देहरादून: देश में एससी कोटे को काट कर मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ दिए जाने की राजनीतिक बहस के बीच उत्तराखंड में 2016 के कांग्रेस शासन काल में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)में ऐसा ही कुछ घटित हुआ है।
देहरादून जिले में सहसपुर ब्लॉक में मुस्लिम समुदाय को “शेड्यूल कास्ट” दिखा कर उन्हें लाभार्थी बना दिया। अब धामी सरकार ने इस मामले की जांच पड़ताल के आदेश जारी किए हैं।
जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड में पछुवा देहरादून में डेमोग्राफी चेंज तेज़ी से हुआ है, माना जाता है कि 2015 और 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए अपने ब्लॉक प्रमुखों, ग्राम प्रधानों, निगम पार्षदों के जरिए यूपी बिहार और अन्य राज्यो के मुस्लिमों को यहां लाकर बसाया और उन्हें केंद्र राज्य की लाभार्थी योजनाओं का लाभ भी दिया। 2016 में देहरादून की मलिन बस्तियों का नियमितीकरण भी इसी दूरगामी सोच का हिस्सा थी जिस पर बाद में बीजेपी सरकार ने सत्ता में आते ही रोक लगा दी थी।
पीएम आवास योजना में 34 मुस्लिमों को एससी का लाभ दिया?
तुष्टिकरण की इस राजनीति में पछुवा देहरादून के सहसपुर ब्लॉक के सहसपुर ग्राम में 34 मुस्लिम परिवारों को अनुसूचित जाति में दिखा कर उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिया गया है। जानकारी के अनुसार, ये योजना ग्रामीण क्षेत्र के लिए थी।
बताया जाता है कि इस मामले की शिकायत केंद्र में पीएमओ और गृह मंत्रालय तक पहुंची है, जिसके बाद उत्तराखंड सरकार ने पड़ताल शुरू की है। ऐसा बताया गया है कि सहसपुर में रुखसाना, परवीन,रहिबा, खातून, संजीदा,मुमताज, रिहाना,खालिदा, रियाना जहीर, समीना, मनीषा इस्लाम,कालू, इसराना,मानिबा,मसरूफा, शानू, फरीदा, मुन्नी, अर्शा खातून, शाहराज, हसीना, फरजाना, रहीसा खातून,नाजमा, अमीना, वाकिला, फारमीदा, आयना, समेत अन्य 38 मुस्लिम महिलाएं है, जिनके नाम पर प्रधानमंत्री आवास योजना ( ग्रामीण) का लाभ मिला।
लेकिन, इन सभी को ग्राम प्रधान और विभागीय अधिकारियों ने मिली भगत करके उन्हे शेड्यूल कास्ट कैटेगरी का लाभ दिया गया। जबकि इसी गांव में अन्य 341 मुस्लिम लाभार्थियों को अल्पसंख्या (मायनर्टी ) कैटेगरी में दर्ज किया गया। जिससे ये साफ झलकता है कि यहां ग्राम प्रधान या प्रधान पति की भूमि संदिग्ध है। बताया गया है कि ये मामला उभरने के बाद दलील ये दी गई कि ऐसा कोई आरक्षण इस योजना में नही था तो सवाल ये भी सामने आया है कि फिर लाभार्थियों को उनके मूल स्वरूप यानि अल्पसंख्यक दर्जे में ही क्यों नही रखा गया? उनके आगे एससी कैसे क्यों और किसने दर्ज कराया ?
जानकारी के अनुसार, 2016 में सहसपुर ग्राम के निवर्तमान प्रधान अनीस अहमद की पत्नी इशरत जहां उस समय ग्राम प्रधान थी। ऐसा भी जानकारी में आया है कि निवर्तमान प्रधान अनीस अहमद के द्वारा जो अपने दस्तावेज भी पिछले चुनाव के दौरान लगाए गए थे वो फर्जी पाए गए थे और वो खुद सहारनपुर के मूल निवासी रहे थे। जिसकी जांच पड़ताल चल रही है और कोर्ट में मामला विचाराधीन है।
2016 से पहले से ही सहसपुर में बाहर से आए लोगों को अवैध रूप से बसाने का षड्यंत्र चलता चला आ रहा है। ग्राम सभाओं की जमीनों को खुर्दबुर्द करने का खेल चलता रहा है। जिसकी जांच भी अलग से की जा रही है।
अभी पछुवा देहरादून में ये एक सहसपुर ग्राम का मामला पकड़ में आया है, यदि धामी सरकार जब अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्र और राज्य पोषित योजनाओं की जांच करवाए तो ऐसे कई मामले प्रकाश में आयेंगे जहां ग्राम प्रधानों ने मुस्लिम आबादी को बाहर से लाकर यहां कब्जे कराने फिर उनके फर्जी दस्तावेज बना कर उन्हें लीगल तरीके से बसाने और अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का षड्यंत्र रचा और उनकी कैटेगरी में बदलाव किए, ताकि सरकारी दस्तावेजों में ये दिखाई देता रहे कि यहां सभी समुदायों को लाभ दिया जा रहा है।
सहसपुर, के साथ-साथ जीवन गढ़, तिमली, हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, सरबा , सभावाला, शंकर पुर आदि ग्राम जो राज्य बनने के वक्त हिंदू बाहुल्य थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं। दिलचस्प बात ये है कि यहां के मुस्लिम ग्राम प्रधान, प्रधान पति लगातार यहां की डेमोग्राफी चेंज करने के अभियान को चलाए हुए है।
ग्राम सभा की जमीनों पर इनकी बसावट हो रही है। नदी श्रेणी,पीडब्ल्यूडी, सिंचाई ,राजस्व विभाग की जमीनों पर पहले अवैध कब्जे कराए जाते है बाद में उन्हें नियमित कराने का खेल खेला जा रहा है। ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कारवाई में लटके हुए हैं। इन्हें राजनीति संरक्षण सत्ता और विपक्ष दोनों का मिला क्योंकि ये उनके स्वार्थ की पूर्ति करते रहे हैं।
सीएम धामी ने दिए जांच के आदेश
सहसपुर में हुए प्रधानमंत्री आवास योजना मामले में हुए गड़बड़झाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कार्यालय से इस बारे में जांच करने के आदेश दिए हैं। जानकारी के मुताबिक, शासन और जिला प्रशासन में इस प्रकरण को लेकर हलचल मची हुई है और पुराने दस्तावेजों को खंगाला जा रहा है।
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