वायु प्रदूषण ऐसी वैश्विक समस्या बन चुका है, जिसके कारण दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों की मौत हो रही है। हाल ही में एक रिपोर्ट में यह चिंताजनक खुलासा हुआ है कि बच्चों को लेकर भी वायु प्रदूषण की स्थिति दुनियाभर में बेहद गंभीर होती जा रही है। यूनीसेफ और ‘हेल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट’ (एचईआई) की हाल ही में जारी हुई साझा रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ द ग्लोबल एयर-2024’ में बताया गया है कि पूरी दुनिया में 2021 में वायु प्रदूषण के कारण कुल 81 लाख लोग मौत के मुंह में समा गए और सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इन 81 लाख लोगों में से दूषित वायु के कारण मरने वालों में 7.09 लाख बच्चे 5 वर्ष से भी कम आयु के थे।
आंकड़ों का विश्लेषण करने पर चता चलता है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में हर घंटे 80 से भी ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है। भारत में ही 2021 में वायु प्रदूषण 169400 बच्चों की मौत का कारण बना। नाइजीरिया में 114100, पाकिस्तान में 68100, इथियोपिया में 31100 और बांग्लादेश में 19100 बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई। चिंता के साथ-साथ दुख का विषय यही है कि दुनिया में आने के बाद जिन बच्चों ने अभी तक ठीक ढ़ंग से यह दुनिया देखी भी नहीं थी, उससे पहले ही वायु प्रदूषण ने उन्हें इस दुनिया से ही विदा कर दिया। निश्चित रूप से दूषित वायु के कारण इतनी बड़ी संख्या में हो रही बच्चों की मौत के ये आंकड़े व्यथित और परेशान करने वाले हैं। व्यथित करते इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि पांच वर्ष से कम आयु के 15 फीसदी बच्चों की मौत की वजह हवा में घुला जहर ही है।
अमेरिका के गैर सरकारी संगठन ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ की रिपोर्ट में बताया गया था कि 2019 में वायु प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में 4.76 लाख बच्चों की मौत हुई थी, जिनमें से भारत में ही 1.16 लाख नवजात की मौत वायु प्रदूषण से हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी 2018 में ‘एयर पोल्यूशन एंड चाइल्ड हैल्थ’ नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जिसमें कहा गया था कि 2016 में दुनियाभर में पांच वर्ष से कम आयु के छह लाख बच्चों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई थी और उनमें से एक लाख से भी अधिक बच्चे भारत के ही थे।
वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सर्वाधिक मौतें अफ्रीका तथा एशिया में होती हैं। हालांकि नवजात शिशुओं की अधिकांश मौतें जन्म के समय कम वजन और समय से पहले जन्म से संबंधित जटिलताओं के कारण हुई लेकिन वायु प्रदूषण अब नवजातों की मौतों का दूसरा सबसे बड़ा खतरा बन रहा है, यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनियाभर में करीब 90 प्रतिशत बच्चे, जिनकी कुल संख्या 1.8 अरब से भी ज्यादा है, ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भी विश्वभर में करीब दो अरब बच्चे खतरनाक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से 62 करोड़ बच्चे दक्षिण एशियाई देशों में हैं।
आंकड़ों से स्पष्ट है कि हम अब जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वह न केवल भारत बल्कि दुनियाभर में वर्ष दर वर्ष लाखों लोगों की जान की दुश्मन बनती जा रही है और बड़े पैमाने पर मासूम बच्चे भी इसके शिकार बन रहे हैं। भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के कारणों की पड़ताल करने पर पता चलता है तो कुपोषण के बाद इस आयु वर्ग के बच्चों की मौतों की बड़ी वजह वायु प्रदूषण ही है। यही नहीं, गर्भवती महिलाओं पर भी जानलेवा प्रदूषण का प्रभाव होने से गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी वायु प्रदूषण का घातक असर पड़ता है। इससे समय से पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं और ये दोनों ही शिशुओं में मृत्यु के प्रमुख कारण हैं।
समय से पहले जन्मे बच्चों का शारीरिक विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। ऐसे बच्चों के अस्थमा, फेफड़ों की बीमारियों तथा अन्य बीमारियों के शिकार होने का काफी खतरा रहता है। द लांसेट प्लानेटरी हैल्थ जर्नल में प्रकाशित ब्रिटेन में एबरडीन विश्वविद्यालय और बेल्जियम में हैसेल्ट विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से वातावरण में फैलने वाले कण और रसायन अजन्मे बच्चों के दिमाग, फेफड़े और अन्य विकासशील अंगों तक पहुंच रहे हैं, जो संभावित रूप से उनके स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस बात के प्रमाण पाए हैं कि गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण में पाए जाने वाले ब्लैक कार्बन पार्टिकल्स प्लेसेंटा को पार करके फीटल्स सर्कुलेशन सिस्टम में प्रवेश कर सकते हैं। ब्लैक कार्बन