जब दंगे शुरू हुए तो बड़े भाई साहब जगत राम,भाभी, मुझे और हमारी दो बहनों को लेकर वहां से निकल गए। फौज के ट्रक में सवार होकर पहले लाहौर आए, हमने रास्ते में सिर्फ आग के गुबार देखे, लोगों को जलता हुआ देखा। लाहौर में हमारी रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों ने बहुत मदद की
#हरबंस लाल कुमार
मानसेहरा (पाकिस्तान)
उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी में रहने वाले हरबंस लाल कुमार का जन्म अविभाजित भारत के हरिपुर हजारा जिले के मानसेहरा तहसील में हुआ, विभाजन के समय उनकी उम्र 11 साल के आसपास थी। हरबंस लाल बताते हैं, ‘‘उनकी मानसेहरा में जवाहर मल करमचंद के नाम से फर्म थी।
राशन का थोक का कारोबार था, हमारी फर्म अंग्रेजों को इनकम टैक्स भी दिया करती थी। आजादी से करीब छह महीने पहले ही बवाल होने लगा था। मुसलमानों के गिरोह बाहर से घोड़ों पर सवार हो कर आते थे। अल्लाह हो अकबर के नारे लगाते हुए हिंदुओं के यहां लूटपाट कर उनकी औरतों को उठाकर ले जाते थे।
जब दंगे शुरू हुए तो बड़े भाई साहब जगत राम,भाभी मुझे और हमारी दो बहनों को लेकर वहां से निकल गए। फौज के ट्रक में सवार होकर पहले लाहौर आए, हमने रास्ते में सिर्फ आग का गुबार देखा, लोगों को जलता हुआ देखा। लाहौर में हमारी रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों ने बहुत मदद की, हमारे अमृतसर आने तक का प्रबंध किया। भोजन-पानी और कपड़े भी दिए।
हम अमृत सर से ट्रेन में बैठकर पहले दिल्ली, फिर हरिद्वार आए और किरोड़ीमल धर्मशाला में छह महीने तक रहे, वहां से हमें हल्द्वानी जाने का रास्ता मिला, क्योंकि यहां दुकानें बना कर हिंदुओं को बसाया जा रहा था। हमारे भाई साहब हरिद्वार में हमें छोड़ कर वापिस मानसेहरा गए और फिर पिताजी, ताया जी,चाचा जी के साथ लौट कर आए। वापसी पर उन्होंने बताया कि मुसलमानों ने सब कुछ लूट लिया था।
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