हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए लगभग सभी राजनीतिक दल अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुके हैं। टिकट के लिए सबसे ज्यादा मारामारी सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस में है। इस कारण प्रत्याशियों की सूची बाहर आते ही भाजपा और कांग्रेस को नेताओं और टिकटार्थियों के विद्रोह का सामना करना पड़ा। इसके बाद दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता विद्रोहियों से बात कर रहे हैं, उन्हें समझा रहे हैं। इसमें भाजपा सफल होती दिख रही है, वहीं कांग्रेस अपने नाराज नेताओं के कारण कठिन स्थिति में है।
इस पर तुर्रा यह कि राज्य में कांग्रेस के बड़े नेता गुटबाजी में शामिल हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के गुट एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे। वहीं दूसरी ओर राज्य भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच ऐसी कोई गुटबाजी नहीं है। हां, टिकट कटने से कुछ नेता अवश्य नाराज हैं। दरअसल, पिछले दस वर्ष के शासन में भाजपा ने अपने आप को हरियाणा में स्थापित कर लिया है। 2014 से पहले यहां भाजपा के चार विधायक थे, लेकिन 2014 में भाजपा ने हरियाणा में जो करिश्मा किया, उसका असर आज भी महसूस होता है। 2014 में हरियाणा में पहली बार भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।
विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 46 पर भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा ने मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया था। उनके नेतृत्व में कई ऐसे कार्य हुए, जिनके कारण भाजपा की जड़ें राज्य में और मजबूत हुईं यही कारण है कि 2019 में भाजपा को 40 सीटें मिली थीं। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि यदि उस दौरान जननायक जनता पार्टी (जजपा) का जन्म नहीं होता तो शायद दूसरी बार भी भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल जाता। हालांकि बाद में जजपा के साथ मिलकर ही भाजपा की सरकार बनी, जो मार्च, 2024 तक चली। मतभेद के बाद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पदत्याग कर दिया और भाजपा ने नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया।
यह परिवर्तन भाजपा के लिए शुभ संकेत देता दिख रहा है। चंडीगढ़ हरियाणा पंजाब उच्च न्यायालय में अधिवक्ता राजकुमार मक्कड़ कहते हैं, ‘‘नायब सिंह सैनी को कम समय मिला, फिर भी उन्होंने कुछ नई योजनाओं की शुरुआत कर जनता का विश्वास जीता है। यदि जनता उन्हें दोबारा मौका देती है तो वे हरियाणा के ‘शिवराज सिंह चौहान’ सिद्ध हो सकते हैं।’’ अधिवक्ता धीरज सैनी कहते हैं, ‘‘इस समय नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में भाजपा के कार्यकर्ता जोश से भरे हुए हैं। इन कार्यकर्ताओं के दम पर भाजपा निश्चित रूप से तीसरी बार सरकार बनाएगी।’’
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा और कथित इंडी गठबंधन को पांच-पांच सीटें मिली थीं। लोकसभा चुनाव में भाजपा विधानसभा की 44 और कथित इंडी गठबंधन 43 सीटों पर आगे रहा। इनमें से दो सीटें ऐसी हैं, जहां इंडी गठबंधन को बहुत ही मामूली बढ़त मिली। आम आदमी पार्टी कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट की तीन विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाने में सफल रही थी।
लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन की रणनीति ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की थी, लेकिन मतदाताओं ने उसे ऐसा अवसर नहीं दिया। लोग भाजपा सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल की सराहना कर रहे हैं। चंडीगढ़ में रहने वाले वैभव सिंह कहते हैं, ‘‘इस सरकार में बिना खर्ची, बिना पर्ची सरकारी नौकरी मिल रही है। वहीं पूर्ववर्ती सरकारें भाई-भतीजावाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद के कारण बदनाम थीं। इसलिए भाजपा की सरकार ही ठीक है।’’
इस बार हरियाणा में चौटाला परिवार का प्रभाव नहीं दिख रहा। हालांकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और भीम आर्मी से जजपा का गठबंधन हुआ है। कुछ सीटों पर ये दोनों गठबंधन टक्कर दे सकते हैं, लेकिन सफलता कितनी मिलती है, यह नहीं कहा जा सकता। यही हाल आम आदमी पार्टी का है।
पूर्व विधायक पवन सैनी का कहना है, ‘‘नायब सिंह सैनी के नेतृत्व मे कार्यकर्ता सरकार बनाने के लिए पूरे जोश से लगे हैं। हम तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाने जा रहे हैं।’
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