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हमारे इतिहास की पुस्‍तकों ने हमारे नायकों के साथ अन्‍याय किया है : उपराष्ट्रपति का दर्द कितना सही है !

वे राजा महेन्द्र प्रताप ही थे जिन्‍होंने 1909 में वृन्दावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केन्द्र था। मदनमोहन मालवीय इसके उद्धाटन समारोह में उपस्थित रहे

by WEB DESK
Dec 2, 2024, 12:32 am IST
in भारत, मत अभिमत
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नई दिल्ली के भारत मंडपम में राजा महेंद्र प्रताप की 138वीं जयंती समारोह मनाया जा रहा था, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के ह्दय में जो दर्द है, वह शब्‍दों में बाहर निकल रहा था, उन्‍होंने राजा महेंद्र प्रताप को लेकर बहुत कुछ कहा, फिर भी जो बात उनकी जयन्‍ती पर आज चुभ रही है, वह है कि ऐसे महान देश भक्‍त को जिसने न सिर्फ भारत की स्‍वतंत्रता के लिए अपना सबकुछ होम कर दिया, बल्‍कि सेवा और शिक्षा के लिए अपनी संत्‍त‍ियां दान कर खास से आम व्‍यक्‍ति बनने में जरा भी देरी नहीं की, उस व्‍यक्‍ति को आज कितने लोग जानते हैं ! इसलिए उपराष्‍ट्रपति धनखड़ यह कहने से अपने आप को रोक ना सके, “हमारी इतिहास की पुस्तकों ने हमारे नायकों के साथ अन्याय किया है। हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है और कुछ लोगों का एकाधिकार बनाया गया है, जिन्हें हमें स्वतंत्रता दिलाने का श्रेय दिया जाता है। यह हमारी अंतरात्मा पर असहनीय दर्द है। यह हमारी आत्मा और दिल पर बोझ है। मुझे यकीन है कि हमें महत्वपूर्ण बदलाव लाने चाहिए। 1915 में पहली भारत सरकार के स्मरणोत्सव से बेहतर कोई अवसर नहीं है।”

वे राजा महेंद्र प्रताप ही थे जिन्‍होंने अफगान की धरती से सर्वप्रथम अस्थाई भारत की सरकार की घोषणा की

वस्‍तुत: उपराष्‍ट्रपति धनखड़ ने आज रेखांकित किया कि राजा महेंद्र प्रताप एक जन्मजात राजनयिक, एक जन्मजात राजनेता, एक दूरदर्शी राष्ट्रवादी व्‍यक्‍तित्‍व थे। राजा महेंद्र प्रताप ने राष्ट्रवाद, देशभक्ति, दूरदर्शिता का अद्वितीय उदाहरण पेश किया और आचरण से दिखाया कि राष्ट्र के लिए क्या किया जा सकता है। जब बात 1015 पहली भारत सरकार की आती है तब हमारे देश के कितने लोगों के मन में यह स्‍मरण हो आता है कि ब्रिटिश राज में भी कुछ भारतमाता के लाल थे जोकि स्‍वतंत्रता की जिद में किसी भी हद तक जाने को तैयार थे, इसलिए उन्‍होंने वह कर दिखाया था जोकि आज असंभव जैसा लगता है। इतिहास में जाएं तो वे राजा महेंद्र प्रताप ही थे जिन्‍होंने अफगान की धरती काबुल में 1 दिसम्बर 1915 को भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की और जिसके राष्ट्रपति स्वयं बने एवं अपनी सरकार के संबंध में सबसे पहले स्वर्ण-पट्टी पर लिखा सूचना-पत्र रूस भेज दिया । इसके बाद ही अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया था । तब से फिर वे कई देशों में जाते रहे और भारत की स्‍वाधीनता के लिए अपने अथक प्रयासों में लगातार जुटे दिखे, इस बीच उन्‍होंने भारतवासियों के हित विश्व मैत्री संघ की स्थापना की। उनका कद और महत्‍व भारतीय स्‍वाधीनता में कितना अधिक है वह उनके वर्ष 1946 में भारत लौटते वक्‍त सरदार वल्‍लभ भाई पटेल का अपनी बेटी मणिबेन को उन्‍हें लेने कलकत्ता हवाई अड्डे पर पहुंचना है ।

