देहरादून। जिला देहरादून सहित उत्तराखंड के चारों मैदानी जिलों में फर्जी मदरसे बेखौफ चल रहे हैं। राष्ट्रीय और उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जिला अधिकारियों को तलब किए जाने के बावजूद जिला प्रशासन नकेल कसने को तैयार नहीं है। इसके पीछे मुख्य कारण प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छाशक्ति का नहीं होना है।
जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में 400 से अधिक मदरसे अवैध रूप से चल रहे हैं, जिन पर नकेल कसी जानी है। उल्लेखनीय है कि यूपी, असम और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकारों ने अवैध मदरसों पर ताले डाल दिए हैं।
ऐसी जानकारी भी आई है कि यूपी की योगी सरकार के भय से कई मदरसों के संचालकों ने देवभूमि उत्तराखंड की तरफ रुख कर लिया है। बताया जा रहा है कि देवबंद से दारुल उलूम मदरसा, जमीयत उलेमा ए हिंद, तब्लीगी जमात ,मुस्लिम सेवा संगठन इसमें सहयोग कर रहे हैं।
पिछले दिनों यूपी पुलिस द्वारा अयोध्या में 93 बच्चों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की सूचना पर बरामद किया था। ये बच्चे एक मौलवी द्वारा बिहार से यूपी और उत्तराखंड के मदरसों में लाए जा रहे थे। ये इस बात का भी संकेत हैं कि उत्तराखंड में एक बड़ी साजिश के तहत बच्चों को लाकर उन्हें मदरसों में इस्लामिक शिक्षा दी जा रही है। ऐसी भी जानकारी आई है कि इन मदरसों को देवबंद से आर्थिक सहयोग मिल रहा है।
देहरादून में पिछले दिनों आजाद कॉलोनी में जिस मदरसा, जामियातुल सलाम उल इस्लामिया में बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने जांच पड़ताल की, उसमें ये पाया गया कि उक्त मदरसा किसी भी शिक्षण संस्थान में पंजीकृत नहीं है और न उत्तराखंड मदरसा बोर्ड में इसका रजिस्ट्रेशन है । यहां करीब 250 बच्चे 400 गज के भवन में ठूंसे हुई अवस्था में पढ़ाए जा रहे हैं। इसके भवन निर्माण आदि की कोई अनुमति जिला प्रशासन, एमडीडीए से नहीं ली हुई थी।
यहां 55 बच्चे बिहार के श्रमिकों के बताए गए हैं, वे यहां कैसे और क्यों लाए गए ये भी बड़ा सवाल है? देहरादून में ऐसे कई मदरसे चल रहे हैं, जिनका कहीं पंजीकरण नहीं। ये मदरसे या तो जुम्मे के दिन एकत्र हुए चंदे से अथवा देवबंद के मदरसे के आर्थिक मदद से संचालित हो रहे हैं। इन मदरसों में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, यहां क्या पढ़ाया जा रहा है ? इस बात की भी कोई जानकारी प्रशासन के पास या शिक्षा विभाग के पास नहीं है।
कुछ माह पहले हरिद्वार जिले में भी ऐसे ही मदरसे संज्ञान में आए जब राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग को शिकायत मिली थी कि यहां हिंदू बच्चे आरटीई के तहत भर दिए गए। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछले दिनों उत्तराखंड के सभी तेरह जिला अधिकारियों को दिल्ली तलब करते हुए कहा था कि सभी मदरसों की जांच रिपोर्ट उन्हें प्रेषित की जाए। जानकारी के अनुसार इसके बाद हर जिले में एक नोडल अधिकारी को नामित तो किया गया किंतु अभी तक जांच रिपोर्ट को जाहिर नहीं किया गया है।
उधर, उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना का कहना है कि शासन को मदरसों की जांच जल्द करवानी चाहिए क्योंकि उनके आयोग के पास जो जांच संबंधी सूचनाएं हैं। उसके अनुसार उत्तराखंड में संचालित अधिकतर मदरसे, बाल अधिकारों, शिक्षा के अधिकारों के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते। यहां बाहरी प्रदेशों से बच्चे लाकर क्यों पढ़ाए जाते हैं ? इस बारे में विचार किया जाना चाहिए।
वैदिक मिशन संस्था के संयोजक जगवीर सैनी बताते हैं कि बाहरी प्रदेशों के बच्चे यहां कौन और किस उद्देश्य से लाकर मदरसों में भर्ती किए जा रहे हैं ? ये एक बड़ी साजिश है। आगे चलकर उत्तराखंड में जनसंख्या असंतुलन की समस्या खड़ी हो जाएगी।
वीर सावरकर संगठन के कुलदीप स्वेडिया कहते हैं कि यूपी में फर्जी मदरसे बंद हुए। उनके संचालक देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल जिले में आकर मदरसे खोल रहे हैं। हल्द्वानी में हुई बनभूलपुरा हिंसा की घटना एक फर्जी मदरसे से ही शुरू हुई थी।
ऐसी जानकारी मिली है कि देहरादून के पछुवा इलाके में जो कि सहारनपुर जिले से जुड़ा हुआ है, यहां देवबंद के मदरसों से जुड़े दर्जनों मदरसे संचालित हो रहे हैं। ये सब सरकारी जमीनों पर कब्जे करके पक्की इमारतों में तब्दील हो गए हैं। इन्हें अब एमडीडीए या जिला प्रशासन भी नोटिस देने का साहस नहीं कर रहा। बहरहाल देवभूमि में जिसका स्वरूप सनातनी है, यहां उत्तराखंड में फर्जी मदरसे एक बड़ी समस्या बन चुके हैं जोकि एक षड्यंत्र के तहत इस्लामिक शिक्षा के प्रसार में लगे हैं। इस पर लगाम लगाए जाने की जरूरत है।
क्या कहते हैं मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि उत्तराखंड में सभी मदरसों की जांच की जा रही है। उनके बयान के बाद जिलों में प्रशासनिक हलचल तो शुरू हुई है, लेकिन कभी आपदा कभी अन्य प्रशासनिक व्यस्तता, मदरसा जांच को प्रभावित करती रही है। नैनीताल और उधम सिंह नगर जिले में कई फर्जी मदरसे बंद भी करवाए गए हैं।
टिप्पणियाँ