बाबर से लड़ने वाले अफगानों का क्या हुआ, मुंह में क्यों दबाया तिनका, चंगेज खान नहीं तो फिर किसकी राह पर चले मुगल
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बाबर से लड़ने वाले अफगानों का क्या हुआ, मुंह में क्यों दबाया तिनका, चंगेज खान नहीं तो फिर किसकी राह पर चले मुगल

जानिए जाल में कैसे फंसे पठान, क्यों उनका सिर कटवाकर बनवाई मीनार !

by सोनाली मिश्रा
Sep 8, 2024, 09:05 am IST
in विश्लेषण
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कक्षा 7 में इतिहास की एनसीईआरटी की पुस्तक में मुगलों की प्रशंसा में एक पंक्ति दी गई है। लिखा है कि मुगलों में दो महान वंशों का रक्त था। वे दो वंश थे तैमूर और चंगेज खान। चंगेज खान मँगोल था और चूंकि उसने मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट कर दिया था, इसलिए मुगलों ने चंगेज खान की पहचान से स्वयं को पहचानने से नकारा। वहीं उन्हें तैमूर की परंपरा पर अभिमान था, जिसने दिल्ली पर वर्ष 1398 पर आक्रमण किया था।

पुस्तक में लिखा है कि मुगल खुद को मुगल या मँगोल नहीं कहलवाना चाहते थे क्योंकि चंगेज खान का नाम असंख्य लोगों के खून के साथ जुड़ा था। जबकि दूसरी ओर वे अपने तैमूर कुनबे पर फख्र करते थे, क्योंकि उनके महान पूर्वज ने दिल्ली पर 1398 पर कब्जा किया था।

यह तो एनसीईआरटी की किताब बताती है कि चंगेज खान ने असंख्य लोगों का खून बहाया था, इसलिए चंगेज खान के साथ खुद को मुगल नहीं जोड़ते थे, मगर इसे लिखने वालों ने बहुत ही चालाकी से यह बात छिपा दी कि चंगेज खान ने मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट कर दिया था। चंगेज खान के पोते ने बाद में इस्लाम कबूल किया था। अब प्रश्न यह उठता है कि तैमूर क्या कोई बहुत रहमदिल था, जैसा कि इस किताब के लेखकों ने लिखा है? क्या तैमूर ने किसी का कत्ल नहीं किया था?

जब तैमूर ने काबुल से होते दिल्ली पर हमला किया था, तो रास्ते में लोगों को मारते हुए, कब्जा करते हुए आगे बढ़ रहा था। उसने एक लाख हिंदुओं को भी कैदी बना लिया था। वह दिल्ली के पास लोनी में पहुंचा और उसने वहाँ पर अपना शिविर लगाया। दिल्ली पर उस समय सुल्तान मोहम्मद शाह का शासन था, मगर ताकत मल्लू खान के पास थी।