स्वतंत्रता की नींव राजा महेंद्र प्रताप एवं अन्य गुमनाम नायकों जैसे लोगों के सर्वोच्च बलिदानों पर रखी गई है

ऐसा महानायक जब इतिहास में कहीं गुमनामी में चला जाता है, तब फिर उपराष्‍ट्रपति धनखड़ जैसे देशभक्‍त उन्‍हें पुनर्स्‍मरण करते हैं। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों को मान्यता न दिए जाने पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं और कहते हैं, “यह न्याय का कैसा उपहास है, कितनी त्रासदी है। हम अपनी आजादी के 75वें वर्ष में हैं। हम इस महान व्यक्ति के ऐसे वीरतापूर्ण कार्यों को मान्यता देने में विफल रहे हैं, बुरी तरह विफल रहे हैं। हमारे इतिहास ने उन्हें वह स्थान नहीं दिया है जिसके वे हकदार हैं। अगर आप हमारी स्वतंत्रता की नींव को देखें, तो हमें बहुत अलग तरीके से पढ़ाया गया है। हमारी स्वतंत्रता की नींव राजा महेंद्र प्रताप सिंह और अन्य गुमनाम नायकों या कम प्रसिद्ध नायकों जैसे लोगों के सर्वोच्च बलिदानों पर बनी है। वर्ष 1932 में, मानवता की इस महान आत्मा, इस महान दूरदर्शी, जो सामान्य चीजों से ऊपर उठे, क्योंकि स्वतंत्रता एक ऐसी चीज है जिसे मानवता प्यार करती है। उन्हें एन.ए. नीलसन द्वारा नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। और आधार क्या था? गांधी जिस चीज के लिए प्रसिद्ध हुए, दक्षिण अफ्रीका में गांधी के अभियान में उनकी भूमिका। जब मैं नामांकन को पढ़ूंगा, तो मैं समय नहीं लूंगा। कृपया इसे पढ़ें, हर शब्द में उस व्यक्ति का व्यक्तित्व झलकता है”

पीढ़ियों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए बिना किसी लाग-लपेट के ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य

आगे, उपराष्ट्रपति कहते हैं, “हम उन लोगों को कृपालु, चापलूस, श्रेय देकर अपने इतिहास का पोषण नहीं कर सकते जिन्होंने भूमिका निभाई, बेशक लेकिन दूसरों द्वारा निभाई गई भूमिका नहीं। हम अपने नायकों को छोटा नहीं होने दे सकते। आज हम उनमें से एक पर चर्चा कर रहे हैं, इस पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों के लिए देशभक्ति की भावना को जगाने के लिए बिना किसी लाग-लपेट के ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

इतिहास में देखा जाए तो राजा महेंद्र प्रताप वास्तव में सुभाष चंद्र बोस से पहले थे, जिन्‍होंने आजाद हिंद फौज की शुरुआत की थी। मुझे याद है कि मैं अंडमान और निकोबार में उस जगह पर गया था जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1945 में झंडा फहराया था और मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तीस साल पहले, यह नेक काम राजा महेंद्र प्रताप कर चुके थे”

वह तीन सज्जनों को विशेष रूप से वे सम्मानित करना चाहते थे 

एक सांसद के रूप में राजा महेंद्र प्रताप के योगदान को याद करते हुए श्री धनखड़ कहते हैं, “मैंने उनकी पूरी कार्यवाही देखी और मुझे एहसास हुआ कि वे कितने दूरदर्शी थे…। 22 नवंबर 1957 को वे लोकसभा में एक प्रस्ताव लेकर आए और प्रस्ताव का मुद्दा था कि हमें कुछ व्यक्तियों को सम्मानित करना चाहिए।…उन्होंने देश के मामलों में, स्वतंत्रता संग्राम में और अन्य मामलों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, वह तीन सज्जनों को विशेष रूप से वे सम्मानित करना चाहते थे – वीर सावरकर, वीरेंद्र कुमार घोष, जो अरबिंदो जी के भाई थे, और डॉ. भूपेंद्रनाथ दत्ता, जो विवेकानंद जी के भाई थे, किंतु फिर से, हमारे साथ वही होता है, लेकिन हम इसे अब और नहीं होने देंगे। तत्कालीन सरकार ने प्रस्ताव का विरोध किया।

