अभिनेता सोनू सूद, जिनकी छवि मददगार अभिनेता की है, उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए कदम कि हर दुकान और प्रतिष्ठान पर विक्रेता का नाम होना चाहिए, की आलोचना करते समय बहुत ही बहुत ही बेढंगी एवं अपमानजनक तुलना की है। परंतु चूंकि हिंदुओं के आराध्यों का अपमान करने का कोई दंड नहीं मिलता है तो हर किसी के पास इतनी स्वतंत्रता होती है कि वह हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान कर सके।
हालिया निर्णय काँवड़ियों की यात्रा की शुद्धता को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। मगर इसमें सोनू सूद ने मानवता की बात की थी। जब उनसे लोगों ने कहा कि क्या वे थूक लगा हुआ खाएंगे तो सोनू सूद ने लिखा कि हमारे प्रभु श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे, तो मैं क्यों नहीं खा सकता। हिंसा को अहिंसा से पराजित किया जा सकता है, मेरे भाई। बस मानवता बरकरार रहनी चाहिए। जय श्री राम!
इस पोस्ट पर लोग और भड़क गए और भड़कना स्वाभाविक भी है। सबसे पहले तो माता शबरी द्वारा प्रभु श्रीराम को अपने जूठे बेर खिलाने का कोई भी उल्लेख न ही श्री वाल्मीकि रामायण में प्राप्त होता है, न ही श्रीरामचरित मानस में और न ही रामोंपाख्यान में तथा न ही कंब रामायण में। हालांकि, यह भी सत्य है कि यह प्रसंग हमारी चेतना में बसा हुआ है। तमाम कवियों ने भक्ति भाव में आकर यह कहा कि इतने वर्षों से माता शबरी अपने प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा करते-करते व्याकुल हो गई थीं, कि वे अपने प्रभु श्रीराम को कोई भी खट्टा या कड़वा फल नहीं खिलाना चाहती थीं, इसलिए वे भक्तिभाव से विभोर होकर, अपने हृदय में श्रद्धा का भाव लेकर बेर चखती गईं और खिलाती गईं।
मगर यह प्रसंग भक्ति से जुड़ा हुआ है। माता शबरी जो अपने प्रभु श्रीराम कई अनन्य भक्ति थीं, जो अपना आँगन और आश्रम अपने प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा में हमेशा बुहार कर रखती थीं, हमेशा प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन रहती थीं, उनका अस्तित्व ही प्रभु श्रीराम की भक्ति से था, वे अपने प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा में अपने पालक पाँवड़े बिछाकर रखती थीं, उनकी तुलना क्या उन लोगों से की जा सकती है, जो मजहबी विद्वेष के चलते गैर-मजहबियों के भोजन में, सब्जी में, तथा अन्य खानेपीने की वस्तुओं में अपना थूक मिलाते हैं।
क्या माता शबरी की तुलना उन अपराधियों से की जा सकती है, जो लगातार दूसरे के धार्मिक विश्वास को खंडित करने का प्रयास करते रहते हैं? क्या माता शबरी की तुलना उन लोगों से की जा सकती है जो नाली में सब्जियां धोकर बेचते हैं? क्या यह महान नारी माता शबरी का अपमान नहीं है? यह निश्चित ही एक ऐतिहासिक स्त्री के चरित्र हनन का कुत्सित प्रयास है और इसका विरोध यदि नहीं किया गया, तो हिंदुओं के तमाम ऐतिहासिक पात्रों के साथ इसी प्रकार का चरित्र हनन किया जाएगा। यूं तो हिंदुओं के ऐतिहासिक तथा धार्मिक चरित्रों का चरित्र हनन करना हिन्दी फिल्मों की विशेषता रही है और बिना इसके कोई भी फिल्म पूरी नहीं हो सकती थी, परंतु वास्तविक जीवन में सार्वजनिक रूप से ऐसा कम होता था, जो अब सोशल मीडिया के कारण सोनू सूद जैसे लोग करने लगे हैं। सोनू सूद ने अहिंसा शब्द को भी विकृत किया है।
