पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला चिकित्सक के साथ दुष्कर्म होता है। उसकी बर्बर हत्या हो जाती है। न्याय की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों को डराने के लिए उन पर गुंडों द्वारा हमला कर दिया जाता है। अस्पताल परिसर में घुसकर साक्ष्य मिटाने की साजिश की जाती है। कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा मामले की जांच स्थानीय पुलिस से छीनकर सीबीआई को सौंपे जाने के बाद राज्य की मुख्यमंत्री सीबीआई को धमकाती हैं कि वह 18 अगस्त तक इस मामले में जांच पूरी कर फांसी सुनिश्चित करे, क्योंकि 90 प्रतिशत जांच तो कोलकाता पुलिस ने पूरी कर ली है। यही नहीं वह पीड़िता को न्याय दिलाने के नाम पर खुद न्याय यात्रा निकालने की ‘नौटंकी’ भी करती हैं। इतने जघन्य कृत्य हुआ लेकिन कथित सेकुलर लॉबी के मुंह से अभी तक एक शब्द भी नहीं निकला।
पश्चिमी बंगाल में 34 वर्ष तक कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का शासन रहा और 13 साल से यहां तृणमूल की सरकार है। शासन बदला, लेकिन शासन प्रणाली नहीं। आज पश्चिम बंगाल के लोग ऐसे दोराहे पर हैं जहां उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। उनकी स्थिति ऐसी है कि खामोश रहो या फिर मारे जाओ। ‘भद्रलोक’ कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में महिलाओं के साथ पाशविकता होती है और राज्य सरकार सिर्फ महिला सुरक्षा के दावे कर हर घटना के बाद चुप्पी साध लेती है। हालत यह है कि स्थानीय लोेगों का ही नहीं बल्कि कलकत्ता उच्च न्यायालय का भरोसा भी स्थानीय पुलिस से उठ चुका है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने खुद इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी और कहा कि पुलिस ने घटना के पांच दिन बाद तक कुछ नहीं किया। ऐसे में साक्ष्य मिटाए जाने की पूरी संभावना है।
सवाल कई, जवाब नहीं
- मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष का बयान पहले दर्ज नहीं किया गया था। न्यायालय की फटकार के बाद बयान लिया गया।
- कोलकाता पुलिस ने पहले मामले को आत्महत्या बताया, डॉक्टरों के प्रदर्शन के बाद मामला दर्ज किया।
- घटना की रात ड्यूटी पर मौजूद चार अन्य डॉक्टरों के सैंपल जांच के लिए नहीं लिए गए।
- इतनी जघन्य घटना के बाद भी ‘अपराध स्थल’ को सील नहीं किया गया।
- ‘आन कॉल रूम’ ( जहां डॉक्टर आराम करते हैं ) में निर्माणकार्य शुरू करा दिया गया।
- हत्या के बाद वहां प्रदर्शन करने पहुंचे अन्य मेडिकल कॉलेज के छात्रों को कैंपस से बाहर निकाल दिया गया। यही नहीं, पुलिस ने एक दो डॉक्टरों के साथ मारपीट भी की।
- कॉलेज में जहां डॉक्टर बैठक कर रहे थे पहले वहां की बिजली काटी फिर पुलिस ने उन्हें जबरन बाहर निकाल दिया।
- प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों की मांग पर डॉक्टर के एक दल को 13 अगस्त दोपहर ढाई बजे पुलिस ने घटनास्थल की रात की सीसीटीवी फुटेज दिखाने के लिए बुलाया गया था जिसके आधार पर आरोपी को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने यह कहकर वीडियो दिखाने से मना कर दिया कि अब जांच सीबीआई करेगी इसलिए वीडियो नहीं दिखाया जा सकता।
सच साबित हुई आशंका
