देहरादून: आज विश्व बाघ दिवस है और उत्तराखंड सहित देश के अन्य राज्यों में टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट की चर्चा हो रही है। उत्तराखंड में कॉर्बेट, राजा जी टाइगर रिजर्व के साथ-साथ वेस्टर्न सर्कल में बाघों की लगातार बढ़ती संख्या से ये बात साबित हुई है कि हिमालय शिवालिक की तलहटी बाघों के लिए सबसे महफूज जगह है।
उत्तराखंड में 2023 की बाघों की गणना में 560 बाघों की तस्वीर जंगल क्षेत्र में लगाए कैमरे में ट्रैप हुई थी। इनमें कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 260 बाघ, वेस्टर्न सर्कल में 88, लैंसडाउन वन प्रभाग में 29 बाघ होने की बात कही गई है।
हर जिले में टाइगर की मौजूदगी
उत्तराखंड में बाघों के बारे में एक दिलचस्प बात ये भी सामने आई है कि राज्य के 13 जिलों में बाघ होने के साक्ष्य मिले हैं, उत्तरकाशी, चमोली, पौड़ी पिथौरागढ़ के ऊंचे इलाकों में भी टाइगर दिखाई दिया है। बागेश्वर में भी बाघ दिखाई दिया है।
बाघों के विशेषज्ञ आईएफएस डा पराग मधुकर धकाते बताते हैं कि बागेश्वर का नाम भी बाघ से जुड़ा हुआ है, इस लिए बाघों के पहाड़ में होने के साक्ष्य कोई नई बात नहीं है। उनका ये भी कहना है कि उत्तराखंड में स्थानीय लोगों का ये भी मानना है कि जहां देवी दुर्गा में मंदिर या शक्ति स्थल है वहां बाघों की मौजूदगी होती है और लोग इसे शक्ति की सवारी मानते हैं।
बाघ विशेषज्ञ डा विपुल मौर्य बताते हैं कि पहाड़ों ने तेंदुए अधिक है और वो बूढ़े बच्चो पर हमले करते है किंतु टाइगर हमला तब तक नहीं करता जब तक उसे छेड़ा न जाए। बाघों के विषय में तराई पश्चिम वन प्रभाग के डीएफओ प्रकाश आर्य कहते हैं कि बाघों के व्यवहार में कुछ सालों से बदला हुआ भी दिख रहा है पहले बाघ अपनी टेरेटरी में किसी दूसरे बाघ को घुसने नहीं देता था पर अभी कैमरा ट्रैप में एक साथ बाघ घूमते हुए शिकार करते हुए और एक साथ पानी पीते हुए मिले है।
उत्तराखंड वन्य जीव प्रतिपालक डा समीर सिन्हा बताते है कि ज्यादा बाघ एक साथ दिखना अध्ययन का विषय है और हम इस और सचेत भी है फिलहाल जहां ऐसी तस्वीरें सामने आई है वहां से बाघों को झुंड से अलग कर उन्हें जंगल के उन दूसरे हिस्सों में भेजा जा रहा है जहां उनकी संख्या नहीं है, इसी क्रम में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से राजा जी पार्क में बाघों को शिफ्ट भी किया गया है। देश में बाघों की संख्या 3682 हो गई है पिछले दस सालो में सरकार की बाघ संरक्षण नीतियों की बदौलत 65 फीसदी का इजाफा हुआ है।
अभी भी ऐसे जंगल है जहां बाघ तो है पर उनकी सुरक्षा के लिए नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथार्टी ने कोई योजना नहीं बनाई है, उत्तराखंड में बाघों की संख्या वेस्टर्न सर्कल में किसी छोटे टाइगर रिजर्व से कहीं अधिक है लेकिन उनकी सुरक्षा राम भरोसे है।
नहीं बनी टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स
भारत सरकार द्वारा बनाई गई एनटीसीए के द्वारा उत्तराखंड सरकार को बार-बार टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स बनाने के लिए कहा जाता रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस बारे में दो बैठकें भी कर चुके है किंतु इस बारे में वन्य जीव प्रतिपालक और अन्य अधिकारी कोई रुचि नहीं लेते। यदि टाइगर फोर्स बन जाती है तो बाघों की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर नए मापदंड स्थापित हो सकते है।
सीएम धामी हैं बाघ प्रेमी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले दिनों बाघों की सुरक्षा में लगे कॉर्बेट पार्क के सुरक्षा कर्मियों के साथ जंगल में पैदल और हाथी में बैठकर गश्त करके ये संदेश दिया था कि बाघों की सुरक्षा कितनी जरूरी है,उन्होंने कॉर्बेट कर्मियों का हौंसला बढ़ाया था, उल्लेखनीय है कि मानसून के दौरान टाइगर रिजर्व बंद कर दिए जाते है और इस दौरान बाघों के शिकारी भी जंगल में प्रवेश लेते है, “आप्रेशन मानसून” चला कर कॉर्बेट और राजा जी प्रशासन द्वारा बाघों की सुरक्षा की जाती है। सीएम धामी इस बारे में कहते हैं टाइगर का हम संरक्षण और सुरक्षा तो करते ही है साथ ही हमारे राज्य में टाइगर टूरिज्म की वजह से लाखों बाघ प्रेमी भी आते हैं जो कि एक बड़े आर्थिकी चक्र को भी घुमाते है। सीएम कहते हैं हम अपने बाघों की संरक्षण को पहली प्राथमिकता में रखते हैं इनकी सुरक्षा में कोई चूक को बर्दाश्त भी नहीं करते।
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