जब मल्लू खान की सेना ने तैमूर की सेना पर हमला किया, तो तैमूर को लगा कि कहीं ये एक लाख हिन्दू मल्लू खान के साथ मिलकर उसकी सेना पर हमला न कर दें, तो उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वह इन सभी को मार डाले। जस्टिन मरोज़ी अपनी किताब ‘टैमरलेन, सौर्ड ऑफ़ इस्लाम, कॉन्करर ऑफ़ द वर्ल्ड’ में उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहासकार सर मैलकम प्राइस के हवाले से लिखते हैं – मानव जाति के इतिहास में जानबूझकर की गई क्रूरता के ऐसे भयानक कृत्य का दूसरा उदाहरण नहीं मिल सकता है। इतने भयानक हत्याकांड के बाद भी उसे कुछ लोग वीरता का प्रतीक बताते हैं। और जैसा कि हम भारत में कम्युनिस्ट इतिहासकारों के प्रचलित विमर्श में देखते हैं, जो मुगलों की प्रशंसा में इस सीमा तक तल्लीन हैं कि वे बच्चों के दिमाग को भी भरमाते हैं। वे बाबर की प्रशंसा करते हैं, मगर यह नहीं बताते कि कैसे बाबर ने हिंदुओं के ही नहीं बल्कि अफगानों के सिरों की भी मीनारें बनाई थीं। भारत पर हमला करने के क्रम में जब वह काबुल से आगे बढ़ा तो वह थाल (Than) की ओर बढ़ा। बाबरनामा में वह लिखता है कि जब वे लोग घाटी में आगे बढ़े तो कोहट और आसपास रहने वाले अफ़गान इकट्ठे हो गए। वे आसपास की पहाड़ियों पर इकट्ठे हुए और युद्ध के नारे लगाने लगे। बाबर को रास्ता दिखाने वाला मलिक बुसैद कमरी, अफगान की जमीनी हकीकत से वाकिफ था। उसने कहा कि बाबर की दाईं ओर एक अलग पहाड़ी है, जहां पर अगर अफ़गान आते हैं तो हम उन्हे घेर कर पकड़ लेंगे और ऐसा ही हुआ।

अफ़गान जाल में फंस गए और मारे गए। लगभग दो सौ अफगानों को पकड़ा गया। कुछ जिंदा आए मगर अधिकतर के केवल सिर ही आए। उसके बाद बाबर लिखता है, ‘हमें यह बताया गया था कि जब अफ़गान मुकाबला नहीं कर पाते हैं तो वे अपने दुश्मन के पास मुंह में तिनका दबाकर आते थे और अपने आप को “उनकी गाय” कहते थे। लड़ने में अक्षम अफ़गान हमारे पास मुंह में तिनका दबाकर आए।’

मगर जो पठान कैदी थे और जो दांतों में घास दबाकर आए थे, बाबर ने उन सभी के सिर काट लिए और उन सिरों की मीनार बना दी। उन काटे गए सिरों की मीनार बाबर के शिविर में बनाई गई। मुंह में घास दबाकर आने का अर्थ होता था कि वे गाय बनकर आए हैं। बाबरनामा का हिन्दी अनुवाद जो प्राप्त होता है उसमें लिखा है कि यदि बाबर के स्थान पर कोई हिन्दू राजा होता तो कभी भी उन पठानों को नहीं मारता। पठान ही क्या, कोई भी मुस्लिम फौज या सैनिक जब मुकाबला नहीं कर पाता था तो वह मुंह में घास लेकर जाता था और जिसका आशय होता था कि हम आपकी गाय है और आपकी शरण में हैं, आप हमें न मारें!

मगर बाबर ने केवल अपनी शरण में आए हुए पठानों का सिर काटकर मीनार नहीं बनाई थी, वह अगले दिन जब हंगू की ओर गया, वहाँ पर भी उसने अफगानों को मारकर स्थानीय सौ या दो सौ अफगानों के सिरों को काटा और उनकी मीनार बनाई। यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि जहां गाय बनकर जाने वाले मुस्लिम सैनिकों को हिन्दू राजा नहीं मारते थे, वहीं महान कहे जाने वाले बाबर ने अपनी शरण में आए हुए पठानों के सिरों की ही मीनार बना दी और तैमूर ने तो हिन्दू बंदियों के सिरों को कटवा दिया था, जो शायद कुछ विद्रोह आदि कर भी नहीं सकते थे।

Topics: बाबर की क्रूरताPathan and Mughal conflictएनसीईआरटी विवादMughal invasion in Indiaपठान और मुगल संघर्षmassacre of Hindus by Timurभारत में मुगल आक्रमणcruelty of Timur and Baburतैमूर द्वारा हिंदुओं का कत्लेआमMughal atrocities in Indian historyतैमूर और बाबर की क्रूरताMughal attacks on Afghansभारतीय इतिहास में मुगल अत्याचारअफगानों पर मुगल हमलेBabur's crueltyBaburnamaबाबरनामाNCERT controversy
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