करीब चार साल पहले कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को बुरी तरह हिलाकर रख दिया था। महामारी ने जहां विश्वभर में लाखों लोगों का जीवन लील लिया, वहीं अनेक परिवारों को तबाह कर दिया, लाखों बच्चों को अनाथ बना दिया। कोरोना के कारण लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई, दुनियाभर में करोड़ों लोगों के रोजगार छिन गए लेकिन उसका सबसे बड़ा असर अगर किसी पर पड़ा तो वह था गरीब तबका, जिसके समक्ष बेरोजगारी के कारण भुखमरी का संकट मंडराने लगा था और अभी भी दुनिया के अनेक देशों में बेरोजगारी का यह दंश पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। वैश्विक मंदी के कारण गरीबी बढ़ने का गंभीर असर पूरी दुनिया में मासूम बच्चों पर पड़ा। बच्चों की इस पीड़ा को वैश्विक आवाज बनाने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने दलाई लामा, डेसमंड टूटू सहित 45 नोबेल पुरस्कार विजेताओं और कई देशों के पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं के प्रमुख रह चुके दिग्गजों सहित कुल 43 वैश्विक नेताओं को एकजुट कर बच्चों की सुरक्षा के लिए एक ट्रिलियन डॉलर की सहायता का आव्हान किया था। इस कार्य के लिए सरकारों पर नैतिक दबाव बनाने के लिए पहली बार 88 नोबेल पुरस्कार विजेता तथा वैश्विक नेता एक मंच पर जुटे थे।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार बाल श्रम की समस्या अब पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है और इसी के साथ चाइल्ड ट्रैफिकिंग (बाल तस्करी) की समस्या भी विश्व के लिए बड़ी चिंता का कारण बन रही है। चिंता की स्थिति यह है कि पूरी दुनिया दो दशक से भी ज्यादा समय से प्रतिवर्ष 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस मना रही है किन्तु बच्चों की समस्याएं जस की तस हैं। आईएलओ के मुताबिक दुनिया में इस समय 16 करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी के लिए अभिशप्त हैं, जिनमें 7 करोड़ से भी अधिक बहुत बदतर परिस्थितियों में खतरनाक कार्य कर रहे हैं। इनमें बहुत बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं, जो बाल तस्करी के शिकार हैं। हालांकि हमारे यहां विभिन्न एजेंसियां बाल तस्करों पर शिकंजा कसने के लिए समय-समय पर अभियान चलाती रहती हैं लेकिन फिर भी बाल तस्करों के बड़े-बड़े रैकेट सक्रिय हैं।
हाल ही में बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा मिली एक शिकायत के आधार पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की अगुवाई में श्रम विभाग, जिला बाल संरक्षण इकाई, मानव दुर्व्यापार रोधी इकाई, एसोसिएशन फॉर वालेंटरी एक्शन ने एक महत्वपूर्ण छापेमारी अभियान में दिल्ली की दो प्लेसमेंट एजेंसियों से 14 लड़कियों सहित कुल 21 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया। 8 से 17 वर्ष के बीच के इन सभी बच्चों को भूखा और नींद की कमी से जूझते हुए बेहद दयनीय हालत में पाया गया, जिन्हें पढ़ाई और बेहतर जीवन का झांसा देकर यहां लाया गया था। बिहार में मुजफ्फरपुर रेलवे पुलिस ने भी हाल ही में बाल तस्करों के एक गिरोह का भंडाभोड़ करते हुए कर्मभूमि एक्सप्रेस से 12 बच्चों को मुक्त कराया, जिन्हें पंजाब और हरियाणा में चावल फैक्टरी तथा दुकानों में काम करने के लिए ले जाया जा रहा था। चैकिंग के दौरान रेलवे पुलिस को ट्रेन के एक साधारण डिब्बे में 12 बच्चे गुमसुम बैठे मिले थे, जिस पर उन्हें शक हुआ। बच्चों को विश्वास में लेकर उनसे बातचीत की गई तो पता चला कि उन्हें हरियाणा और पंजाब में मजदूरी कराने ले जाया जा रहा है।
