसने उज्जैन में बना हुआ महाकाल का मंदिर तोड़ा था। क्या रजिया ने कभी इन सब कुकृत्यों का विरोध किया? शायद नहीं! उसने वही विरासत संभाली जो हिंदुओं और इस्लाम के दूसरे फिरकों के लोगों के खून से भरी थी।
कुतुबउद्दीन ऐबक का गुलाम और दामाद था इल्तुलतिमश। इल्तुतमिश ने अपने बेटे नसीरुद्दीन मोहम्मद को सुल्तान बनाने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया था, लेकिन उसकी मौत 1229 में हो गई और उसके लिए सुल्तान गढ़ी का वह मकबरा बनाया गया, जिसमें हिन्दू मंदिरों के शिखर भी मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उसे बनाने में टूटे हुए मंदिरों की सामग्री लगी थी। ये मंदिर किसने तोड़े थे, यह नहीं पता है।
नसीरुद्दीन की मौत के बाद इल्तुतमिश ने अपने अन्य बेटों की जगह अपनी बेटी को अगला सुल्तान बनाने का फैसला किया। इल्तुतमिश की मौत के बाद उसके सरदारों ने रजिया की जगह उसके दूसरे बेटे रुकनूद्दीन फिरोज को सुल्तान बना दिया, जिसकी आड़ में इल्तुतमिश की दूसरी बीवी शासन करती थी और उसने जब रजिया को मार डालने की साजिश रची तो सरदारों ने रुकनूद्दीन को गद्दी से हटाकर रजिया को गद्दी पर बैठा दिया।
ऐसा प्रतीत होता है कि जब तुर्की सरदारों ने उसे गद्दी पर बैठाया था तब वह पर्दा करती थी। मगर कुछ दिनों के बाद उसने पर्दा करना बंद कर दिया था। परदे के हटते ही वही सरदार नाराज हो गए थे, जिन्होंने उसे गद्दी पर बैठाया था। इससे एक बात साफ होती है कि वह गद्दी पर अपने अब्बा के फरमान पर नहीं बल्कि अमीर और सरदारों के कारण बैठी थी, जिन्हें यह लगा था कि वह परदे में रहेगी और उनके इशारों पर चलेगी।
रजिया ने जैसे ही पर्दा छोड़ा और पुरुषों के कपड़ों मे सामने आई वैसे ही वही लोग उसके दुश्मन बन गए। उसने भी सुल्तान बनने के बाद अपने अब्बा के हिन्दू द्वेषी रुख को ही आगे बढ़ाया। रणथम्भौर पर उसने हमला करवाया था, मगर वह राजपूतों को हराने में विफल रही। ग्वालियर पर भी हमला करवाया था, उसमें भी वह विफल रही थी। उसके शासनकाल में शियाओं ने भी विद्रोह किया था। शिया करमटियों ने दिल्ली की जामा मस्जिद पर हमला किया और 5 मार्च 1237 को जुमे की नमाज के लिए इकट्ठे हुए सुन्नी मुस्लिमों को मारना शुरू कर दिया था।
रजिया खुद एक गुलाम से इश्क कर बैठी थी, जिसे उसके तुर्की सरदारों ने पसंद नहीं किया और अंत में मात्र तीन वर्ष 6 महीने और 6 दिनों तक शासन करने के बाद उसकी मौत हो गई।
रजिया के बहाने इल्तुतमिश को प्रगतिशील कहने वाले यह नहीं बताते कि यह मात्र उस वंश के एक सुल्तान द्वारा सत्ता को अपने परिवार में ही रखने की साजिश थी, जिसमें गुलाम ही शासक होते थे। जैसे कुतुबउद्दीन ऐबक मोहम्मद गोरी का गुलाम था और इल्तुतमिश ऐबक का गुलाम था। तो क्या आगे कोई भी आम आदमी सुल्तान न बन पाए इसके लिए गद्दी आरक्षित करने की साजिश थी रजिया को गद्दी पर बैठाना? इन सबसे बढ़कर कि क्या रजिया ने हिन्दू जनता के लिए मंदिर बनवाने का या फिर अपने अब्बा के द्वारा तोड़े गए मंदिरों को सही करने का कोई कार्य किया, जिसके लिए हिन्दू या भारतीय समाज उस पर गर्व करे?
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