हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। लेकिन यह सुन कर ही आश्चर्य होता है कि आज भी ऐसा गांव है, जो सड़क से नहीं जुड़ा है। उस गांव तक पहुंचने के लिए लोगों को जद्दोजहद करनी पड़ती है।
ऐसे में रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं, राशन आदि पहुंचाने में कितनी मुश्किलें आती होंगी! उस गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति क्या होगी, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले का भीमापुरम ऐसा ही एक गांव है। दरअसल, नक्सलियों ने इस गांव को सड़क से जुड़ने ही नहीं दिया। इसलिए ग्रामीण विकास कार्यों और सुविधाओं से आज तक वंचित हैं।
इसी भीमापुरम गांव में 14 वर्षीया बच्ची मड़कम सुक्की रहती है। वह तीन वर्ष की ही थी कि सिर से मां का साया उठ गया। तीन वर्ष पहले नक्सलियों ने उसके पिता को मार डाला। इस तरह 11 वर्ष की अल्पायु में एक के बाद एक दो बड़े सदमों से वह उबर भी नहीं पाई थी कि खुद नक्सली हिंसा की शिकार हो गई।
इस वर्ष 26 मई को वह महुआ बीन रही थी कि माओवादियों द्वारा लगाए गए आईईडी की चपेट में आ गई और अपना बायां पैर गंवा दिया। आईईडी धमाके में उसका घुटने के नीचे का हिस्सा उड़ गया। दुर्गम गांव में उसे तत्काल इलाज की सुविधा नहीं मिली। किसी तरह उसे सुकमा लाया गया, जहां उसका इलाज किया जा सका।
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