यूनीसेफ का मानना है कि विश्वभर में बच्चों को श्रम कार्य में इसीलिए लगाया जाता है क्योंकि उनका शोषण आसानी से किया जा सकता है। गरीबी बाल श्रम का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कारण है, जिस कारण लोग अपने अबोध बच्चों को भी कठिन कार्यों में धकेलने के लिए उन्हें बेचने को विवश हो जाते हैं। श्रम विशेषज्ञों का मानना है कि बाल श्रम केवल गरीबी की ही देन नहीं है बल्कि इसका संबंध समुचित शिक्षा के अभाव से भी है। बढ़ती जनसंख्या, निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, खाद्य असुरक्षा, सस्ता श्रम, मौजूदा कानूनों का दृढ़ता से लागू न होना इत्यादि बाल श्रम के प्रमुख कारण हैं। इससे जहां बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, बाल अपराध बढ़ते हैं, वहीं भिक्षावृत्ति, मानव अंगों के कारोबार तथा यौन शोषण के लिए उनकी गैर कानूनी खरीद-फरोख्त होती है। बाल श्रम के खिलाफ कार्यरत संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 7-8 करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं और इनमें से अधिकांश बच्चे संगठित अपराध रैकेट के शिकार होकर बाल मजदूरी के लिए विवश किए जाते हैं जबकि शेष गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते।
भारत में कोरोना महामारी के दौरान बाल तस्करी की घटनाओं में काफी बढ़ोतरी देखी गई थी और ऐसे मामले अभी भी देश के विभिन्न हिस्सों से लगातार सामने आ रहे हैं। बाल तस्करी की बढ़ती घटनाओं को लेकर कुछ समय पहले कैलाश सत्यार्थी के गैर-सरकारी संगठन ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की थी। चिंता की बात यही है कि बाल तस्करी की समस्या वैश्विक स्तर पर नासूर की भांति फल-फूल रही है। केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की मांग भी काफी बढ़ रही है। दरअसल चाइल्ड पोर्नोग्राफी के शौकीन लोग मासूम बच्चों के साथ यौनाचार करते हैं और इसके लिए गरीब परिवारों के बच्चों की खरीद-फरोख्त होती है।
बच्चों के यौन शोषण तथा बाल तस्करी के खिलाफ कार्यरत संगठन ‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड’ की एक रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया था कि कोरोना काल के दौरान तो ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी की मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के साथ हिंसक रूप से सेक्स तथा यौन शोषण वाली सामग्री की मांग में दो सौ फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई थी। वैसे तो बाल तस्करी की समस्या तमाम कानूनी प्रावधानों के बावजूद प्रशासन की नाक तले फलती-फूलती रही है लेकिन अनुभव बताते हैं कि विभिन्न महामारियों के कारण गरीबी बढ़ने से ऐसे मामलों में और तेजी आ जाती है। वर्ष 1997 में एशिया में गहराये आर्थिक संकट का दौर हो या वर्ष 2009 की वैश्विक महामंदी का दौर, ऐसे अवसरों पर साफतौर देखा गया कि किस प्रकार वैश्विक स्तर पर बाल तस्करी के मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई।
सभ्य समाज के लिए सबसे शर्मनाक स्थिति यही है कि बाल तस्करी के अलावा बाल श्रम पर भी अंकुश लगाने के लिए दुनियाभर के लगभग तमाम देशों में दर्जनों कानून होने के बावजूद 21वीं सदी में भी करोड़ों बच्चे पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की उम्र में खतरनाक काम-धंधों से जुड़े हैं। भारत में भी कालीन, दियासलाई, रत्न पॉलिश, ज्वैलरी, पीतल, कांच, बीड़ी उद्योग, हस्तशिल्प, पत्थर खुदाई, चाय बागान, बाल वेश्यावृत्ति इत्यादि कार्यों में करोड़ों बच्चे लिप्त हैं। एक ओर जहां श्रम कार्यों में लिप्त बच्चों का बचपन श्रम की भट्ठी में झुलस रहा है, वहीं कम उम्र में खतरनाक कार्यों में लिप्त होने के कारण ऐसे अनेक बच्चों को कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा भी रहता है। खतरनाक कार्यों में संलिप्त होने के कारण बाल श्रमिकों में प्रायः श्वांस रोग, टीबी, दमा, रीढ़ की हड्डी की बीमारी, नेत्र रोग, सर्दी-खांसी, सिलिकोसिस, चर्म-रोग, स्नायु संबंधी जटिलता, अत्यधिक उत्तेजना, ऐंठन, तपेदिक जैसी बीमारियां हो जाती हैं। कुछ रिपोर्टों पर नजर डालें तो देश में कुल बाल मजदूरों में से करीब 80 फीसद बच्चे गांवों से ही हैं और खेती-बाड़ी जैसे कार्यों से लेकर खतरनाक उद्योगों और यहां तक कि वेश्यावृत्ति जैसे शर्मनाक पेशों में भी धकेले गए हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, पर्याप्त संसाधनों, सामूहिक कार्यों और वंचित बच्चों के प्रति पर्याप्त सहानुभूति से ही बाल श्रम और बाल तस्करी जैसी समस्याओं को समाप्त किया जा सकता है।
टिप्पणियाँ