राजा महेंद्र प्रताप इससे इतने आहत हुए कि उन्हें कहना पड़ा, “विरोध में, मुझे इस निर्णय के खिलाफ जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि हर बंगाली और हर मराठा बाहर निकल जाएगा। उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त की, वास्‍वत में यह यह मार्मिक क्षण राजा साहब की क्षेत्रीय और वैचारिक सीमाओं से परे स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता का उदाहरण है। क्या हम ऐसे महान व्यक्ति के लिए कुछ नहीं कर सकते? हम असहाय नहीं हैं।…आइये हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि भारत माता के इस महान सपूत को उचित सम्मान मिले।’’

शिक्षा की अलग जगाने राज साहब ने बीएचयू, एएमयू, गुरुकुल समेत कई जगह दे दी अपनी पूरी जमीन दान

वैसे राजा साहब के इन कार्यों को इतिहास में नहीं आज वर्तमान में याद रखने की ज्‍यादा आवश्‍यकता है ताकि हम उन्‍हें उनके हिस्‍से का सम्‍मान दे सकें। वे राजा महेन्द्र प्रताप ही थे जिन्‍होंने 1909 में वृन्दावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केन्द्र था। मदनमोहन मालवीय इसके उद्धाटन समारोह में उपस्थित रहे जब इसके ट्रस्ट का निर्माण हुआ तो अपने पांच गाँव, जहां बचपन बीता वह वृन्दावन का राजमहल और चल संपत्ति का उसे दान कर दिया। वस्‍तुत: ये उनके त्‍याग की पराकाष्‍ठा नहीं, आगे एक विशाल फलवाले उद्यान को जो 80 एकड़ में था, 1911 में आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश को दान में दे दी जिसमें आर्य समाज गुरुकुल है। बाद में जब 1916 में बीएचयू की स्थापना हुई तो राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इसके लिए भी अपनी जमीन दान में दी। साल 1929 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 2 रुपये की लीज पर 90 साल के लिए अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय के लिए जमीन दी थी। अलीगढ़ में जीटी रोड के पास स्थित जमीन पर एएमयू का सिटी स्कूल शुरू किया गया था।

वैचारिक क्रांति के लिए निकाला ‘निर्बल सेवक’ समाचार पत्र

राजा महेंद्र प्रताप ने वैचारिक क्रांति के लिए ‘निर्बल सेवक’ समाचार-पत्र देहरादून से आरंभ किया । वे जर्मनी गए और तत्‍कालीन शासकों से मिल भारत की स्‍वाधीनता के लिए हर संभव मदद का वचन उनसे लिया । वहाँ से वह अफगानिस्तान गए, जहां अफगान के बादशाह से तत्‍कालीन बादशाह से मिलकर काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा । इस तरह उनके जीवन के अनेक पक्ष हमें नजर आते हैं, और इन सभी में एक एकात्‍मकता दिखाई देती है वह यह है कि यथासंभव हर प्रयास से भारत को अंग्रेजों से मुक्‍ति दिलाना, शिक्षा का प्रसार-प्रचार करना और भारतीय समाज में समरसता की स्‍थापना करना । आज यह राष्‍ट्रीय चेतना की सोचवाली सरकार के होने से बहुत अच्‍छा है कि कम से कम इतिहास से उन्‍हें पुनर्जीवन मिला है।

उत्‍तरप्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के भी प्रयास उनके नाम को अमरत्‍व प्रदान कर देने का है, यूपी सरकार अलीगढ़ में उनके नाम के विश्वविद्यालय को आकार दे रही है तो वहीं आज देश की राजधानी को उनकी सुध आई है, हमारे माननीय उपराष्‍ट्रपति उन्‍हें याद कर रहे हैं और यह संदेश भी दे रहे हैं कि भले ही कल जो भी हुआ हो,किंतु वर्तमान केंद्र सरकार ऐसे सभी राष्‍ट्रनायकों के स्‍मरण को किसी न किसी रूप में स्‍थायी अवश्‍य बनाएगी, क्‍योंकि ये सरकार देशभक्‍तों की सरकार है ।

Topics: 138th birth anniversary of Raja Mahendra Pratapभारत मंडपमBharat Mandapamउपराष्ट्रपति का दर्दराजा महेन्द्र प्रतापराजा महेंद्र प्रताप की 138वीं जयंतीVice President's painRaja Mahendra Pratap
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