दूसरे देशों से आकर कनाडा में पढ़ाई कर रहे छात्र अपने बचे वक्त में छोटे—मोटे काम करके हाथ खर्च निकालते रहे हैं। लेकिन अब इन कामों में उनको नहीं रखने की घोषणा उन्हें चुभ रही है। यही वजह है कि किसी एक शहर में नहीं, बल्कि नए फरमान का पूरे कनाडा में छात्र विरोध कर रहे हैं। एक अंदाजे के अनुसार, त्रूदो की नई नीति लागू होने से कम से कम उन 70 हजार छात्रों को मजबूरन देश छोड़ना पड़ सकता है।
क्या ‘खालिस्तान प्रेमी’ कनाडा में प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो की कुर्सी जाने वाली है। वहां के माहौल से अंदाजा तो यही लगता है। त्रूदो की नई घोषित आव्रजन नीतियां वहां दूसरे देशों से आए लोगों, विशेषकर छात्रों में आक्रोश पैदा कर रही हैं। वे उनका विरोध कर रहे हैं और सड़कों पर उतरे हैं। नई नीति में ऐसे बदलाव किए गए हैं जो दूसरे देशों से वहां पढ़ने आए छात्रों के भविष्य को लेकर सवाल खड़ करते हैं। त्रूदो ने हाल में घोषणा की थी सरकार विदेशी श्रमिकों को कम पगार वाली नौकरियों से दूर कर देगी।
लेकिन शायद प्रधानमंत्री त्रूदो को अंदाजा नहीं होगा कि उनकी इस घोषणा से वहां रह रही अंतरराष्ट्रीय छात्र बिरादरी इतनी नाराज हो जाएगी कि उनकी सरकार की चूलें हिलाने लगेगी। और वही हुआ जिसकी आशंका आम जन को थी, त्रूदो के इस फरमान के विरुद्ध छात्र लामबंद हो चुके हैं।
त्रूदो ने गत सोमवार को देश की आव्रजन नीतियों में फेरबदल करने की बात की थी। उनके नए नियम के हिसाब से अब विदेश से वहां आए छात्रों को पढ़ाई से बचे वक्त में नौकरी पाने में मुश्किलें पेश आएंगी। कारण, अब कम पगार वाले कामों में कनाडा के ही युवाओं को रखा जा सकेगा।
दूसरे देशों से आकर कनाडा में पढ़ाई कर रहे छात्र अपने बचे वक्त में छोटे—मोटे काम करके हाथ खर्च निकालते रहे हैं। लेकिन अब इन कामों में उनको नहीं रखने की घोषणा उन्हें चुभ रही है। यही वजह है कि किसी एक शहर में नहीं, बल्कि नए फरमान का पूरे कनाडा में छात्र विरोध कर रहे हैं। एक अंदाजे के अनुसार, त्रूदो की नई नीति लागू होने से कम से कम उन 70 हजार छात्रों को मजबूरन देश छोड़ना पड़ सकता है जो किसी अन्य देश से वहां पढ़ने आए हैं।
गुस्साए दूसरे देशों के ये छात्र, जिनमें भारतीय छात्र भी हैं, प्रिंस एडवर्ड आइलैंड, मैनिटोबा, ओंटारियो तथा ब्रिटिश कोलंबिया जैसे अनेक राज्यों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्र सड़कों पर मार्च निकाल रहे हैं। कनाडा के राज्य प्रिंस एडवर्ड आइलैंड में तो पिछले तीन महीने से कई सौ छात्र आव्रजन कायदों में बदलाव के विरोध में वहां की विधानसभा के सामने तंबू लगाए प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे छात्रों के बीच काम कर रहे यूथ सपोर्ट नेटवर्क नामक संस्था ने चेताया है इस साल के आखिर में छात्रों के ‘वर्क परमिट’ खत्म हो जाएंगे और संभव है उन्हें मजबूरन देश छोड़ना पड़े।
आव्रजन को लेकर कनाडा के राज्यों की नीतियां स्थितियों को और उलझा रही हैं। अनेक राज्य हैं जिनमें स्थाई निवास की अपील के कोटे में 25 फीसदी कटौती कर दी गई है। कई छात्रों को इस बात पर भी गुस्सा है कि उन्होंने पढ़ाई के दौरान कनाडा में इस संबंध में सारे कायदों का पालन किया लेकिन सरकार ने उनके वहां स्थाई रूप से बसने के रास्ते में रोड़े अटका दिए हैं।
ऐसा क्यों किया जा रहा है? इसके जवाब में कनाडा के ही एक अधिकारी का कहना है कि सरकार निवास की उपलब्धता तथा स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ रहे दबाव को लेकर परेशान है। इसीलिए बाहर देशों से यहां आने वाले छात्रों की परमिट अपीलों पर एक मर्यादा तय की गई है। इस साल उम्मीद है करीब 3,60,000 ‘स्टडी परमिट’ ही स्वीकार किए जाएं। पिछले साल इससे 35 प्रतिशत ज्यादा परमिट दिए गए थे।
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