छत्तीसगढ़ के खैरागढ़-छुईखदान-गण्डई जिले के सण्डी गांव की रहने वाली रंजनी जंघेल एक गरीब लघु सीमांत किसान हैं। परिवार के पास आधा एकड़ जमीन है। भरण-पोषण की कठिनाइयों को देखते हुए उन्होंने एक देशी नस्ल की गाय खरीदी, जिसके दूध को वे निकटतम गांव में बेचती थीं, लेकिन उसकी ठीक कीमत नहीं मिलती थी। पशु पालन में हो रहे घाटे से उबरने के लिए आसपास की दुग्ध उत्पादक महिलाओं ने मिलकर सण्डी दुग्ध सहकारी समिति का गठन किया। समिति छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ को संकलित दूध उचित दाम पर बेचती है। इससे महिलाओं को आजीविका का नया सशक्त साधन मिला है। रजनी के पास एच.एफ. संकर नस्ल की चार गाय हैं, उनसे 100 लीटर का उत्पादन होता है, जिसे वह समिति को बेचती हैं।
दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में छोटी सहकारिताओं की सफलता की एक अन्य कहानी महासमुंद जिले के अजुर्नी गांव के किसान नरसिंह पटेल की है। उनकी आय का मुख्य साधन खेती है। 1993-94 में वैकल्पिक आय बढ़ाने के लिए उन्होंने दो गाय खरीद कर पशु पालन की शुरुआत की थी। उन्होंने 1995 में स्थापित अजुर्नी सहकारी दुग्ध समिति के माध्यम से दूध बेचना शुरू किया। इससे उनकी आय में इजाफा हुआ और आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हुई। सहकारी दुग्ध समिति के माध्यम से दूध छत्तीसगढ़ राज्य दुग्ध महासंघ (रायपुर दुग्ध संघ) द्वारा खरीदा जाता है। वर्तमान में पटेल के पास 15-20 पशुधन है। वे समय-समय पर पशु पालन विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेकर नई तकनीकों को भी अपना रहे हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ नरसिंह जैसे किसानों को दूध और अन्य दुग्ध उत्पादों के जरिए आमदनी का नया साधन मुहैया कराने का सेतु है। दुग्ध महासंघ अपनी स्थापना के साथ ही सहकार से किसानों की समृद्धि के लिए निरंतर प्रयासरत है, जिसके फलस्वरूप दूध संकलन वर्ष 2000 में 23,600 किग्रा से वर्ष 2024 में 1.0 लाख किग्रा तक पहुंच गया। दुग्ध महासंघ प्रदेश के 19 जिलों में सहकारिता के माध्यम से सुदूर अंचलों में समितियों को गठित कर दूध संकलित करता है।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ के अंतर्गत 961 समितियों के 26627 सदस्यों द्वारा प्रतिदिन औसतन 70,000 किग्रा दूध संकलित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ के अंतर्गत प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में 5 शीत केन्द्र बसना, धमतरी, भांठागांव, पखांजूर, बेमेतरा (कुल शीतलीकरण क्षमता 68,000 लीटर प्रतिदिन) तथा दुग्ध संयंत्र बिलासपुर, रायगढ़, जगदलपुर तथा मुख्य संयंत्र उरला (कुल क्षमता 1,44,000 लीटर प्रतिदिन) कार्यशील है। यहां पर संकलित दूध को शीतलीकरण एवं प्रसंस्करित कर उच्च गुणवत्ता के दुग्ध पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं।
छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ किसानों द्वारा उत्पादित दूध की गुणवत्ता को संरक्षित करने के उद्देश्य से प्रदेश के विभिन्न जिलों में 78 बल्क मिल्क कूलर की (कुल क्षमता 108 टन लीटर प्रतिदिन) स्थापना की गई है। ए.एम.सी.यू. की 349 इकाई समितियों में स्थापित किया गया है। दुग्ध महासंघ वर्तमान में किसानों से 35 रुपए प्रति लीटर गुणवत्ता के आधार पर क्रय करता है एवं किसानों को प्रोत्साहन राशि (परिवहन अनुदान के रूप में) 2.50 रुपए प्रतिलीटर प्रदान करता है। प्रदेश के विभिन्न जिलों एवं सरकारी संस्थाओं में विनिर्मित दूध एवं दुग्ध पदार्थ घी, मक्खन, मीठा दूध, पेड़ा, नमकीन मट्ठा, श्रीखण्ड, रबड़ी, दही, पनीर इत्यादि का विपणन उचित दर पर किया जाता है।
विपणन उपरांत अतिशेष दूध को मक्खन एवं दूध पाउडर में परिवर्तित कर बाजार में उपलब्ध कराया जाता है। वर्तमान में संस्था प्रतिदिन 60,000 लीटर दूध राज्य के 23 जिलों में 168 वितरकों एवं 795 विक्रेता एवं 251 मिल्क पार्लर के माध्यम से विपणन करती है। इस तरह सहकारिता की उपज दुग्ध महासंघ ग्रामीण व वनांचल से उत्पादित दूध का संकलन एवं प्रसंस्करण कर जहां छोटे लघु और सीमांत किसानों की आमदनी बढ़ा रहा है, वहीं शहरी और कस्बाई उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता का दूध और दुग्ध उत्पाद उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
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