छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित लक्ष्मी महिला नागरिक सहकारी बैंक में अधिकांश कर्मचारी और ग्राहक महिलाएं हैं। इस बैंक की शुरुआत 1994 में हुई थी। यह बैंक सहकारिता का रोल मॉडल बन चुका है। लक्ष्मी महिला नागरिक सहकारी बैंक की चेयरमैन श्रीमती सत्यबाला अग्रवाल कहती हैं, ‘‘बैंक की प्राथमिकता वे महिलाएं हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आती हैं।’’
रायपुर के कुशालपुर में रहने वाली आशा रजक को बैंक ने जनवरी 2023 में 80 हजार रुपए का ऋण दिया था। इससे वह कपड़े प्रेस करने का काम करके स्वरोजगार कर रही हैं। इसी तरह पुरानी बस्ती में रहने वाली मीना पंसारी बैंक से एक लाख रुपए ऋण लेकर टोकरी बनाने का स्वरोजगार कर रही हैं। ऐसी महिलाओं की ऐसी लंबी सूची है जिन्हें बैंक से मिले ऋण ने आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूती प्रदान की है।
रायपुर में ही स्थित व्यावसायिक सहकारी बैंक लि. की स्थापना 1987 में हुई। छोटे उद्यमियों, रेहड़ी वालों से लेकर छोटा-मोटा व्यवसाय करने वाले लोगों के बीच काम करने वाले इस बैंक ने 2022-23 में 2 करोड़ 40 लाख रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया। बैंक के पास लगभग 39,000 खाते हैं। बैंक की जमा राशि 200 करोड़ रुपए से अधिक है। इसमें किसी कॉपोर्रेट बैंक की तरह एटीएम कार्ड, एटीएम मशीन, मोबाइल बैंकिंग, यूपीआई, आईएमपीएस समेत तमाम सुविधाएं ग्राहकों को प्रदान की जाती हैं। हर जमाकर्ता का 5 लाख रुपए का जोखिम बीमा भी होता है। बैंक द्वारा केंद्र सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना का लाभ भी प्रदान किया जाता है।
बढ़ रही है भूमिका
शहरीकरण की बढ़ती दर के साथ सहकारी बैंकों की भूमिका भी बढ़ी है। शहरों में श्रमिक, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम व्यवसायिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह वर्ग अक्सर सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों के दायरे में नहीं आ पाता। देश की बैंकिंग सेवाओं में शहरी सहकारी बैंकों की भूमिका लगभग 4.2 प्रतिशत है। 1502 शहरी सहकारी बैंकों की 11,000 शाखाएं उन क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएं संचालित कर रही हैं, जो भौगोलिक रूप से सार्वजनिक एवं निजी बैंकों के क्षेत्र से वंचित हैं।
इनके ग्राहकों में बड़ा अनुपात छोटे उद्यमी, रेहड़ी वाले, सामान्य जन हैं। 31 मार्च, 2031 तक देश में 51 शहरी सहकारी बैंक सूचीबद्ध श्रेणी में हैं जबकि 1451 गैर सूचीबद्ध (नॉन शिड्यूल) श्रेणी में हैं। वर्तमान में 500 करोड़ रुपए से 1000 करोड़ रुपए की जमा पूंजी वाले शहरी सहकारी बैंकों की संख्या 110 है, जबकि 250 से 500 करोड़ रुपए तक की जमा पूंजी रखने वाले यूसीबी की संख्या 110 तक पहुंच चुकी है।
शहरी सहकारी बैंकों का डिजिटलीकरण
अब सहकारी बैंक भी अन्य बैंकों की तरह नेट बैंकिंग समेत आरबीआई द्वारा निर्दिष्ट हर डिजिटल सुविधा ग्राहकों को उपलब्ध करा रहे हैं। तकनीक के साथ शहरी सहकारी बैंकों के कदमताल ने उनके वित्तीय लेनदेन को आसान और सुरक्षित भी बनाया है। केंद्र में सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद शहरी सहकारी बैंकों के कामकाज में और तेजी आई है। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मामलों के मंत्री अमित शाह तथा सहकार भारती जैसे संगठनों के अथक प्रयासों से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नेशनल अर्बन कोआपरेटिव फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कोआपरेशन लिमिटेड (एनयूसीएफडीसी) के गठन को मंजूरी दी जा चुकी है।
इस अंब्रेला आर्गनाइजेशन को आरबीआई ने एनबीएफसी (नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी) के रूप में मान्यता देते हुए लाइसेंस जारी किया है। अब आवश्यकता पड़ने पर शहरी सहकारी बैंकों का यह अंब्रेला आर्गनाइजेशन बाजार से पूंजी जुटा सकेगा। एनयूसीएफडीसी के चेयरमैन श्री ज्योतिंद्र एम मेहता के अनुसार ‘एनयूसीएफडीसी से शहरी सहकारी बैकों को पूंजी व निवेश आकर्षित करने और अपनी डिजिटल अवसंरचना सुदृढ़ करने में आसानी होगी। इससे सभी शहरी सहकारी बैंक एक संगठन के दायरे में आकर अपनी गतिविधियों को और समावेशी बना सकेंगे।’
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