उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश मोहम्मद नसीम ने दुष्कर्म के मामले की सुनवाई करते हुए अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई है। अपर सत्र न्यायाधीश मोहम्मद नसीम ने अपने फैसले में इस घटना को रेयरेस्ट ऑफ रेयर माना है। अपर सत्र न्यायाधीश ने रामचरित मानस की चौपाई को उद्धृत करते हुए अपने निर्णय में लिखा है कि ऐसे अपराधी को समाज मे रहने का कोई औचित्य नहीं है। अपर सत्र न्यायाधीश ने निणर्य सुनाते हुए कहा कि “जब इस केस को पूरा पढ़ा तो रात भर ठीक से सो नहीं पाया।”
28 जुलाई 2020 को एक बच्ची अपने घर पर मौजूद थी। तभी उसका ताऊ घर में आया और बच्ची को घुमाने के बहाने घर से बाहर ले गया। उसके बाद उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। घटना के बाद बेहोशी हालत में बच्ची को घर के बाहर छोड़कर चला गया। बच्ची की मां ने एफआईआर दर्ज कराई। इलाज के लिए बच्ची को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां पर ऑपरेशन के बाद उसे एक हफ्ते तक भर्ती रखा गया था। उसके बाद लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अपर सत्र न्यायाधीश ने अपने निर्णय में लिखा है कि “प्रस्तुत प्रकरण में दोषसिद्ध द्वारा अपनी सगी तीन वर्षीय असाध्य, लाचार, कमजोर व अबोध बालिका को अपनी हवस का शिकार बनाकर उसे मरने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। ऐसे पैशाचिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है और हमारी भारतीय संस्कृति के समाज को ऐसे पैशाचिक व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। यदि ऐसा व्यक्ति जीवित रहता है तो समाज में अत्यन्त बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रकार दोषसिद्ध द्वारा अपनी सगी भतीजी तीन वर्षीय अबोध पीड़िता के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्संग एवं लैंगिक हमला करने के अपराध में आजीवन कारावास दिया जाना न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इस प्रकार के प्रकरण में दोषसिद्ध को कठोरतम दण्ड दिया जाना युक्तियुक्त न्यायोचित एवं विधि सम्मत होगा। धर्मग्रन्थों से भी कन्या को कुदृष्टि से देखने पर उसका वध कर देना उचित माना गया है। रामचरित मानस में यह कहा गया है कि-
अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।। इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधे कछु पाप न होई ।।”
इसका अर्थ है कि हे मूर्ख। सुन, छोटे भाई की स्त्री, बहन, पुत्र की स्त्री और कन्या ये चारो, समान है। इनको जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है, उसका बध करने में कोई पाप नहीं होता।
न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि इस प्रकार प्रस्तुत प्रकरण के तथ्यों, परिस्थितियों अपराध की प्रकृति, अपराध की भयावहता, अपराध का समाज पर पड़ने वाला प्रभाव एवं अपराधी की परिस्थितियों का अवलोकन करने के पश्चात यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि दोषसिद्ध द्वारा कारित अपराध विरल से विरलतम (Rarest of Rare) मामलों की श्रेणी में आता है और ऊपर वर्णित उच्चतम न्यायालय की विधि व्यवस्थओं में पारित विधि सिद्धांत की परिधि में आता है और उनमें उल्लेखित मानकों की कसौटी पर भी खरा उतरता है।
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