78वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर युवा चिंतन समूह भारत विमर्शम् के 51 सदस्यों के दल द्वारा दिवेर युद्ध विजय स्मारक पर तिरंगा रोहण किया गया। भारत विमर्शम् के द्वारा राजस्थान में चलने वाले विभिन्न युवा विचार समुहों की चौथी वार्षिक गतिविधि के अंतर्गत दिवेर दर्शन यात्रा का आयोजन स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नवाचार किया गया। इस क्रम में दिवेर युद्ध विजय स्मारक, चारभुजा नाथ दर्शन, कुंभलगढ़ एवं राजसमंद का भ्रमण रहा।
दिवेर युद्ध स्मारक तक पहली बार तिरंगा रैली
सर्वप्रथम युवा विचार समुहों के दल के दिवेर राष्ट्रीय राजमार्ग पहुंचने पर ग्रामवासियों द्वारा तिरंगे का उपरना ओढ़ाकर व तिलक लगाकर सहभागियों का स्वागत किया गया। दिवेर विजय स्मारक तक तिरंगा रैली के रूप में शोभायात्रा निकाली। स्थानीय लोक वाद्य थाली-मादल की थाप के साथ प्रतिभागी तिरंगा लहराते एवं नृत्य करते एवं भारत के जयघोष गुंजायमान करते हुए चल रहे थे। ‘स्वाधीनता के शेर की- जय हो तीर्थ दिवेर की’ के जयघोष लगाये गये। दिवेर युद्ध स्मारक पहुंचकर ध्वजारोहण किया गया और महाराणा प्रताप की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि व मायड़ थारो वो पूत अठे गान से सामूहिक शब्दाजंलि निवेदित की। नारायण लाल द्वारा यहाँ स्मारक दर्शनार्थियों को स्मारक के वास्तु की जानकारी देते हुए इसकी तीनों थीमों व निर्माण के चरणों के बारे में विस्तार से बताया। इस यात्रा का उद्देश्य बताते हुए यात्रा के आयोजक दिग्विजय सिंह कहते हैं महाराणा प्रताप स्वाधीनता के अप्रतिम उपासक व अंग्रेजों से स्वाधीनता संग्राम करने वाले प्रत्येक सेनानी के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं और दिवेर में महाराणा प्रताप की आक्रान्ता अकबर पर निर्णायक विजय ने स्वाधीनता की जो अलख प्रज्जवलित की वो शताब्दियों तक स्थापित रही व विजय स्मारक के रूप में युगों युगों तक विश्व को स्वाधीतना व विजय की प्रेरणा देती रहेगी।
स्मारक के सभागार में आयोजित वार्ता सत्र में दिवेर विजय स्मारक संस्थान के महामंत्री एवं इतिहासकार नारायण लाल ने “मुगलों पर महाराणा प्रताप की निर्णायक विजय – दिवेर युद्ध” विषय पर विचार रखे। इतिहासकार नारायण लाल ने कहा कि 1582 में कुंवर अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर के आसपास की समस्त मुगल चौकियों पर मेवाड़ी सेना ने धावा बोला, जिसमें महाराणा प्रताप एवं भामाशाह सम्मिलित थे। दिवेर के युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने एक ही वार में बहलोल खां को घोड़े समेत दो टुकड़े कर वध किया और अमर सिंह ने सुल्तान खान को भाले से छलनी कर दिया, तो ये समाचार आग की तरह फैल गये। जिससे मेवाड़ की सभी चौकियों से मुगल भाग खड़े हुए, जो अजमेर जाकर रुके। इसके पश्चात मुगल सेना पलटकर वापस कभी मेवाड़ आने का साहस नहीं कर सकी।
प्रश्नोतर के सत्र में उन्होंने कहा कि इतिहास में इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी दिवेर के बारे में समाज के मध्य चर्चा नहीं रहती, क्योंकि दिवेर के इस महत्व को जानबूझकर पूर्वाग्रहों के कारण इतिहास की पुस्तकों में स्थान नहीं दिया गया। जबकि राज प्रशस्ति व वीर विनोद में इसका उल्लेख मिलता है दिवेर विजय स्मारक मन में गौरव का भाव भरने के साथ-साथ यह भी स्मरण कराता है कि हमारी स्वाधीनता की अनमोल है जो अनेकों बलिदानों से प्राप्त हुई है और हमारी स्वाधीनता का संग्राम मात्र 1947 से ही नहीं अपितु सैकड़ौ वर्षों से चली आ रही है।
अजेय कुम्भलगढ़
मेवाड़ के आराध्य चारभुजा नाथ के दर्शन कर राष्ट्र एवं समाज के लिए प्रार्थना की। दर्शन उपरांत अजेय दुर्ग कुंभलगढ भ्रमण के दौरान अजयमेरु निवासी शोधार्थी दिव्यांश ने इस महान दुर्ग के इतिहास को सबके समक्ष रखा। जिसमें राणा कुंभा द्वारा निर्माण, महाराणा प्रताप जन्म स्थल, पन्ना धाय द्वारा उदय सिंह को सुरक्षित लाना, शक्ति की आराधना, बादल महल, ध्वनि की गूंज से संकेत भेज सकने के अनुरूप कक्ष का निर्माण, नीलकंठ महादेव, दुर्ग की दीवारों के बारे में बताया, मेवाड़ मारवाड़ के मध्य, सात किमी पहले से दिखना बन्द हो जाना आदि।
वैचारिक कार्यशाला
दूसरे सत्र में वक्ता प्रो अमित झालानी ने परिचर्चा समूहों की संकल्पना रखते हुए कहा कि भारत के हित-अहित को समझने के लिए आत्म एवं शत्रु बोध का होना आवश्यक है। साथ ही प्रभावी अभिव्यक्ति के लिए युवा को दृढ़ संकल्पित, आशावान, अध्ययनशील एवं आध्यात्मिक होना चाहिए। समाज को समाधान प्रशस्त करने वाला युवा वर्ग हो।
अधिवक्ता दिग्विजय सिंह ने उद्देश्य को विस्तार से रखते हुए कहा कि एजेंडा संचालकों की वैचारिक ठगी को उजागर करना आवश्यक है। विचारों की सत्यता को देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार समझना चाहिए।
अंत में राजसमंद में आयोजित “लेखन-पठन व संबंधित क्षेत्र में कौशल विकास” विषयक सत्र में रूचि श्रीमाली ने कहा कि युवा को पढ़ने का स्वभाव उपन्यास से शुरू कर, फिर तथ्यपरक पुस्तकों की तरफ बढ़ना चाहिए। भूमिका समझने के लिए कम से कम 50 पृष्ठ पढ़ने ही चाहिए। इसके बाद संग्रह में रूचि अनुसार पुस्तकों को ऊपर से नीचे के क्रम में रखना चाहिए। यात्रा में संयोजक डॉ गायत्री, गीता ,डॉ सुनील , विकास , दिवेर स्मारक समिति के चन्द्रवीर सिंह, कालू सिंह व जीरण सरपंच उपस्थित रहे। यात्रा में 13 जिलों के 18 समूहों से 51 प्रतिभागी उपस्थित रहे।
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