नए प्रधानमंत्री के रूप में फ्रांस्वा बायरू के सामने भी चुनौतियां कम नहीं होंगी लेकिन उनके लंबे राजनीतिक अनुभव को देखते हुए, राष्ट्रपति मैक्रों मानते हैं कि वे देश को अस्थिरता के दौर से उबार लेंगे। जैसा पहले बताया, फ्रांस की नेशनल असेंबली में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण उस देश में अभूतपूर्व राजनीतिक असमंजसता पैदा हुई है।
फ्रांस में गत आम चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने और वामपंथी दलों के गठबंधन को सत्ता में आने देने से रोकने के चलते राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों के सामने एक के बाद एक चुनौती आ रही है। देश को चलाने के लिए मजबूत सरकार बनाने के लिए उन्होंने पहले बार्नियर को प्रधानमंत्री बनाया था। लेकिन गत सप्ताह बार्नियर और उनकी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव में पराजित होने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद अब मैक्रों ने बायरू पर अपना भरोसा जताया है।
नए प्रधानमंत्री के रूप में फ्रांस्वा बायरू के सामने भी चुनौतियां कम नहीं होंगी लेकिन उनके लंबे राजनीतिक अनुभव को देखते हुए, राष्ट्रपति मैक्रों मानते हैं कि वे देश को अस्थिरता के दौर से उबार लेंगे। जैसा पहले बताया, फ्रांस की नेशनल असेंबली में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण उस देश में अभूतपूर्व राजनीतिक असमंजसता पैदा हुई है। जहां वामपंथी गठबंधन खुद को सरकार बनाने का जायज हकदार मान रहा है तो वहीं
राष्ट्रपति मैक्रों नहीं चाहते कि चुनावों के दौरान हिंसक प्रदर्शन करने वाले इस गठबंधन को सत्ता के आसपास भी फटकने दिया जाए। नए नामित प्रधानमंत्री बायरू के जल्दी अपनी सरकार का गठन करने की उम्मीद है। इसके लिए उन्होंने विभिन्न दलों के वरिष्ठ नेताओं के चर्चा करनी शुरू भी कर दी है।
मैक्रों ने जब कल फ्रांस्वा बायरू का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने रखा तो सहयोगी दलों को बायरू का अनुभव देखते हुए एक तसल्ली सी महसूस हुई। लेकिन संसद में आंकड़े सत्तारूझ गठबंधन के पक्ष में उतने न होने से संसद में उनका सबका भरोसा जीतना एक टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
फ्रांस में पहले माना जा रहा था कि बार्नियर संसद में अविश्वास प्रस्ताव की परीक्षा झेल जाएंगे और उनकी सरकार बनी रहेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। गत सप्ताह प्रस्तुत किए गए दक्षिणपंथी और वामपंथी दलों के साझा अविश्वास प्रस्ताव में उन्हें असफलता का मुंह देखना पड़ा था औश्र इस्तीफा देना पड़ा था।
तीन महीने के अंतराल में फ्रांस को दूसरा प्रधानमंत्री मिलने जा रहा है, यह स्थिति उस देश के राजनीतिक हालात के बारे में काफी कुछ साफ कर देती है। वामपंथी गठबंधन अदालत तक में मैक्रों के फैसले का चुनौती देने की बात कर चुका है।
मध्यमार्गी गठबंधन को राष्ट्रपति मैक्रों का भरोसा प्राप्त है, यही वजह है कि उसके प्रमुख सहयोगी 73 साल के बायरू को फ्रांस की राजनीति में दसियों साल का अनुभव होने की वजह से महत्वपूर्ण पद के लिए चुना गया है।
फ्रांस की राजनीति के विश्लेषक भी मानते हैं कि अनुभवी बायरू शायद राजनीतिक उथलपुथल को संभाल सकते हैं। नेशनल असेंबली में उनकी सरकार शायद विश्वास मत जीत लेगी। गत सप्ताह राष्ट्रपति मैक्रों ने साफ जता दिया था कि 2027 में उनके इस कार्यकाल की समाप्ति तक वे पद पर बने रहने वाले हैं। राष्ट्रपति कार्यालय ने भी आधिकारिक बयान जारी कर दिया है कि बायरू को जिम्मेदारी दी गई है कि वे नई सरकार का गठन करें।
लेकिन बायरू को इसके लिए विभिन्न दलों से बात करके मंत्रियों के नाम तय करने की जरूरत होगी। उनके लिए यह काम आसान नहीं होगा। मध्यमार्गी गठबंधन का संसद में बहुमत न होने की वजह से बायरू को बहुत संतुलन बैठाने की जरूरत पड़ेगी। उन्हें अपनी सरकार के लिए मंत्रियों के नाम तय करने के लिए दक्षिणपंथी और वामपंथी, दोनों धड़ों से बात करने की जरूरत पड़ने वाली है।
माना जा रहा है कि रूढ़ीवादी सांसदों के बायरू सरकार में शामिल हो सकते हैं। पिछले दिनों यूरोपीय संसद में पैसे के गबन को लेकर चली जांच के बाद बायरू तमाम आरोपों से बरी भी हो चुके हैं। वैसे बायरू 1993—1997 में फ्रांस के शिक्षा मंत्री के नाते खासे लोकप्रिय हुए थे। 2002, 2007 तथा 2012 में कवे राष्ट्रपति पद की दौड़ में भी शामिल रहे थे।
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