जो आशंका कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जताई, ऐसा हुआ भी नजर आ रहा है। 14 अगस्त की रात, पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए बंगाल की महिलाएं कैंडल मार्च लेकर कोलकाता की सड़कों पर निकलीं। इनमें आईटी पेशवेर, डॉक्टर व कामकाजी महिलाएं शामिल थीं। वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर निकली हजारों गुंडों की फौज। लगभग 7000 की इस भीड़ ने आरजी कर कॉलेज परिसर में घुसकर तोड़फोड़ शुरू कर दी। प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों और अस्पताल के कर्मचारियों को पीटा। पुलिस की गाड़ियां पलट दीं। भीड़ आपातकाल वार्ड में घुस गई। मौके पर मौजूद डॉक्टरों और मेडिकल के छात्रों ने कमरे बंद कर अपनी जान बचाई। अस्पताल में हुई गुंडागर्दी पर कोलकत्ता उच्च न्यायालय ने इसे राज्य सरकार की मशीनरी की विफलता बताया। गत16 अगस्त को न्यायालय ने मामले की सुनवाई दौरान सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इतने लोग रात को टहलने के लिए तो नहीं आ सकते। मरीजों को यहां से स्थानांतरित कर अस्पताल को बंद कर देना चाहिए।
आरजी मेडिकल कॉलेज के छात्र शुभांकर ने बताया, ‘‘हम सभी शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। अचानक भीड़ अंदर घुस आई और तोड़फोड़ करने लगी। हमने रोकने की कोशिश की तो हमारे साथ मारपीट की गई। इधर—उधर भागकर किसी तरह हम लोगों ने जान बचाई। ऐसा लग रहा था मानो पूरी योजना के साथ भीड़ यहां आई थी।’’ ऐसे ही एक अन्य छात्र अंशुमन बताते हैं,‘‘ भीड़ तीसरे तल पर जाने की कोशिश कर रही थी जहां पर महिला चिकित्सक से दुष्कर्म हुआ था। ऐसा लग रहा था कि उन्हें षड्यंत्रपूर्वक इस जगह पर भेजा गया था। उनकी मंशा सारे साक्ष्य नष्ट करने की नजर आ रही थी। ’’ मेडिकल छात्रा चिनमिता बिस्वास बताती हैं, ‘‘मैं दूसरे मेडिकल कॉलेज की छात्रा हूं हमारे कॉलेज के छात्र भी यहां प्रदर्शन करने के लिए एकत्रित हुए थे। लेकिन इस भीड़ ने हम जैसीं लड़कियों के साथ भी मारपीट की। सब डर गए थे। पुलिस और आरएएफ भी उनको संभाल नहीं पा रही थी।’’
एमबीबीएस पूरा करने के बाद इंटर्न कर रही काकुली घोष ने कहा, ‘‘ एक महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार कर उसकी निर्मम हत्या कर दी जाती है। उसको न्याय दिलाने के लिए एक तरफ पूरा देश एकजुट होकर अपना विरोध जता रहा है। वहीं दूसरी तरफ गुंडे अस्पताल में घुसकर तोड़फोड़ कर रहे हैं। राज्य की यह स्थिति सब कुछ बताने के लिए काफी है।’’
एक अन्य छात्रा प्रियंका घोष कहती हैं, ‘‘पुलिस बेबस है। कुछ नहीं कर पा रही है। उसके ऊपर एक अजीब तरह का भारी दबाव दिखाई देता है। ऐसा लग रहा है कि मामले को दबाने के लिए सब योजना के तहत किया जा रहा हो।’’
कोलकाता की रहने वाली डॉक्टर दिब्या का कहना है, ‘‘अच्छा हुआ कि मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई। स्थानीय पुलिस मामले की जांच सही से करती ही, इसका उन्हें कतई भरोसा नहीं था। यह एक व्यक्ति का काम नहीं हो सकता। इसमें और भी अपराधी शामिल हैं, जिन्हें बचाने की कोशिश की जा रही है।’’
