नेपाल के कई सीमांत इलाकों पर चीन ने धीरे धीरे अपने कब्जे जमाते हुए गले तक पानी ला दिया है। उसे कई बार इस बारे में संकेत किए जाने के बाद भी चीन चीजों को टालता आ रहा है। लेकिन जल्दी ही काठमांडू में दोनों देशों के बीच एक अहम वार्ता होने जा रही है जिसमें नेपाल के इस बारे में चीनी प्रतिनिधि से दो टूक बात करने की पूरी संभावना दिखती है, क्योंकि नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड इस मुद्दे पर काफी आक्रोशित बताए जा रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, प्रचंड की सरकार अब चीन को इस विषय में तथ्यों के साथ खरी खरी सुनाने को तैयार बैठी है। नेपाल और चीन के बीच सीमा को लेकर जो संयुक्त निगरानी समझौता किया गया था, यह बात उस पर होनी है। हालांकि बीजिंग इस समझौते को लेकर उदासीन दिख रहा है क्योंकि इसमें खामी उसकी ओर से ही दिखती है। लेकिन चीन की ऐसी हरकत काठमांडू के गले नहीं उतर रही है। समझौते के अनुसार, चीन अपने किए वादों से मुकरता दिख रहा है।
नेपाल की सरकार समझ चुकी है कि चीन कोरे वादे करता रहा है इसलिए अब देश इस विषय पर सीधे जिनपिंग सरकार से बात करने का मन बना चुका है। समझौते को लेकर दोनों देशों के प्रतिनिधि 16वें दौर की बातचीत के लिए काठमांडू में इकट्ठे होंगे। यह वार्ता 25 जून को होनी है। बताया गया है कि चीन की ओर से वहां के उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग इस बैठक में शामिल होंगे। इस बारे में नेपाल के विदेश मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ का कहना है कि चर्चा में दोनों देशों के बीच के सभी मुद्दे आएंगे। उनका कहना है कि चीन से साफ कहा जाएगा कि वह पहले के तमाम समझौतों को पूरा करे। इन मुद्दों में सीमा विवाद का विषय सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री प्रचंड के पिछले चीन दौरे में दोनों देशों में जिस संयुक्त सीमा निगरानी पर बात हुई थी उस पर चीन ने अभी तक चुप्पी ही साध रखी है। नेपाल इस मुद्दे पर इसलिए पूरी तरह तैयार है क्योंकि इलाके उसके कब्जाए हुए हैं जिन्हें वह छुड़ाना चाहता है। लेकिन विस्तावादी कम्युनिस्ट ड्रैगन कब्जाए इलाकों से आसानी से हटने वाला नहीं दिखता।
पिछले दौर की चीन में सम्पन्न हुई बैठक में नेपाल द्वारा अनेक बार अपील करने के बाद चीन ने कारोबारी मार्ग खोलने पर सहमति व्यक्त की थी। लेकिन अब चीन के कारोबारी नेपाल के साथ सड़कों के नाम पर टालमटोली कर रहे हैं। वे कहे हैं कि क्योंकि नेपाल की सड़कें चौड़ी नहीं हैं इसलिए काम में दिक्कत आ रही है। इस बर्ताव से नेपाल सरकार खिन्न हो चली है। चीन ने नेपाल से चीजें आयात करने का वादा किया था लेकिन अभी इसका भी इंतजार है।
इन सबमें नेपाल के नजरिए से सबसे अहम विषय तो है नेपाली इलाकों में चीनी घुसपैठ, जिसे लेकर नेपाल सरकार अब गंभीरता से चर्चा करने का तय कर चुकी है। हालत यह है कि नेपाल एक इलाके में चीन ने एक फौजी पोस्ट बनाई हुई है।
16वें दौर की इस वार्ता में व्यापार, पारगमन, कनेक्टिविटी, निवेश, स्वास्थ्य, पर्यटन, गरीबी दूर करने,आपदाओं से निपटने, शिक्षा, संस्कृति जैसे विषयों पर भी बात होनी है। लेकिन दिलचस्प यह देखना है कि प्रधानमंत्री प्रचंड के पिछले चीन दौरे में दोनों देशों में जिस संयुक्त सीमा निगरानी पर बात हुई थी उस पर चीन ने अभी तक चुप्पी ही साध रखी है। नेपाल इस मुद्दे पर इसलिए पूरी तरह तैयार है क्योंकि इलाके उसके कब्जाए हुए हैं जिन्हें वह छुड़ाना चाहता है। लेकिन विस्तावादी कम्युनिस्ट ड्रैगन कब्जाए इलाकों से आसानी से हटने वाला नहीं दिखता।
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