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ये कहां ले आए हमें भेड़ों की तरह चलाते?

संस्कृति के साथ छेड़छाड़ करके देश की राजनीति में उथल-पुथल मचाने की लंबी रणनीति होती है और उस पर वामियों ने लंबा काम किया है। हमारे देश और समाज का दुर्भाग्य यह है कि यह सब साहित्य या तो अंग्रेजी या जर्मन या फ्रेंच आदि में उपलब्ध है।

by WEB DESK
Jul 6, 2024, 10:36 am IST
in संस्कृति, सोशल मीडिया
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आजकल ऐसी चार-पांच बालिकाओं के वीडियो देख रहा हूं, जिनकी आवाज लता जी से काफी मिलती-जुलती है। हां, साधना से ही स्थान निश्चित होगा, यह निर्विवाद है। लेकिन एक बात निश्चित रूप से समझ में आती है कि भारतीय जनता के मानस में लता जी की आवाज एक स्वर्ण-मान है, जिसे वे खोना नहीं चाहती। हमने समय के साथ समझौता तो कर लिया है, लेकिन हमारी चाहत यही है कि कोयल निरंतर कूकती रहे, इसीलिए उनकी आवाज से मिलती युवा प्रतिभाओं की ओर बड़ी आशा से देखा जाता है।

प्रश्न यह है कि अगर सुर के वारिस मिल भी जाएं, तो क्या उनसे उस दर्जे के गीत गवाने वाले संगीतकार भी उपलब्ध हैं? क्या अर्थपूर्ण गीत लिखने वाले गीतकार उपलब्ध हैं? आज भी जहां कहीं लाइव आर्केस्ट्रा प्रोग्राम होते हैं, युवा कलाकार उसी जमाने के गाने गाते हैं, जिसे भारतीय फिल्म म्यूजिक में गोल्डन पीरियड माना गया है। तालियां भी उन्हीं गीतों को मिलती हैं। और वे केवल नकल नहीं करते। गीतों के बोल में कहीं किसी शब्द में अलग से भाव घोलने की कोशिश बता देती है कि वे समझ भी रहे हैं कि क्या गा रहे हैं? पर इन नए फिल्मी गीतों की उम्र कितनी है?

सच में, इस्लाम से भी ज्यादा नुकसान हमारा वाम ने किया है।  इस्लाम हजार वर्ष से मेहनत कर रहा है, वाम को सौ साल भी नहीं हुए। सरिता जैसी पत्रिकाओं ने गृहिणियों की समाज और धर्म के प्रति अवधारणाओं में किस तरह का बदलाव ला दिया है, अंदाजा लगाने भर से ही दिल दहल जाता है। ख्रश्चेव की बात याद आती है कि हम आप को धीरे-धीरे ऐसे बदल देंगे कि आप को पता ही नहीं चलेगा कि आप कम्युनिस्ट हो गए हैं। मतलब, आप से खिलवाड़ यूं होगा कि आपको लगेगा कि आप ही खुद में सुधार कर रहे हैं।
कबीर याद आते हैं, थोड़े बदलाव के साथ-

जाति न पूछो वाम की, पूछ लीजिए दाम।
मोल करो दिमाग का, पड़ा रहने दो ज्ञान।

अगर हमारे कानों को अभी भी अच्छे-बुरे की पहचान है, तो कूड़ा कैसे स्वीकार्य हो गया? क्यों अभिरुचि बदल दी गई? वैसे एक महिला मित्र से इस विषय पर चर्चा में उन्होने एक अनूठा तर्क दिया। उनका कहना था- लता जी की आवाज का अपना महत्व है, जो आज की किसी भी फिल्म में अभिनेत्री के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता। मुझे उनका यह विश्लेषण ठीक लगा।

इसका मतलब यह भी होता है कि फिल्मों में अभिनेत्रियों के चरित्र को कुछ इस कदर बदल दिया गया है कि लता जी की या इस तरह की आवाज का उससे मेल बैठना बंद हो गया है। इस आवाज के साथ जो गुण जुड़े हैं, उन्हें आज की भारतीय युवती के लिए अप्रासंगिक बना दिया गया है। चरित्र फिल्म अभिनेत्री का नहीं, भारत की युवती का बदल दिया गया है, उसका संदर्भ बदलकर।

आपको आधुनिकता के नाम पर इस बदलाव का समर्थन करने वाले कई लोग मिलेंगे। उनसे बहस का मेरा इरादा नहीं है। मेरा प्रश्न यह है कि जब समाज के अवचेतन के साथ यह खेल खेला जा रहा था, तब क्या हमें यह पता चला कि हमारे समाज के साथ इतना बड़ा खेल हो रहा है?

संस्कृति के साथ छेड़छाड़ करके देश की राजनीति में उथल-पुथल मचाने की लंबी रणनीति होती है और उस पर वामियों ने लंबा काम किया है। हमारे देश और समाज का दुर्भाग्य यह है कि यह तमाम साहित्य या तो अंग्रेजी या जर्मन या फ्रेंच आदि में उपलब्ध है। अडोर्नो, माकर््युज, अरेंड्ट जैसे नाम उल्लेखनीय हैं। ग्राम्शी जितनी ही इनकी भी विचारधारा खतरनाक है। इनके लिखे विचारों को जिन्होंने पढ़ा है, उन्होंने हम पर उनका उपयोग ही किया है, उनका देशज भाषाओं में अनुवाद नहीं किया। नहीं तो यह सब को अभ्यास के लिए उपलब्ध होता और उनके हथकंडे विफल भी होते या उलटाए भी जाते।

सच में, इस्लाम से भी ज्यादा नुकसान हमारा वाम ने किया है। अनुपात देखिए, इस्लाम हजार वर्ष से मेहनत कर रहा है, वाम को सौ साल भी नहीं हुए। सरिता जैसी पत्रिकाओं ने गृहिणियों की समाज और धर्म के प्रति अवधारणाओं में किस तरह का बदलाव ला दिया है, अंदाजा लगाने भर से ही दिल दहल जाता है। ख्रश्चेव की बात याद आती है कि हम आप को धीरे-धीरे ऐसे बदल देंगे कि आप को पता ही नहीं चलेगा कि आप कम्युनिस्ट हो गए हैं। मतलब, आप से खिलवाड़ यूं होगा कि आपको लगेगा कि आप ही खुद में सुधार कर रहे हैं।

कबीर याद आते हैं, थोड़े बदलाव के साथ-

जाति न पूछो वाम की, पूछ लीजिए दाम।
मोल करो दिमाग का, पड़ा रहने दो ज्ञान।

Topics: जाति न पूछो वाम कीपूछ लीजिए दाम। मोल करो दिमाग कापड़ा रहने दो ज्ञान।The psyche of the Indian peoplethe turmoil in politicsthe country and the societydon't ask the caste of the leftask the price. Value the brainभारतीय जनता के मानसlet the knowledge lie.राजनीति में उथल-पुथलदेश और समाज
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