दुनिया में मनुष्य ने जब-जब अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, तब-तब महिलाओं पर अधिकार, उनके शोषण को उसने अपना हथियार बनाया। शायद यही शक्ति का पर्याय है। ‘मैं शक्तिशाली हूं, मेरी सत्ता को समाज स्वीकार करे’, इसलिए ताकत, आतंक व बर्बरता का सहारा लिया जाता है और महिलाओं पर अधिकार साबित करने के लिए उन पर अत्याचार, अनाचार व बलात्कार को प्राथमिकता दी जाती है। इस्लामी देशों में यह भाव मुख्य रूप से उभर कर आता है, जहां न तो महिलाओं को बराबरी का अधिकार है और न ही बोलने, सोचने, समझने का। अगर कहें कि इस्लामी देश महिला सशक्तिकरण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं, तो यह गलत नहीं होगा।
अफगानिस्तान में तालिबान की इस्लामवादी शरियाई सरकार ने गत 31 जुलाई को एक कानून जारी किया। 1992 में तालिबान ने उस देश में पहली बार कुर्सी पर कब्जा किया था। तब एक विशेष मंत्रालय बनाकर उसे वहां इस्लामी जीवन पद्धति को लागू करवाने की जिम्मेदारी दी थी। 2021 में दोबारा वे लड़ाके कुर्सी पर आए तो इस मंत्रालय को पुनर्जीवित किया गया। शरियाई कानून लागू करवाने के लिए एक नैतिकता पुलिस है तथा नैतिकता मंत्रालय भी है। इस्लामी लड़ाकों की ‘नैतिकता’ को लागू करने वाले कई निर्देश वहां पहले से लागू हैं, जिनके अंतर्गत एक वर्ष में 21,000 से अधिक वाद्य यंत्रों को जलाया जा चुका है, सुरक्षा बलों के लगभग 300 कर्मियों को दाढ़ी ना रखने के कारण बर्खास्त किया जा चुका है तथा 13,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
जहां-जहां और जैसे-जैसे मौलवियों-मदरसों की संख्या और प्रभाव बढ़ता जाता है, वहां-वहां इस्लामी कायदों का प्रभाव दिखाई देने लगता है। इनके उल्लंघन पर कड़ी सजाएं दी जाती हैं। पुरुषों को शरिया के तहत विशेष तरह की दाढ़ी रखने का निर्देश है तथा नाइयों को पश्चिमी ढंग से बाल ना काटने को कहा गया है। पुरुषों के टाई पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा दाढ़ी ट्रिम करने, शेव करने और बाल काटने से मना किया गया है। इस शरियाई कानून के तहत जीवित प्राणियों की तस्वीर बनाना या प्रकाशित करना प्रतिबंधित है। परिवार के सदस्य की तस्वीर बनाना भी गैरकानूनी है। जीवित प्राणियों की मूर्तियां खरीदने-बेचने पर रोक है। जीवित प्राणी को लेकर बनाई गई फिल्म देखने तक पर भी रोक है। मॉरिलिटी पुलिस रेडियो, टेप रिकॉर्डर का गलत प्रयोग करने पर रोक लगाती है। तालिबान के अनुसार शरिया कानून के तहत गाना-बजाना भी हराम है।
महिलाओं के लिए बनाए कानून की एक बानगी देखिए। अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए शरिया कानून के तहत पहनावे से लेकर बोलने तक पर तालिबानी पहरा है। नए कानूनों के तहत महिलाओं पर कई अन्य पाबंदियां लगाई गई हैं, जिसे तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने मंजूरी दी है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी मॉरलिटी मंत्रालय को दी गई है। इसे लेकर 2022 में आदेश दिया गया था, लेकिन अब इसे औपचारिक तौर पर कानून के रूप में अपनाया जा रहा है। यह कानून कहता है-महिलाओं को पूरा शरीर ढके रखना होगा, सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को चुप रहना होगा, सार्वजनिक स्थानों के साथ-साथ घर में भी गाना गाने और जोर से कुछ पढ़ना मना होगा, चुस्त कपड़े पहनने पर प्रतिबंध होगा और गैर मर्दों से शरीर और चेहरा छुपाना होगा। नि:संदेह यह कानून महिलाओं को पुरुषों से कमतर दिखाने का एक तरीका है।
चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हरेश वशिष्ठ ने इस तालिबानी कानून पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तालिबानी शासन प्रतीक बन गया है महिलाओं पर अत्याचार और एक बंद समाज का। पता नहीं उनका शरिया कानून कहां से आया है, जिसने पूरे देश को महिलाओं के लिए एक बड़ी जेल में तब्दील कर दिया है। यह स्थिति अत्यंत शोचनीय है और इस पर सिर्फ हैरानी भरी संवेदना ही व्यक्त की जा सकती है।
लेकिन ऐसी ही कुछ मुददों पर अब अफगानिस्तान के अंदर ही जंग छिड़ी है। सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान की महिलाओं ने अपना गुस्सा दिखाना शुरू कर दिया है। वे वीडियो बना रही हैं, दिल खोलकर गाने गा रही हैं और ये सारक वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रही हैं। अगर महिलाओं में यह जाग्रती बढ़ती है और समाज के अन्य वर्गों से भी उन्हें संबल मिलता है तो बेशक, तालिबान के लड़ाकों को ईंट का जवाब पत्थर से मिल जाएगा!
