INDO-US Relations: 'भारत को मिले विशेष सहयोगी देश का दर्जा', American Senate में इस मांग के साथ पेश किया गया बिल
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INDO-US Relations: ‘भारत को मिले विशेष सहयोगी देश का दर्जा’, American Senate में इस मांग के साथ पेश किया गया बिल

विश्व के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच रणनीतिक स्तर पर और साथ ही राजनयिक, आर्थिक तथा सैन्य स्तरों पर भी साझेदारी को और प्रगाढ़ किए जाने की जरूरत है

by WEB DESK
Jul 27, 2024, 12:32 pm IST
in विश्व
सीनेटर मार्को रुबिओ

सीनेटर मार्को रुबिओ

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सीनेटर मार्को रुबिओ ने यह विधेयक, ‘अमेरिका-भारत प्रतिरक्षा सहयोग एक्ट’ संसद में प्रस्तुत करते हुए कहा कि अमेरिका को चाहिए कि वह भारत की उसके ​क्षेत्र में उसकी अखंडता के प्रति बढ़ रहे खतरे को पहचाने और उसके साथ खड़ा हो। विधेयक के जरिए मांग की गई है कि पाकिस्तान भारत में आतंकवाद फैला रहा है, इसे देखते हुए पाकिस्तान को हर प्रकार की सुरक्षा सहायता रोक दी जाए।


अमेरिकी संसद में भारत के बढ़ते कद को विशेष सम्मान के साथ देखा जाने लगा है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश के जन प्रतिनिधि जान रहे हैं कि अब भारत को पीछे रखकर न वे खुद आगे बढ़ सकते हैं, न ​दुनिया को दिशा दिखाई जा सकती है। अमेरिकी संसद में इसी भाव को दर्शाता हुआ एक विधेयक पटल पर रखा गया है। भारत और उसके मित्र देशों के लिए यह एक गौरव की तो भारत से नफरत करने वाले देशों को तिलमिला देने वाली बात है।

अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबिओ ने यह विधेयक, ‘अमेरिका-भारत प्रतिरक्षा सहयोग एक्ट’ संसद में प्रस्तुत करते हुए कहा कि अमेरिका को चाहिए कि वह भारत की उसके ​क्षेत्र में उसकी अखंडता के प्रति बढ़ रहे खतरे को पहचाने और उसके साथ खड़ा हो। विधेयक के जरिए मांग की गई है कि पाकिस्तान भारत में आतंकवाद फैला रहा है, इसे देखते हुए पाकिस्तान को हर प्रकार की सुरक्षा सहायता रोक दी जाए। इतना ही नहीं, सीनेटर रुबिओ ने प्रस्ताव पेश करते हुए साफ कहा कि कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना शिकंजा कसने में लगा है, यह बात भी हमें ध्यान रखनी चाहिए।

बाइडेन-मोदी: विधेयक में मांग की गई है कि जिस प्रकार अमेरिका जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों को नाटो देशों जैसा ही मोल देता है, भारत को भी यह देश वैसी ही प्रमुखता पर रखे। (File Photo)

सब जानते हैं कि भारत के पड़ोसी जिन्ना के कंगाल इस्लामी देश और उसके आका कम्युनिस्ट चीन किस प्रकार भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहे हैं। इन दोनों देशों से भारत को जो खतरा है उसे लेकर अमेरिकी सीनेटर अनजान नहीं हैं। इसके अलावा भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी में जो उभार देखा जा रहा है, उसे देखते हुए भी अमेरिका नहीं चाहेगा कि मित्र देश भारत के प्रति कोई नफरती ताकत शरारत करने की सोचे।

इसीलिए वाशिंगटन में संसद में रुबिओ के पेश किए विधेयक में मांग की गई है कि जिस प्रकार अमेरिका जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों को नाटो देशों जैसा ही मोल देता है, भारत को भी यह देश वैसी ही प्रमुखता पर रखे। आगे विधेयक में मांग की गई है कि भारत को भी तकनीक हस्तांतरण वैसे ही किया जाना चाहिए जैसे उक्त देशों को किया जाता है।

माना जा रहा है कि सीनेटर रुबिओ ने इन्हीं मांगों के साथ संसद में जो अमेरिका-भारत प्रतिरक्षा सहयोग एक्ट रखा है, उसे अधिकांश सांसदों का समर्थन प्राप्त होगा, क्योंकि पाकिस्तान तथा चीन की असलियत से वे परिचित हैं और जानते हैं कि न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि दुनिया के लिए ये दोनों ही देश किस प्रकार के खतरे पेश करते हैं।

विस्तारवादी और दुनिया भर में अपना बाजार खोलने को लालायित चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जैसी आक्रामक गतिविधियों में लगा है, वे भी किसी से छुपी नहीं हैं। इस क्षेत्र के छोटे टापू देशों को वह पैसे के दम पर अपने प्रभाव में लेता जा रहा है। चीन की इस चाल से अमेरिका के इस क्षेत्र में भारत जैसे सहयोगी देशों की संप्रभुता तथा अखंडता को लगातार खतरा बना रहता है।

Representational Image

इस दृष्टि से जरूरी है कि अमेरिका और भारत मिलकर चीन का प्रतिकार करें। इसके लिए विश्व के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच रणनीतिक स्तर पर और साथ ही राजनयिक, आर्थिक तथा सैन्य स्तरों पर भी साझेदारी को और प्रगाढ़ किए जाने की जरूरत है। भारत—रूस संबंधों को जानते हुए विधेयक में यह उल्लेख भी है कि भारत को रूस से एक सीमा तक संबंध रखने दिए जाने चाहिए। सीनेटर जानते हैं कि भारत रूस से सैन्य हथियार वगैरह आयात करता है जो वर्तमान भू राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए भारत के लिए जरूरी है।

अमेरिकी सीनेट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब इसमें विशेष रूप से भारत को लेकर कोई विधेयक प्रस्तुत किया गया है। कुछ सीनेटर कहते हैं कि क्योंकि अमेरिका में आगामी नवम्बर माह में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं इसलिए रिपब्लिकन तथा डेमोक्रेटिक, दोनों पार्टी के सीनेटरों को किसी मुद्दे पर एकमत करना उतना सरल नहीं रहेगा। ऐसा हुआ और यह विधेयक पारित न हो पाया तो सीनेटर रुबिओ इसे चुनाव के बाद फिर से सीनेट में रखने के लिए भी तैयार बताए गए हैं।

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