झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जेल से बाहर आने के बाद एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झामुमो ने अपने सबसे पुराने कार्यकर्ता चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की गद्दी सौंपी थी। अब चुनाव के लिए मात्र 3 महीने बचे हैं, फिर भी हेमंत सोरेन अपने आप को मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर नहीं रख पाए। इस पर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हेमंत सोरेन को वर्तमान मुख्यमंत्री और पार्टी के सबसे पुराने नेता चंपाई सोरेन पर तनिक भी विश्वास नहीं था? कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि झामुमो के अंदर परिवारवाद हावी है, यहां बाहर के लोग कभी शामिल नहीं हो सकते।
आपको बता दें कि 6 महीने पहले 31 जनवरी 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था और उसी दिन हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दिया था। इसके बाद विधायक दल की बैठक में चंपाई सोरेन को विधायक दल का नेता बनाया गया था और 2 फरवरी को चंपाई सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
झारखंड में विधानसभा चुनाव के लिए मात्र 3 महीने बचे हैं। इसके बावजूद हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री की कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। इस मामले में इंडी के नेताओं का कहना है कि सत्ता पक्ष के विधायकों ने इस बार का चुनाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में ही लड़ने की योजना बनाई है। यही कारण है कि हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर विपक्ष ने इस मामले को लेकर हेमंत सोरेन और इंडी गठबंधन पर जमकर निशाना साधा है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि कोल्हान के टाइगर को चूहा बना दिया गया। उन्होंने झामुमो की परिवारवादी सोच को उजागर करते हुए कहा कि शिबू सोरेन के परिवार से बाहर का जनजाति केवल काम चलाऊ है। बाहर के लोगों का उपयोग जब जैसा चाहे वह करते हैं और उसके बाद उन्हें दूध की मक्खी की तरह निकाल देते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि झामुमो के नेता शिबू सोरेन परिवार की पालकी ढोने के लिए हैं, ऊंची उड़ान भरना उनके भाग्य में नहीं है।
इस मामले पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने निशाना साधते हुए कहा कि चंपाई सोरेन का युग समाप्त हो गया है। परिवारवादी पार्टी में परिवार के बाहर के लोगों का कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है।
आपको बता दें कि जैसे ही सत्ता पक्ष के विधायक दल की बैठक की घोषणा हुई उसके बाद मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने 2 जुलाई और 3 जुलाई के अपने सभी कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया था। यानी उन्हें पहले से आभास हो चुका था कि अब वे ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री नहीं रहने वाले हैं। हुआ भी वही 3 जुलाई को देर शाम चंपाई सोरेन ने झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जनजातीय समाज से आने वाले चंपई सोरेन की छवि आज भी पूरे राज्य में बेदाग है। उन पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। यही कारण है कि सत्ता हो या विपक्ष हर कोई उनका सम्मान करता है। चंपई सोरेन के हटने से झामुमो को आने वाले चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। कुल मिलाकर हेमंत सोरेन के फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद यह तय हो गया कि झामुमो और कांग्रेस गठबंधन में परिवारवाद इस कदर हावी है कि वे लोग परिवार से बाहर किसी और को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। यह अब दिखाई भी देने लगा है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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