पाञ्चजन्य के “सुशासन संवाद: छत्तीसगढ़” कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्कार राजीव रंजन प्रसाद ने विचारधारा की भूमिका और उसके योगदान को लेकर पूछे गए सवाल पर कहा, विचारधारा एक ऐसा बिंदु है, जिसके इर्द-गिर्द पूरे समाज को घुमाया जाने लगा है. उन्होंने बस्तर के सन्दर्भ में कहा, “पूरे छत्तीसगढ़ में जब भी परिचर्चा होती है, तो बस्तर केंद्र बिंदु बन जाता है. जिसकी वजह यह है कि विचारधारा ने बस्तर को ऐसा अंधों का हाथी बनाया जा रहा है, जिसको वो जैसा दिखाना चाहती है, वैसा ही दिखाया जा रहा है. बस्तर के साथ अन्याय हुआ है, क्योंकि जैसी वहां स्थिति थी, उससे उलट वहां की स्थिति को दिखाया गया है.
उदाहरण- अबूझमाड़ में आज की भी स्थिति यही है कि वहां लोग अनाज मिलकर उत्पादित करते हैं और बाद में आपस में बराबर रूप से बांट लेते हैं. ऐसी परिस्थिति में नक्सलवादियों को बंदूक लेकर घुसने की जरूरत नही थी, लेकिन विचारधारा के कारण ऐसी कोशिश की गई कि आपकी भौगोलिक परिस्थितियां बंदूक लिए लोगों को छिपाने में मदद कर रही थी और भूगोल उन्हें सपोर्ट कर रहा था. बस्तर के एक तरफ महाराष्ट्र, एक तरफ उड़ीसा, एक तरफ तेलंगाना और झारखंड है. बस्तर जिस तरह से चारों तरफ से अलग-अलग राज्यों से घिरा हुआ है और उसके घिरे होने के कारण वारदात करने में सुविधा मिल रही है. एक तरफ वारदात को अंजाम देकर दूसरे क्षेत्र में छिपने का परिक्षेत्र विचारधारा का ऐसा फुटबॉल बन चुक है, जहां वारदात को अंजाम देने के लिए बस्तर को एक शेल्टर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.
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