मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के भट्टियां गांव स्थित नर्मदा नदी के तट पर रहने वाले प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा का बुधवार सुबह निधन हो गया। 110 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने भक्तों को अलविदा कह दिया। उनके निधन की खबर से क्षेत्र और भक्तों में शोक की लहर दौड़ गई। जीवनभर अध्यात्म और साधना में लीन रहने वाले संत सियाराम बाबा के जीवन के कई प्रेरणादायक पहलू आज भी लोगों को मार्गदर्शन देते हैं।
सियाराम बाबा ने अपना पूरा जीवन नर्मदा नदी की साधना में समर्पित कर दिया। वे जीवनभर केवल नर्मदा का पानी ही पीते थे। उनके भक्त उन्हें “नर्मदा का सबसे बड़ा भक्त” कहते थे। वे नर्मदा नदी के तट पर स्थित अपने आश्रम में तपस्या करते थे और भगवान हनुमान के परम उपासक थे। दिन-रात रामायण का पाठ करना उनकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा था।
सियाराम बाबा की सबसे खास बात थी कि वे कभी किसी से 10 रुपये से अधिक का दान नहीं लेते थे। यदि कोई भक्त उन्हें 500 रुपये देता तो वे 490 रुपये लौटा देते थे। उनकी सादगी का उदाहरण उनके पहनावे में भी झलकता था। वे हमेशा लंगोटी पहनते और सरल जीवन जीते। इस कारण उन्हें लोग “दानी बाबा” भी कहते थे।
अध्यात्म में समर्पित जीवन
सियाराम बाबा का जन्म खरगोन जिले के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। गांव के स्कूल में पढ़ाई करने के बाद, कक्षा 7 में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और वैरागी हो गए। इसके बाद उन्होंने हिमालय की ओर रुख किया और वहां कठोर तपस्या की। हिमालय से लौटने के बाद उन्होंने नर्मदा के तट पर अपना आश्रम बनाया।
उनकी साधना की गहराई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 12 वर्षों तक मौन व्रत रखा और 10 वर्षों तक एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की। उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा इतनी प्रबल थी कि इस उम्र में भी उनके चेहरे पर तेज बना रहता था। उनके निधन की खबर सुनते ही उनके आश्रम में भक्तों का तांता लग गया। लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचने लगे। मुख्यमंत्री मोहन यादव सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी उनके प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की।
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