छत्तीसगढ़ की 32 प्रतिशत जनसंख्या जनजातीय समाज से है। इनकी जीवनशैली प्रकृति पूजक है। भतरा, मुरिया, बिरहोर, बैगा आदि विशेष पिछड़ी जनजातियों में आती हैं। आधुनिक दौर में इनकी रीतियों को सहेजना आवश्यक है। श्रीराम के ननिहाल को नक्सलवाद और कन्वर्जन से बचाना होगा।
छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक इतिहास हमें अपने अतीत से जोड़ता है और सिखाता है कि धरोहर की जड़ों को सींचे बिना संस्कृति का वृक्ष हरा नहीं रह सकता। इसलिए इन्हें संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों को इसके महत्व को समझाना हमारी प्राथमिकता है। छत्तीसगढ़ का यह सांस्कृतिक इतिहास और रामवनगमन पथ हमें न केवल अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हैं बल्कि भविष्य के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को भी दर्शाते हैं।
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