घटना को लेकर भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी कहते हैं ‘‘पश्चिम बंगाल सरकार की शह के चलते कोलकाता पुलिस ने अपराधियों और तृणमूल के गुंडों को सबूत नष्ट करने के लिए अस्पताल परिसर में घुसने की इजाजत दी। हालांकि भारी दबाव के बाद पुलिस ने खानापूर्ति के लिए अस्पताल में हुई तोड़—फोड़ के मामले मेें 9 लोगों को गिरफ्तार किया है।
इसमें तृणमूल कांग्रेस का कार्यकर्ता सौमिक दास भी शामिल है। सौमिक स्थानीय पार्षद राजू सेन शर्मा का काफी करीबी बताया जाता है। सौमिक ने पुलिस के सामने तोड़फोड़ में शामिल होने की बात भी स्वीकार की है।
पूर्व में हुईं कुछ घटनाएं
फरवरी 2024:
- बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में 13 साल की बच्ची के साथ हैवानियत की गई थी। बलात्कार कर उसके स्तन काट दिए गए थे। उसकी आंखें निकाल ली गईथीं, 27 जनवरी को गांव के सरसों के खेत में बच्ची का शव बरामद हुआ।
वर्ष 2022 :
- 24 परगना जिले के सागरद्वीप में कक्षा चार की एक छात्रा के साथ कथित दुष्कर्म का आरोप एक तृणमूल कार्यकर्ता पर लगा था।
- 22 मार्च को उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट में एक जनजातीय महिला के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म हुआ और आरोप तृणमूल के ही एक कार्यकर्ता पर लगा था।
- 24 मार्च को बशीरहाट में 11 साल की एक बच्ची को स्थानीय टीएमसी नेता ने यौन अपराध का शिकार बनाया तो उसी दिन पश्चिम मेदिनीपुर के केशपुर में एक होम ट्यूटर के साथ एक पुलिस कर्मी ने दुष्कर्म किया था।
- एक अप्रैल को मालदा जिले के हरिश्चंद्रपुर में 14 साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ, गिरफ्तार किए गए दो लोग तृणमूल कार्यकर्ता थे। उसी दिन बर्धमान के गलसी में एक स्थानीय तृणमूल नेता ने सरकारी योजना में कार्य करने वाली महिला के साथ दुष्कर्म किया था।
- चार अप्रैल को नदिया जिले के हांसखाली में नाबालिग के साथ दुष्कर्म व मौत का मामला सामने आया था। इस मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।
- 10 अप्रैल को दक्षिण 24 परगना के नामखाना में एक गृहिणी के साथ दुष्कर्म किया गया और फिर केरोसिन डालकर आग लगाकर जलाने की कोशिश की गई थी।
- 10 अप्रैल को बीरभूम के बोलपुर में एक जनजातीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था।
- 11अप्रैल को पश्चिम मेदिनीपुर में दिव्यांग महिला का अपहरण कर दुष्कर्म किया गया था। इसका आरोप तृणमूल कांग्रेस के नेता पर लगा और उसे गिरफ्तार किया गया।
कमिश्नर पर उठे सवाल
इस मामले में पीड़िता की तरफ से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में कहा कि इस मामले को सीबीआई को सौंपने के लिए पहले 7 दिन का समय मांगा गया। फिर कम से कम 24 घंटे मांगे गए। इसके बाद गुंडों ने रातोंरात साक्ष्य नष्ट करने के लिए हमला कर दिया। उन्होंने मामले की तुलना 2013 में कामदूनी गांव में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा से हुए दुष्कर्म से की। उस समय कोलकाता पुलिस के वर्तमान कमिश्नर विनीत गोयल राज्य सीआईडी के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) थे। उस समय 9 लोगों ने छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी थी। दो आरोपियों रफीकुल इस्लाम और नूर अली को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया था। एक की ट्रायल के दौरान मौत हो गई थी, जबकि शेख इमानुल इस्लाम, अमीनुर इस्लाम और भोला नस्कर को 10 साल की सजा हुई। उन्हें 2023 में दस हजार रुपए के जमानत बॉन्ड पर छोड़ दिया गया था। सैफुल अली और अंसार अली को फांसी की सजा मिली थी, जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।
