आसान नहीं प्रियंका की राह, बेल्लारी और मेडक के डर से राहुल ने वायनाड छोड़ा, जानिए क्या कहता है दक्षिण की सीटों का पैटर्न
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आसान नहीं प्रियंका की राह, बेल्लारी और मेडक के डर से राहुल ने वायनाड छोड़ा, जानिए क्या कहता है दक्षिण की सीटों का पैटर्न

भविष्य में प्रियंका वाड्रा अमेठी से किशोरीलाल शर्मा को किनारे लगाकर खुद वहां से उम्मीदवार बना दी जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा।

by अभय कुमार
Nov 9, 2024, 07:00 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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बेल्लारी और मेडक सीटों के लोकसभा चुनाव के परिणाम ने राहुल गांधी को वायनाड सीट से इस्तीफा देने और रायबरेली सीट पर अपनी सदस्य्ता बनाये रखने का निर्णय लेने को मजबूर किया। गांधी परिवार ने 70 के दशक से दक्षिणी राज्यों को राजनीतिक पुनर्वास के लिए शरणगाह बनाने की प्रक्रिया अपनाई है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 1977 में परम्परागत लोकसभा सीट रायबरेली से जनता पार्टी के राज नारायण से 16.62 प्रतिशत वोटों के साथ 55202 वोटों के बड़े अंतर से हार मिली। यह उस चुनाव में बड़े अंतरों के हार में से एक हार थी। इंदिरा गांधी ने अपनी खुद की हार से पार्टी पर अपने कमजोर होती पकड़ को मजबूत करने के लिए 1978 में चिकमंगलूर से उप-चुनाव लड़ा। डी.बी. चंद्रेगौड़ा, जो 1977 में चिकमंगलूर सीट से 59 प्रतिशत से अधिक वोटों से जीते थे, उन्होंने लोकसभा में इंदिरा गांधी के प्रवेश के लिए अपनी सीट खाली कर दी थी। इंदिरा गांधी ने उपचुनाव में चिकमंगलूर सीट से जीत दर्ज की, लेकिन 1980 में वह यहां से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं। इंदिरा गांधी ने तब के राज्य आंध्र प्रदेश के मेडक से चुनाव लड़ा। उन्होंने 1977 से 1980 के बीच तीन अलग अलग राज्यों से लोकसभा का चुनाव लड़ा।

इंदिरा गांधी ने 1980 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की दो सीटों रायबरेली और आंध्र प्रदेश की मेडक से चुनाव लड़ा। वह 1977 की हार से इतनी खौफजदा थीं की उन्होंने रायबरेली की सीट अपने विश्वस्त के पास रहे इसके लिए अपने चचेरे भाई अरुण नेहरू को चुनाव लड़वाया। इंदिरा गांधी अरुण नेहरू के बहाने आने वाले समय में अपने लिए जरूरत के मुताबिक इस सीट पर खुद या अपने बेटे को चुनाव में उतरना चाहती थीं। रायबरेली से उपचुनाव में अरुण नेहरू ने जीत दर्ज की।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में गांधी परिवार व कांग्रेस पार्टी के प्रति उपजी सहानुभूति की लहर के बाजवूद कांग्रेस पार्टी मेडक लोकसभा सीट हार गई। मेडक पर 1984 की यह हार कांग्रेस पार्टी के लिए बेहद अवसाद वाली थी क्योंकि कांग्रेस ने यह सीट 1977 जैसे बुरे दौर में भी जीती थी। 1984 में तेलुगु देशम पार्टी के पी. माणिक रेड्डी ने कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता पी शिव शंकर को हराकर सीट जीती थी ।

सोनिया गांधी ने 1999 में एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम में कर्नाटक की बेल्लारी लोकसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल किया। वह इंदिरा गांधी के अलावा दक्षिणी राज्य से चुनाव लड़ने वाली अपने परिवार की दूसरी सदस्य थीं। 1999 में सोनिया गांधी ने अपनी दोनों सीटों-अमेठी और बेल्लारी से जीत हासिल की। सोनिया गांधी ने अमेठी को चुना और बेल्लारी सीट से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बेल्लारी लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा।

राहुल गांधी ने मेडक और बेल्लारी लोकसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी को अलग अलग चुनावों में मिली हार से इतने भयभीत और खौफजदा हैं कि रायबरेली सीट पर अपनी सदस्य्ता बनाये रखते हुए वायनाड से इस्तीफा देने का फैसला किया। 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को रायबरेली में 66.17 प्रतिशत वोट मिले, जबकि वायनाड लोकसभा सीट पर उन्हें 59.69 प्रतिशत वोट मिले। उन्होंने वायनाड लोकसभा सीट की तुलना में अधिक अंतर से रायबरेली की सीट जीती है, इसलिए प्रियंका वाड्रा के लिए वायनाड के बजाय रायबरेली से अपना राजनीतिक करियर शुरू करना आसान और सुरक्षित होता। साथ ही गांधी परिवार के सभी सदस्यों ने अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत उत्तर प्रदेश से की है, लेकिन प्रियंका वाड्रा परिवार की पहली शख्स होंगी जो उत्तर प्रदेश के बाहर चुनावी करियर की शुरुआत करने जा रही हैं। इसके अलावा केरल में कांग्रेस पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हाथों तेजी से अपनी जमीन खोती जा रही है। सिर्फ भाजपा ही नहीं वरन कांग्रेस पार्टी के लिए यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) में इसकी सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) भी केरल में पार्टी के लिए ज्यादा लोक सभा व विधानसभा चुनावों में अधिक सीटों के लिए दबाव बढ़ा रही है। कांग्रेस पार्टी आईयूएमएल के दबाव को अधिक समय तक नज़रअंदाज भी नहीं कर सकती है। इसलिए राहुल गांधी ने गहराई से इन सभी राजनीतिक पहलुओं पर विचार करते हुए वायनाड से इस्तीफा दिया। भविष्य में प्रियंका वाड्रा अमेठी से किशोरीलाल शर्मा को किनारे लगाकर खुद वहां से उम्मीदवार बना दी जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा।

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