इस बार की संयुक्त राष्ट्र आम सभा में जम्मू—कश्मीर मुद्दे पर एक भी देश, यहां तक कि कोई इस्लामी देश भी पाकिस्तान के पाले में खड़ा नहीं हुआ। यह भारत की कूटनीतिक विजय मानी जा रही है। जिस तुर्किए को मुस्लिम ब्रदरहुड का आका बताकर पाकिस्तान उससे नजदीकियां दिखाता आ रहा था उस देश के नेता एर्दोगन ने इस मंच पर अपने भाषण में भारत के राज्य जम्मू—कश्मीर पर एक शब्द भर जितना भी जिक्र नहीं किया।
जिन्ना के देश को जब भी किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर बोलने का मौका मिलता है तो वह विकास और भविष्य के कार्यक्रमों की बात नहीं करता, वह वहां भी सिर्फ कश्मीर को लेकर पर दिमाग में भरा जहर उगलता है। लेकिन पिछली बार से उलट, इस बार की संयुक्त राष्ट्र आमसभा में पाकिस्तान को इस मुद्दे पर ‘मुसलमानों के खलीफा’ ने भी धता बता दी, और जिन्ना के देश के नेता अपना सा मुंह लेकर रह गए।
बेशक, इस बार की संयुक्त राष्ट्र आम सभा में इस मुद्दे पर एक भी देश, यहां तक कि कोई इस्लामी देश भी पाकिस्तान के पाले में खड़ा नहीं हुआ। यह भारत की कूटनीतिक विजय मानी जा रही है। जिस तुर्किए को मुस्लिम ब्रदरहुड का आका बताकर पाकिस्तान उससे नजदीकियां दिखाता आ रहा था उस देश के नेता एर्दोगन ने इस मंच पर अपने भाषण में भारत के राज्य जम्मू—कश्मीर पर एक शब्द भर जितना भी जिक्र नहीं किया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में कल यानी 27 सितम्बर को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ अपना भाषण देंगे। लेकिन परसों इसयी मंच पर उस तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन का भाषण हुआ जिसे जिन्ना का देश अपना ‘हमदर्द’ बताता फिरता है, लेकिन उस ‘हमदर्द’ ने इस बार शरीफ को जबरदस्त दर्द दिया है, क्योंकि पूरे भाषण में कहीं भी कश्मीर का उल्लेख नहीं आया। एर्दोगन के उस भाषण के बाद पाकिस्तान के कूटनीतिकों और मीडिया में प्रश्न उठ रहा है कि क्या इस मुद्दे पर तुर्किए ने जिन्ना के देश का साथ छोड़ दिया, और कि क्या अब वहां अकेले शरीफ ही कश्मीर का रोना रोएंगे।
जम्मू—कश्मीर में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल ही रही है, लोकतंत्र के मूल्यों को और प्रगाढ़ किया जा रहा है, लेकिन पूरी संभावना है कि शरीफ अपने भाषण का अधिकांश भाग इसी पर केन्द्रित रखते हुए वही वही दोहराएंगे जो हर विदेश मंच पर दोहराते हैं। उनके भाषण में जो होगा, उसे लेकर भी पाकिस्तान के कुछ समझ रखने वाले पत्रकार बता रहेंगे। शरीफ कहेंगे, ‘कश्मीर में जुल्म हो रहा है, वहां भारत की सेना लोगों की आजादी छीन रही है, अवाम खुश नहीं है, वह अपना हक मांग रही है’ वगैरह वगैरह।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासभा के मौके पर शाहबाज शरीफ तुर्किए के राष्ट्रपति रेसिप तैयप एर्दोगन से अलग से मिलने गए थे और इस भेंट को लेकर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान भी जारी किया। इसमें उसने लिखा है कि ‘दोनों नेताओं ने गाजा में फौरन संघर्षविराम होने पर जोर दिया। गाजा में जारी नरसंहार की चर्चा की।’ आगे जिन्ना के देश का विदेश विभाग कहता है कि यह सही है कि एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में कश्मीर के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला, परन्तु शरीफ ने जब कश्मीर में दमन सह रहे लोगों की बात की तो एर्दोगन ने उनकी हां में हां मिलाई।
एर्दोगन ने शरीफ की हां में हां मिलाई कि नहीं, इसे लेकर पाकिस्तानी विदेश विभाग के कहे पर भरोसा नहीं किया जा सकता। तथ्यों को झुठलाने या तोड़ने—मरोड़ने के लिए कुख्यात जिन्ना के देश के अधिकारियों की साफगोई संदिग्ध ही रही है।
इस संबंध में अमेरिका में पाकिस्तान के कभी राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द उड़ेला है। वे लिखते हैं कि ‘संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे को उठाने वाले शायद अकेले ही इंसान होंगे शरीफ। 193 सदस्य देशों में से एक ने भी इस बाबत बात न की!’
यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि पिछले कई वर्ष से एर्दोगन इसी मंच पर कश्मीर को लेकर कुछ न कुछ बोलते रहे हैं, लेकिन इस बार वे मूक रहे। उनके इस रुख से पाकिस्तान में पाकिस्तानियों के तो न्यूयार्क में शाहबाज शरीफ के तोते उड़े हुए हैं।
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