सीबीआई के लिए भी चुनौती
घटना के कई दिन बाद सीबीआई को जांच सौंपी गई है। इस बीच साक्ष्य मिटा दिए गए हों, इस बात की पूरी आशंका है। ऐसे में सीबीआई के सामने भी मामले को साबित करना चुनौतीपूर्ण होगा। नाम न बताने की शर्त पर आरजी कर कॉलेज के एक चिकित्सक ने बताया, ‘‘इतनी जघन्य घटना के बाद भी इस मामले में कोलकाता पुलिस का जो रवैया रहा, वह संदेहास्पद है। ऐसा लग रहा है कि पुलिस ने किसी को बचाने की कोशिश की है। बहुत संभव है कि साक्ष्यों को मिटाने की निश्चित ही कोशिश की गई हो।’’ घटना के बाद से कई आडियो क्लिप भी वायरल हो रहे हैं। ऐसे ही एक आॅडियो क्लिप में दो डॉक्टर बात कर रहे हैं, जिनमें वह कह रहे हैं कि पुलिस बाकी आरोपियों को बचा रही है, क्योंकि वह राजनीतिक पहुंच वाले हैं और उसी मेडिकल कॉलेज के छात्र हैं। हालांकि यह आॅडियो क्लिप असली हंै, इस बात की अभी तक स्थानीय पुलिस ने कोई पुष्टि नहीं की है।
मामले को दबाने का प्रयास
महिला चिकित्सक के साथ हुई बर्बरता को पुलिस ने पहले आत्महत्या बताया और मामले को दबाने की कोशिश की थी। घटना 8 अगस्त की रात आरजी मेडिकल कॉलेज के तीसरे तल पर ‘सेमिनार रूम’ में हुई। डॉक्टर इसी कॉलेज में ‘चेस्ट डिपार्टमेंट’ में एमडी द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। उस रात वह अकेली महिला चिकित्सक ड्यूटी पर थीं। घटना की रात ड्यूटी पर दो जूनियर चिकित्सक, दो इंटर्न चिकित्सक और एक हाउस स्टाफ चिकित्सक ड्यूटी पर थे। हाउस स्टाफ चिकित्सक की ड्यूटी आपातकाल में थी।
महिला चिकित्सक रात करीब दो बजे ‘सेमिनार हॉल’ में आराम करने गई थीं। तीसरे तल पर जहां यह घटना हुई, वहां पर एक ही ‘रेस्ट रूम’ है। इसके चलते वह ‘सेमिनार हॉल’ में आराम कर रही थी। वहीं यह घटना घटित हुई। अगले दिन सुबह करीब 9 बजे अस्पताल के एक कर्मचारी ने चिकित्सक को अर्धनग्न अवस्था में मृत देखा और अस्पताल प्रशासन को जानकारी दी। घटना की सूचना पाकर पहुंची पुलिस ने मामले को दबाने की भरसक कोशिश की।
महिला डॉक्टर के माता—पिता को फोन पर कहा गया कि आपकी बेटी की तबियत खराब है, आप तत्काल अस्पताल पहुंचें। जब उनके अभिभावक वहां पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि उसने आत्महत्या कर ली है। उन्हें तीन घंटे तक अंदर नहीं जाने दिया गया। इस बीच अस्पताल के अन्य चिकित्सक और मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र भी मौके पर पहुंच गए। महिला डॉक्टर के शव की स्थिति देख और मामले को आत्महत्या बताने पर अस्पताल में चिकित्सकों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया।