अहिंसा का अर्थ, किसी की विकृत सोच के आधार पर किए गए कृत्य को सहन करना नहीं होता है। अहिंसा का अर्थ होता है जीव कल्याण हेतु हिंसा न करना, किसी निर्बल पर प्रतिशोध न करना, किसी निर्बल पर अनुचित बल प्रयोग न करना, किसी दीन हीन को अपनी किसी भी प्रकार की हिंसा का निशाना न बनाना, और इसी अहिंसा को हमारे धर्मग्रंथों में तमाम प्रकार बताया गया है। परंतु यदि कोई आपके साथ छल करता है, आपके धार्मिक विश्वास को विकृत करने के लिए नित नए कदम उठाता है, वह आपकी धार्मिक मान्यताओं पर लगातार प्रहार करता है, आपके धार्मिक अस्तित्व को पूरी तरह मिटा देना चाहता है तो उसका प्रतिकार तो आवश्यक है ही।
इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने भी सोनू सूद के इस विकृत पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि
शबरी राम की पूजा करती थी
शबरी बेर बेच नहीं रही थी
शबरी ने राम से अपना नाम और पहचान नहीं छिपाई
मां शबरी के नाम पर मो. शब्बीर की दुकान नहीं चलने देंगे
जो लोग शबरी के नाम से शब्बीर की दुकान चलाना चाहते हैं, दरअसल हिंसा वही कर रहे हैं। हिंसा का अर्थ भौतिक हिंसा से ही नहीं होता है, यदि कोई आपके साथ छल करता है, आपके साथ आपके अस्तित्व से घृणा करते हुए झूठ बोलता है, और आपके धार्मिक विश्वास को पूरी तरह से विकृत कर देता है, वह भी मानसिक हिंसा का ही एक प्रकार है। सोनू सूद जब यह कहते हैं कि हिंसा को अहिंसा से ही पराजित किया जा सकता है, तो उन्हें यह समझना होगा कि जो लोग दुकान के मालिकों का नाम लिखवाने का समर्थन कर रहे हैं, यही अहिंसक मार्ग है।
यही वह मार्ग है जिस पर प्रभु श्रीराम चले थे, अर्थात सत्य का मार्ग। छल का नहीं! उन्होनें सत्य का मार्ग अपनाते हुए सेना का संगठन किया था और उन्होनें तमाम असुरों से भी यही कहा था कि वे छल का मार्ग छोड़ें। परंतु जब ऐसा नहीं हुआ था तो उन्होनें रावण से युद्ध किया था। वे भी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर ही चलने के पक्षधर थे, परंतु छल को उन्होनें भी स्वीकार नहीं किया था। रावण ने भेष बदलकर माता सीता का अपहरण किया था, यह हिंसा थी।
अहिंसा का सबसे बड़ा शस्त्र होता है सत्य और वर्तमान परिदृश्य में जो लोग दुकानों के सच्चे मालिकों का नाम लिखवाना चाहते हैं, वे सत्य का मार्ग अपना रहे हैं, जिससे कि वे माता शबरी जैसी भक्ति पूर्ण महिला के स्थान पर उस व्यक्ति के यहाँ का भोजन न खरीद लें, जो उनके धार्मिक अस्तित्व को और उस पूजा प्रक्रिया को विकृत करने की मंशा लिए हुए हैं, जिसकी तैयारी वे कई महीनों से कर रहे थे।
सोनू सूद जैसे लोग माता शबरी को, प्रभु श्रीराम और काँवड़ियों द्वारा उठाए जा रहे अहिंसक मार्ग की विकृत व्याख्या कर रहे हैं और जिसे वह हिंसा कह रहे हैं, वही अहिंसा का मार्ग है। क्योंकि अहिंसा का मार्ग सत्य का मार्ग है। जो असत्य भाषण करता है, जो अपना नाम झूठ लिखता है, जो अपना सामान बेचने के लिए झूठ का सहारा लेता है और जो दूसरे के धार्मिक विश्वास को नष्ट करने के लिए थूक लगाकर, या मूत्र में लपेटकर फल बेचता है, वह ऐसी हिंसा कर रहा होता है, जिसकी गहराई को मापा नहीं जा सकता है।
यह और भी बड़ा दुर्भाग्य है कि सत्य के अहिंसक कदम को सोनू सूद जैसे लोगों के द्वारा हिंसा ठहराया जा रहा है। समय आ रहा है कि ऐसे कथित सेलेब्रिटीज़ को यह समझाया जाए कि उनकी सीमाएं क्या हैं और उन्हें न ही हमारे प्रभु श्रीराम, न ही माता शबरी और न ही हमारे धर्म से जुड़ी किसी भी घटना, व्यक्ति एवं अवधारणा की विकृत व्याख्या का अधिकार है।
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