छबिलाल मरकाम 43 वर्ष के हैं। वह बस्तर जिले के गांव छिन्दखडक के रहने वाले हैं। 16 जून 2018 की शाम छबिलाल के पिता का निधन हो गया था। पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद वह अपने भाई मदन कुमार और अपने चाचा के साथ घर पर लौटे थे। परिवार में शोक का माहौल था।
उसी रात उनके दरवाजे पर दस्तक हुई। छबिलाल के नाम से आवाज दी गई। उन्होंने उठकर दरवाजा खोला तो वहां पर हथियारबंद नक्सली खड़े हुए थे। उन्होंने छबिलाल से उसका नाम पूछा।
जैसे ही उन्होंने अपना नाम बताया नक्सलियों ने उन्हें बाहर खींच लिया। उनके साथ बुरी तरह मारपीट करनी शुरू कर दी। परिवार के सभी लोग बाहर निकल आए। नक्सलियों ने सभी पर हथियार तान दिए।
परिवार के लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश की तो नक्सलियों ने उन्हें गोली मारने की धमकी दी। वर्दीधारी नक्सलियों ने छबिलाल को बुरी तरह पीटा। वे अधमरा होने तक उन्हें बंदूकों के बट और लात घूंसों से मारते रहे।
वहां से जाते समय नक्सलियों ने छबिलाल को दो गोलियां मारीं। एक गोली उनकी कनपटी को छूकर निकल गई, दूसरी उनके पैर में लगी। लंबे उपचार के बाद किसी तरह उनकी जान तो बच गई लेकिन एक कान से सुनने की क्षमता चली गई।
हो गए दिव्यांग
31 वर्षीय तुलाराम बड़गांव, जिला नारायणपुर के रहने वाले हैं। 27 मई, 2002 की आधी रात के बाद का समय था। पूरा गांव गहरी नींद में था। अचानक रात को ताबड़तोड़ फायरिंग करने की आवाजें सुनाई देने लगीं। आवाज सुनकर गांव वाले सहम गए। पता चला कि नक्सलियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हो रही है। पुलिस ने नक्सलियों को घेर लिया था।
गांव के लोग भी अपने बचाव में इधर—उधर छिपने के लिए भागे। इसी बीच तुलाराम नक्सलियों की तरफ से की जा रही अंधाधुंध गोलीबारी की चपेट में आ गए। एक गोली उनके दाहिने पैर की हड्डी को फोड़ते हुए आर-पार हो गई। उन्हें जब तक इसका अहसास नहीं हुआ, तब तक उन्हें अपने ही बहते खून की गर्माहट महसूस नहीं हुई।
घंटों तक नक्सलियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ होती रही। गांव वाले डर के कारण छिपे रहे। सुबह तक तुलाराम पैर को कपड़े से बांधकर खून को रोकने की कोशिश करते रहे। नक्सली जंगल की तरफ फरार हो गए। सुबह होने के बाद पुलिस की मदद से गांववालों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया।
अस्पताल में महीनों तक वे भर्ती रहे। लंबे समय तक चले उपचार से उनके पैर का जख्म तो भर गया, पर अब तुलाराम पहले की तरह चल नहीं पाते हैं। वह थोड़ा सा भी वजन नहीं उठा सकते हैं। जरा सी भी मेहनत नहीं कर पाते हैं उनकी सांस फूल जाती है।
आंखों की रोशनी हुई कम
60 वर्षीय कन्हेर बेलसरिया जिला नारायणपुर के सोनुपर के रहने वाले हैं। घटना 06 अप्रैल, 2004 की है। सुरक्षा बलों का एक दस्ता नक्सलियों की तलाश में निकला हुआ था।
लौटते समय नारायणपुर पहुंचने से पहले सोनपुर के पास ही नक्सलियों ने पुलिस पर बम और गोलियों के साथ हमला कर दिया। पुलिस ने वापस जवाब दिया तो नक्सली जंगल की तरफ भाग निकले।
इस बीच कन्हेर वहां से गुजर रहे थे। तभी सड़क किनारे माओवादियों द्वारा लगाई गई आईईडी पर उनका पैर पड़ गया। यह आईआईडी नक्सलियों ने पुलिस के जवानों को निशाना बनाने के लिए लगाई थी।
आईआईडी के धमाके में कन्हेर बेलसरिया सहित पांच अन्य लोग गम्भीर रूप से घायल हो गए। कन्हेर के सीने, बाएं हाथ और आंखों में चोट लगी। उनका बायां हाथ सदा के लिए बेकार हो गया। आंखों से दिखाई देना बहुत कम हो गया। महीनों उनका उपचार चला जिसमें परिवार पर कर्ज भी हो गया।
इस घटना को हुए 20 साल से ज्यादा का समय हो गया है। तब से अभी तक कन्हेर अपने घरवालों पर ही निर्भर हैं। अपनी इसी तकलीफ को बयां करने के लिए वह दिल्ली पहुंचे थे।
टिप्पणियाँ