चिकित्सकों ने कहा, यह आत्महत्या नहीं है, इसलिए पुलिस जो भी जांच करेगी वह एमडी की पढ़ाई कर रही दो महिला चिकित्सकों और अभिभावकों के सामने करेगी। हंगामा बढ़ता देख पुलिस महिला चिकित्सक के अभिभावकों एवं एमडी की पढ़ाई कर रहीं दो चिकित्सकों के सामने जांच करने की बात पर राजी हो गई। वहां के एक चिकित्सक ने बताया, ‘‘पुलिस ने इस प्रक्रिया में सुबह के दस बजे से शाम के चार बजा दिए। इस बीच ‘आपराधिक स्थल’ पर जो सावधानी बरतनी चाहिए थी वह नहीं बरती गई। जिस जगह घटना हुई उस जगह को सील नहीं किया गया। फॉरेंसिक जांच के लिए जो नमूने लिए गए वे भी प्रोटोकॉल के तहत नहीं लिए गए। बिना दस्ताने पहने वहां से जांच के नमूने उठाए गए।
तृणमूल से जुड़ा है आरोपी
पुलिस मौके पर मिले ब्लूटूथ ईयरबड के एक टूटे हुए हिस्से और सीसीटीवी फुटेज की मदद से आरोपी तक पहुंची। आरोपी की पहचान संजय राय के रूप में हुई। वह पुलिस कल्याण बोर्ड में ‘सिविक वॉलिंटयर’ के तौर पर काम करता था। खबरों की मानें तो ‘सिविक वॉलिंटयर’ के तौर पर जिन लोगों की भर्ती की जाती है कि वह तृणमूल का काडर ही होते हैं। इन्हें संविदा पर भर्ती किया जाता है। ट्रैफिक प्रबंधन या किसी आपदा के समय ये पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं। इनकी विभिन्न जगहों पर ड्यूटी लगाई जाती है जिसके लिए इन्हें सरकार से 12 हजार रुपए भुगतान किया जाता है।
दुष्कर्म के आरोपी संजय राय की ड्यूटी आरजी मेडिकल कॉलेज की पुलिस चौकी में थी। इसके चलते वह अस्पताल के किसी भी विभाग में बिना किसी रोकटोक के चला जाता था।
संजय राय के फोन में कई अश्लील वीडियो मिले हैं। पुलिस के अनुसार घटना की रात उसने शराब पी हुई थी। इसके बाद उसने अश्लील वीडियो देखे। सेमिनार हॉल में महिला डॉक्टर को अकेले सोते देख उसके साथ दुष्कर्म किया और विरोध करने पर बर्बरता से उसकी हत्या कर दी।
एमडी तीसरे वर्ष के चिकित्सक बिप्लव बताते हैं, ‘‘पुलिस ने एक ही आरोपी को गिरफ्तार किया गया है। जबकि उस रात वहां पर एमडी प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे दो चिकित्सक और एमबीबीएस कर रहे दो इंटर्न चिकित्सक और एक एमबीबीएस और इंटर्न पूरी कर चुके चिकित्सक, जिसे ‘हाउस स्टाफ’ कहते हैं, वह भी डयूटी पर थे। वह अकेली महिला चिकित्सक उस दिन ड्यूटी पर थीं। पुलिस को जांच के लिए बाकी मौजूद पुरुष चिकित्सकों के नमूने भी लेने चाहिए थे, जो नहीं लिए गए।’’
जनता सब जानती है
ममता बनर्जी सरकार पर आरोपों की फेहरिस्त बहुत लंबी हैं। इतने जघन्य अपराध होने के बाद भी जिस बेशर्मी से ममता बनर्जी अपने समर्थकों के साथ 16 अगस्त को न्याय यात्रा के नाम पर ‘नौटंकी’ की, वह उनकी मंशा को बता गई। उनका कहना है कि कि ‘बेटी को न्याय दो’ न्याय कौन दिलाएगा? उस बेटी को न्याय मिले यह सुनिश्चित करना तो उन्हीं का काम था। लेकिन उन्होंने यहां भी ओछी राजनीति की। वही मुख्यमंत्री हैं और गृह और स्वास्थ्य विभाग भी उन्हीं के पास है। यानी हर तरह से बेटी को न्याय दिलाने का कर्तव्य उनका ही है। लेकिन वह इस कर्तव्य बचना चाह रही हैं। दरअसल, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस कांड की जांच सीबीआई को सौंपकर ममता बनर्जी को एक बड़ा झटका दिया है। शायद उन्हें इसी बात का गुस्सा है और इस गुस्से का प्रदर्शन उन्होंने रैली में भी किया। ठीक है, वह रैली कर सकती हैं, करें, लेकिन यह मत भूलें कि वह जो कर रही हैं, वह महज दिखावा भर है। वह शायद यह भूल रही हैं कि यह जनता है, यह सब जानती है। जो जनता सत्ता दे सकती है, वह सत्ता छीन भी सकती है।
ये दुलत्ती तुम्हें मुबारक!
टिप्पणियाँ