राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता और पूर्व राज्यसभा सदस्य गोपाल व्यास का लंबी बीमारी के बाद 8 नवंबर को 93 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया। उनका जन्म 15 फरवरी, 1932 को रायपुर में हुआ था। उन्होंने एक इंजीनियर के नाते भिलाई स्टील प्लांट में लंबे समय तक सेवाएं दीं। वे बाल्यकाल में ही संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। जब वे भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत थे तब प्रांत कार्यवाह का भी दायित्व निभा रहे थे।
1984 में नौकरी छोड़ उन्होंने संपूर्ण जीवन को संघ की सेवा में समर्पित कर दिया। वे महाकौशल प्रांत के प्रांत प्रचारक भी रहे। व्यास जी ने संघ कार्य विस्तार के लिए जबलपुर से रायपुर तक की पैदल यात्रा की। संघ गांव-गांव, घर-घर पहुंचे, इसके लिए प्रयत्नशील रहे। वे आपातकाल में जेल में रहे। जेल में रहते हुए उन्होंने वकालत की पढ़ाई की। वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने कभी परिस्थितियों के साथ समझौता नहीं किया। वे 2002-2006 तक विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महामंत्री भी रहे। इस दौरान उन्होंने केन्या, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, नार्वे, नेपाल, हॉलैंड, थाईलैंड, श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया, त्रिनिदाद, मॉरिशस जैसे देशों की यात्रा की और इस दौरान हिंदुत्व व भारतीयता के धवल पक्ष को उन देशों में प्रमुखता से रखा।
वे मिलनसार स्वभाव के थे। जिससे भी मिलते, बड़े प्रेम से मिलते। 2006 से 2012 तक वे छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के सदस्य रहे। परिवार की आर्थिक स्थिति जर्जर होते हुए भी वे सदैव अपने भन्तों को दूसरों पर खर्च कर देते थे। उन्होंने प्रचारक जीवन में बेटे मुन्नू को असमय खो दिया। उनके सादगीपूर्ण जीवन के अनेक उदाहरण मिलते हैं। प्रचारक जीवन से विरत होकर उन्होंने रायपुर के निवास पर स्टेशनरी व परचून की दुकान तक खोली जिससे ईमानदारी से भरण-पोषण कर सकें। धोती, कुर्ता, जैकेट, मफलर व टोपी ही उनकी पोशाक थी।
दिल्ली में सांसद रहते हुए भी आटो से ही चलते थे। अपने लिए कभी गाड़ी नहीं रखी। जिस दिन राज्यसभा सदस्य बने, उन्हें अस्थाई रूप से छत्तीसगढ़ भवन में कमरा आवंटित किया गया, लेकिन कुछ कारणवश कमरा नहीं मिला। इसके बाद जनपथ होटल में एक कमरा दिया गया, जिसका 7 दिन का किराया 1,50,000 रु. था। इतना किराया सुनकर उन्हें लगा कि यह सरकार के पैसों की बर्बादी है। उन्होंने सामान तो रख दिया, लेकिन वहां ठहरे नहीं और पहले से तय कार्यक्रम के लिए विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन महामंत्री आचार्य गिरिराज किशोर के साथ नेपाल चले गए। रास्ते से उन्होंने मुझे (इस लेखक) फोन कर कहा कि होटल का कमरा खाली कर दें। इसके साथ ही उन्होंने राज्यसभा के महासचिव के नाम एक पोस्टकार्ड भेजा, जिसमेें लिखा था ‘हमारे होटल के कमरे के लिए 1,50,000 रु. जो किराया है, उसे छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों के हाथों बलिदान हुए सिपाहियों के परिवार वालों को दे दिया जाए।’
इस पोस्टकार्ड से हड़कंप मच गया। राज्यसभा के अधिकारी उन्हें खोजने लगे। राज्यसभा में उनकी नियमित उपस्थिति होती और वे संस्कृत, हिंदी व अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोलते थे। वे एक आदर्श राज्यसभा सदस्य के रूप में हमेशा स्मरण किए जाते रहेंगे। उन्होंने हमेशा जनहित के मुद्दों को स्वर दिया। प्राथमिक विद्यालयों में यौन शिक्षा पाठ्यक्रम लागू करने की संप्रग सरकार की योजना के विरुद्ध उन्होंने बहुत ही प्रभावी तर्क देते हुए अपनी बात रखी।
उनके तर्क से कांग्रेस और प्रतिपक्ष के कई लोग सहमत थे। इससे तत्कालीन सरकार को अपना कदम वापस लेना पड़ा। वे भारत और भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे। वे ‘इंडिया’ शब्द को हटाने को लेकर राज्यसभा में विधेयक भी लाए थे। जनहित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का आकलन इसी बात से किया जा सकता है कि उनकी सांसद निधि प्रत्येक वर्ष समय से पहले ही खर्च हो जाती थी। ऐसे देशसेवक को पाञ्चजन्य परिवार की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।
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