जम्मू-कश्मीर में 10 वर्ष बाद विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस गठबंधन विजयी रहा। इस गठबंधन को कुल 48 विधानसभा क्षेत्रों में विजय मिली। इनमें से 42 एनसी और 6 कांग्रेस के विधायक हैं। वहीं भाजपा को 29 विधानसभा क्षेत्रों में सफलता मिली। मत प्रतिशत के हिसाब से भाजपा राज्य की सबसे बड़ी पार्टी हो गई है। भाजपा को 25.64 प्रतिशत और एनसी को 23.43 प्रतिशत मत मिले हैं। कांग्रेस का मत प्रतिशत गिरकर 12 से भी नीचे चला गया है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को केवल तीन सीटें मिली हैं। अन्य के खाते में 10 सीटें गई हैं। भाजपा को सफलता हिंदू-बहुल जम्मू क्षेत्र में मिली, जबकि एनसी कश्मीर घाटी में सफल रही। हालांकि एनसी ने जम्मू क्षेत्र में भी दो सीटों पर विजय प्राप्त की है।
5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद यह पहला चुनाव था। इसलिए एनसी और कांग्रेस गठबंधन ने वादा किया था कि यदि वह सत्ता में आता है, तो राज्य में फिर से अनुच्छेद 370 को वापस लाया जाएगा, वहीं भाजपा ने साफ-साफ कहा था कि अब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वापसी किसी भी सूरत में संभव नहीं है। चुनाव परिणामों को देखने से पता चलता है कि जो लोग अनुच्छेद 370 की वापसी के पक्ष में थे, उन्होंने एनसी गठबंधन को चुना और जो लोग इसकी वापसी नहीं चाहते हैं, उन्होंने भाजपा का समर्थन किया। चुनाव में भले ही एनसी ने अनुच्छेद 370 को वापस करने के नाम पर लोगों को अपनी ओर खींचा, लेकिन उसके लिए यह मु्द्दा गले की फांस बनता जा रहा है।
चाहे फारुख अब्दुल्ला हों या फिर उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, दोनों ही अनुच्छेद 370 के नाम पर पलट चुके हैं। उमर अब्दुल्ला, जो मुख्यमंत्री बन सकते हैं, ने तो चुनाव परिणाम आने के कुछ ही घंटे बाद कहा कि अभी जो लोग नई दिल्ली में बैठे हैं, उनसे 370 की वापसी की बात करना बेवकूफी है। ऐसे ही फारुख अबदुल्ला ने भी कहा कि 370 की वापसी का अभी समय नहीं है। यानी इन दोनों पिता-पुत्र ने जानबूझकर राज्य के लोगों को गुमराह किया। दोनों को यह समझ आ गई कि अनुच्छेद 370 की वापसी इतना आसान नहीं है। अब कश्मीर घाटी के ही कई दल कह रहे हैं कि फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने घाटी के लोगों के साथ धोखा किया है।
अनुच्छेद 370 की वापसी की बात सबसे अधिक कश्मीर घाटी में होती है, जबकि जम्मू क्षेत्र के लोग अनुच्छेद 370 को किसी भी हालत में नहीं चाहते। यानी पहले की तरह यह मामला अभी भी जम्मू (हिंदू) और कश्मीर (मुस्लिम) के बीच फंसा है। चुनाव परिणाम भी यही संकेत कर रहा है। परिसीमन के बाद इस बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सात नई सीटें बनाई गई हैं। इनमें से जम्मू क्षेत्र में छह और कश्मीर घाटी में एक सीट बढ़ाई गई है। जम्मू के सांबा में रामगढ़, कठुआ में जसरोटा, राजौरी में थन्नामंडी, किश्तवाड़ में पड्डेर-नागसेनी, डोडा में डोडा पश्चिम और उधमपुर में रामनगर सीट नई जोड़ी गई है। नई सीटों में से पांच पर भाजपा को जीत मिली है, जबकि एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता है। रामगढ़ में भाजपा के डॉ. देविंदर कुमार मान्याल ने कांग्रेस के यश पॉल कुंडल को हराया है। जसरोटा में भाजपा के राजीव जसरोटिया ने निर्दलीय उम्मीदवार बृजेश्वर सिंह को मात दी है।
थन्नामंडी में निर्दलीय उम्मीदवार मुजफ्फर इकबाल खान ने भाजपा के इकबाल मलिक को हराया है। पड्डेर-नागसेनी से भाजपा के सुनील कुमार शर्मा ने एनसी की उम्मीदवार पूजा ठाकुर को पटखनी दी है। डोडा पश्चिम में भाजपा के शक्ति राज परिहार ने कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप कुमार को हराया है। रामनगर में भाजपा के सुनील भारद्वाज ने जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी की आश्री देवी को हराया है। यानी नई सीटों पर भाजपा को अच्छी सफलता मिली है। भाजपा हिंदू-बहुल बानी और रामबन में हार गई है। बानी में निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. रामेश्वर सिंह सफल रहे हैं। उन्होंने भाजपा के जीवन लाल को हराया है। रामबन में नेशनल कांफ्रेंस के अर्जुन सिंह ने भाजपा के बागी उम्मीदवार सूरज सिंह परिहार को हराया है। बानी और रामबन में भाजपा की हार चिंता करने वाली है।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर में 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे। उस समय भाजपा को 25 और पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं। चुनाव के बाद भाजपा और पीडीपी ने गठबंधन सरकार बनाई थी। जून, 2018 में भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इस कारण सरकार गिर गई थी। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा। उसी दौरान अनुच्छेद 370 को हटाया गया और राज्य को केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया था। लेकिन अब लगता है कि केंद्र सरकार इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की दिशा में कार्य कर रही है।
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