प्रेम कुमार धूमल
देश में राष्ट्रभक्ति का गजब का माहौल था, ऐसा लगता था सारा भारत एक है, देश की एकता, अखण्डता, सर्वभौमिकता बचाये रखने के लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार था। कारगिल का संघर्ष क्या शुरू हुआ ऐसा लगा जैसे सारा राष्ट्र और राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक देश के लिये कोई भी कुर्बानी देने को तैयार था। विश्व के इतिहास में पहली बार हुआ जब देशभक्ति से ओत-प्रोत विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री अटल जी सभी चुनौतियों, चेतावनियों और व्यक्तिगत सुरक्षा के खतरों को नज़रअन्दाज करते हुये 2 जुलाई 1999 को सीमा पर तैनात युद्धरत सैनिकों की पीठ थपथपाने के लिये स्वयं वहां जा पहुंचे। आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री को अपने साथ सीमा पर खड़ा देखकर सैनिकों का साहस तो सातवें आसमान पर पहुंचना स्वभाविक था।
5 जुलाई 1999 को कारगिल के युद्ध क्षेत्र में जाने के बाद श्रीनगर के सैनिक अस्पताल में उपचाराधीन घायल सैनिकों को दैनिक उपयोग का आवश्यक सामान दे रहे थे, एक जवान चादर ओढ़े हुये लेटा था उसने सामान पकड़ा नहीं, हमने विस्तर के साइड टेबल पर सामान रखा और आगे बढ़ने लगे तभी डॉक्टर ने कहा कि माईन ब्लास्ट में इस वीर सैनिक के दोनों हाथ और दोनों पैर चले गये थे। हम फिर मुड़े और पूछा, ‘‘बहुत दर्द होता होगा’’, सैनिक ने उत्तर दिया, ’’कल शाम से नहीं हो रहा है’’। हमने पूछा क्या कोई (पेन किलर) दर्द निवारक दवाई ली या टीका लगा ? उसने उत्तर दिया ‘‘नहीं, कल शाम (4 जुलाई को) टाईगर हिल वापस ले लिया और तिरंगा फहरा दिया, मेरा दर्द चला गया। राष्ट्रभक्ति और मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को शत शत नमन।
राष्ट्रभक्ति के साथ साथ एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता के भी कई उदाहरण देखने को मिले। शिमला जिले का एक जवान बलिदान हुआ था, उनकी घर की अर्थिक स्थिति कमजोर थी। जब हमने अनुग्रह राशि उन्हें दी तो उस गरीब परिवार ने कहा हमें आधी राशि ही दीजिए, अभी युद्व चल रहा है और बलिदान हो रहे हैं और आपको कई और परिवारों की सहायता करनी है, हमें आधी राशि दे दो, बाकि किसी और परिवार के काम आ जायेगी । बलिदानी को तो नमन था ही पर गरीब परिवार की संवेदनशीलता और दूसरों के प्रति समर्पण की भावना से हम सभी द्रवित हो गये और उन्हें धन्यवाद देते हुये हमने कहा कि राशि आपके लिये ही है और आवश्यकता होगी तो लोग योगदान दे ही रहे हैं ।
पालमपुर में तो जहां एक ओर प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा तो वहीं कारगिल युद्ध के नायक कैप्टन विक्रम बत्रा का भी घर है। उस दिन हम कैप्टन विक्रम बत्रा के पार्थिव शरीर का इंतजार कर रहे थे। वहीं पर कारगिल युद्व के प्रथम बलिदानी कैप्टन सौरभ कालिया की माता जी, विजय कालिया और कैप्टन विक्रम बत्रा की माता जी साथ-साथ बैठी थीं । विजय कालिया श्रीमती बत्रा को ढांढस बंधा रही थीं, एक महान मां दूसरी महान माता को साहस बंधा रही थी, शायद यही जीवन है ।
इसी प्रकार जिला बिलासपुर की एक बहादुर मां, कौशल्या देवी जी जब मिलीं तो उन्होंने कहा, धूमल जी कल मंगल सिंह की अर्थी को डेढ किलो मीटर मैंने कंधा दिया। मैंने पहली बार सुना कि बलिदान की मां ने अपने सुपुत्र की अर्थी को कंधा दिया हो। बलिदानी और मां की हिम्मत को सलाम ।
सोलन जिला मुख्यालय में चपरासी के पद पर नियुक्त एक व्यक्ति का सैनिक बेटा बलिदान हो गया, अन्तिम संस्कार में भाग लेने के बाद हम उसके घर ढांढस बंधाने के लिये गये । बलिदानी की मां ने कहा मेरा बेटा देश के काम आ गया, दूसरा बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है, यह भी पढ़कर फौज में भर्ती होगा और देश की सेवा करेगा।
जिला हमीरपुर के बमसन क्षेत्र में पहाड़ी के ऊपर एक बगलू गांव है। यहां से राज कुमार सुपुत्र खजान सिंह बलिदान हुये थे। चढ़ाई चढ़ते मैं सोच रहा था कि बलिदान के बजुर्ग पिता जी से कैसे बात करूंगा । मैं उनके आंगन में पहुंच गया और इससे पहले कि मैं कुछ बोलता, खजान सिंह बोले, ‘‘धूमल साहब, बेटे तो पैदा ही इसलिये किये जाते हैं कि पढ़ें, लिखें और बड़े होकर फौज में भर्ती हों और देश की रक्षा करें। उन्होंने अपने दोनो पोते मुझे मिलाये और कहा ये भी पढ़कर फौज में भर्ती होंगे और देश की सेवा करेंगे। उन्होंने मुझे कहा आप दिल्ली जायेंगे तो प्रधानमत्रत्री वाजपेयी जी को कहना कि जवानों की यदि कमी हो तो 82 वर्ष का हवलदार खजान सिंह आज भी हथियार उठाकर देश की रक्षा करने के लिये तैयार है ।
बलिदानियों का दम्य साहस, परिवारों का सम्पूर्ण समर्पण, अटल जी का दृढ़निश्चयी नेतृत्व सदियों तक देश के लिये प्रेरणा रहेगा।
5 जुलाई को जब अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने आदरणीय अटल जी को फोन करके कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ इनके पास पहुंच गये हैं और अटल जी से आग्रह किया कि वे भी युद्ध विराम की घोषणा कर दें और अमेरिका आ जायें ताकि समस्या का सर्वमान्य हल निकाला जा सके। उस ऐतिहासिक क्षण में श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का यह कथन – ‘जब तक एक भी घुसपैठिया कारगिल में है, तब तक न युद्व विराम होगा और न मैं देश छोड़कर कहीं जाऊंगा’ इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा प्रधानमंत्री के इस दृढ़संकल्प को देखते हुये सारे राष्ट्र में एक नई ऊर्जा आ गई और सैनिकों में यह संकल्प और दृढ़ हो गया और भारत की वीर सेना ने निर्णायक विजय प्राप्त की ।
कारगिल से वापसी पर हम प्रभु अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास उतरे, दर्शन किये और संयोग से टाइगर हिल विजय प्राप्त करने वाले जवान भी उसी समय गुफा में दर्शन करने के लिये आये। हमने उन से चर्चा की और नरेन्द्र मोदी जी ने तो उनके हथियार लेकर उन हथियारों के बारे में जानकारी भी ली ।
यह उचित ही है कि 26 जुलाई को प्रतिवर्ष हम कारगिल विजय दिवस मनाते हैं और उन बलिदानियों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं ।
(लेखक कारगिल युद्ध के समय हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे)
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