उधर ईरान में भी कुछ समय पहले हिजाब को जबरन लागू करवाने की सरकारी हठधर्मिता के विरुद्ध महिलाओं के बीच से एक प्रतिरोधी लहर उठनी शुरू हुई थी, जो देखते देखते पूरे देश में फैल गई थी। वहां सरकार ने जब महिलाओं के आधुनिक चाल के कपड़े पहनने पर रोक लगा दी थी, तब वहां लड़कियों ने खुलेआम फैशनेबल कपड़े पहनकर सोशल मीडिया पर वीडियो डाले थे, सड़क पर उतरकर आंदोलन किया था। अब ऐसा ही विद्रोह अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के विरुद्ध होता दिख रहा है। फिलहाल वहां इस विरोध में महिलाओं में थोड़ा खौफ भी झलक रहा है, क्योंकि वीडियो में अधिकतर महिलाएं बुर्का पहने नजर आ रही हैं यानी अपनी पहचान छुपाती दिख रही हैं।
आगे संभव है वे बिना बुर्के के वीडियो डालें। इन वीडियो में महिलाएं बता रही हैं कि 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से ही उनकी जिंदगी नर्क बन गई है। पढ़ने पर पाबंदी, बाहर निकलने पर पाबंदी, मन के कपड़े पहनने पर पाबंदी। एक वीडियो में महिला गीत के माध्यम से कह रही है-‘‘आपने मेरे मुंह पर चुप्पी की मुहर लगा दी है, आगे आप मुझे रोटी भी खाने नहीं देंगे, खाना भी खाने नहीं देंगे, आपने मुझे सिर्फ महिला होने की वजह से घर के अंदर कैद कर दिया है।’’अफगानिस्तान के हालात के विरुद्ध आवाज विदेशों से भी उठ रही है। तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद अफगानिस्तान छोड़कर जर्मनी जाकर रह रही एक महिला ने सरकार से पूछा है, ‘यदि ये देश मेरा नहीं, तो तुम कौन हो? हम नहीं होते तो तुम नहीं होते।’
सवाल है कि क्या सच में अधिकांश इस्लामी देशों में रह रहीं महिलाएं आजाद हैं? जिन देशों में मुसलमानों की संख्या कम है या शरिया लागू नहीं है वहां के संविधान, कानून, शासन व्यवस्थाएं कितनी भी अच्छी हों, वहां के मुसलमान इन्हें ‘गैर इस्लामी’ मानते हैं तथा उनकी जगह शरिया लाना चाहते हैं। इसके लिए अलगाववाद, आतंकवाद तक का सहारा लिया जाता है। कोई मुसलमान इसका विरोध या आलोचना भी नहीं करता। ब्रिटेन का ताजा उदाहरण हमारे सामने है। अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन की प्रमुख रोजा ओटुनबायेवा ने इन कानूनों की आलोचना की, कहा कि कई दशकों तक चले संकटों को झेल चुके अफगानी लोग बेहतर के हकदार हैं। (लेखिका शिक्षाविद् हैं)
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