आंतरिक दहन इंजनों, कोयले से चलने वाले पावर प्लांट और जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से हवा में छोड़ा जाने वाला एक कालिखदार काला पदार्थ होता है, जो काफी जहरीला होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जब ब्लैक कार्बन प्रेगनेंसी के पहले और दूसरे ट्राइमेस्टर में फीटल्स सर्कुलेशन सिस्टम में प्रवेश करता है तो इससे भ्रूण का फेफड़ा, ब्रेन, प्रजनन क्षमता आदि भी प्रभावित होती है। एबरडीन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पॉल फाउलर के मुताबिक इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि ये ब्लैक कार्बन कण विकासशील मानव मस्तिष्क में भी प्रवेश कर जाते हैं, जो बेहद खतरनाक है।
वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है। जून 2018 में यूनिसेफ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत में लगभग सभी स्थानों पर वायु प्रदूषण निर्धारित सीमा से अधिक है, जिससे बच्चे सांस, दमा तथा फेफड़ों से संबंधित बीमारियों और अल्प विकसित मस्तिष्क के शिकार हो रहे हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से करीब 15 फीसदी की मौत वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली सांस संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं। हेल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट के पूर्व अध्यक्ष डैन ग्रीनबाम के मुताबिक किसी नवजात का स्वास्थ्य किसी भी समाज के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होता है और इन नए साक्ष्यों से दक्षिण एशिया और अफ्रीका में नवजातों को होने वाले अधिक खतरे का पता चलता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, जन्म के समय कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं। गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, उनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो रहा है। बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं, उनमें दमा और हृदय रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और वायु प्रदूषण के कारण हर साल लाखों बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के कारण हो रही हैं।
अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे अगर बच भी जाते हैं, तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है। विभिन्न अध्ययनों में यह तथ्य भी सामने आया है कि घरों के भीतर का प्रदूषण भी बच्चों के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक वायु प्रदूषण से नवजातों की मौतों में से दो तिहाई मौतों का कारण घरों के अंदर का प्रदूषण ही है। विश्व स्तर पर वाहनों से उत्सर्जित गैसों और पार्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन पर तो बहुत चर्चा होती है लेकिन घरों के अंदर के प्रदूषण के स्रोतों पर अक्सर कोई चर्चा नहीं होती।
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के वैज्ञानिकों के मुताबिक खाना पकाने, साफ-सफाई तथा घर के अन्य सामान्य कामकाजों के दौरान पार्टिकुलेट मैटर और वोलाटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स (वीओसी) उत्पन्न होते हैं, जो प्रदूषण के कारक बनते हैं। पार्टिकुलेट मैटर खाना पकाने और साफ-सफाई के दौरान उत्पन्न होते हैं जबकि शैम्पू, परफ्यूम, रसोई और सफाई वाले घोल वीओसी के प्रमुख स्रोत हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस प्रकार के तत्व विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के अलावा कैंसरकारक भी होते हैं।
घरों में वायु प्रदूषण के बढ़ते दुष्प्रभावों का सबसे बड़ा कारण आजकल अधिकांश घरों में विभिन्न घरेलू कार्यों में तरह-तरह के रसायनों का बढ़ता उपयोग माना जा रहा है। ऐसे ही रसायनयुक्त पदार्थों के बढ़ते चलन के ही कारण घरों के अंदर फॉर्मेल्डीहाइड, बेंजीन, एल्कोहल, कीटोन जैसे कैंसरजनक हानिकारक रसायनों की सांद्रता बढ़ जा रही है, जिनका बच्चों के स्वास्थ्य पर घातक असर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, जन्म के समय कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं। गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, उनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो रहा है। बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं, उनमें दमा और हृदय रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और वायु प्रदूषण के कारण हर साल लाखों बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के कारण हो रही हैं।
बहरहाल, वायु प्रदूषण के बच्चों पर पड़ते दुष्प्रभावों और हर साल वायु प्रदूषण के कारण हो रही लाखों बच्चों की मौतों को लेकर पूरी दुनिया को अब संजीदगी से इस पर विचार मंथन करने और ऐसे उपाय किए जाने की आवश्यकता है, जिससे मासूम बचपन प्रदूषण का इस कदर शिकार न बने।
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