सनातन संस्कृति के गौरवपूर्ण इतिहास में सिख पंथ के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी के अनमोल विचार समस्त मानव जाति को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने जीवन पर्यन्त न केवल मानव को ज्ञान का प्रकाश दिखाया बल्कि देश-धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान भी कर दिया था। उनके बलिदान को स्मरण करते हुए सिख कैलेंडर के हिसाब से इस वर्ष 10 जून को गुरु अर्जन देव जी का बलिदान पर्व मनाया जा रहा है। इस अवसर पर उनसे जुड़े कुछ प्रसगों का उल्लेख करना प्रासंगिक है।
सभी धर्मों का सम्मान करने और सदैव लोगों की सेवा में ही लगे रहने के कारण गुरु अर्जन देव से मिलने और उनका आशीर्वाद लेने लिए विभिन्न पंथों के लोग दूर-दूर से आते थे और उनसे ज्ञान एवं आनंद की अनुभूति पाते थे। ऐसे ही एक दिन उनके पास एक श्रद्धालु आकर कहने लगा कि गुरु जी! आपकी संगति में ज्ञान प्राप्त करके मैं अब सत्य के मार्ग पर चलने लगा हूं और मैंने व्यर्थ के लड़ाई-झगड़े करने पूरी तरह छोड़ दिए हैं, इसीलिए सभी लोग अब मुझे बहुत पसंद करने लगे हैं जबकि पहले कोई मेरी सूरत भी नहीं देखना चाहता था। यह सुनकर गुरू अर्जन देव मुस्कराने लगे और बोले कि यदि दुनिया में सभी प्राणियों को यह ज्ञान हो जाए तो मानव जीवन सफल व सुंदर हो जाए और पूरी दुनिया ही शांति का केंद्र बन जाए।
श्रद्धालु ने स्वर्ण मुद्राओं से भरी अपनी थैली निकाली और गुरु अर्जन देव की ओर बढ़ाते हुए बोला कि गुरू जी, मैंने आपसे असीम ज्ञान प्राप्त किया है, जिसके लिए मैं आजीवन आपका ऋणी रहूंगा और इस ज्ञान के बदले मैं स्वेच्छा से आपको कुछ स्वणं मुद्राएं भेंट स्वरूप देना चाहता हूं, कृपया इन्हें स्वीकार करें। गुरु अर्जन देव ने स्वर्ण मुद्राएं लेने से इन्कार करते हुए कहा कि ज्ञान का कोई मोल नहीं क्योंकि वह अनमोल होता है और यहां ज्ञान निःस्वार्थ और निःशुल्क दिया जाता है। इस पर श्रद्धालु ने जिदपूर्वक कहा कि गुरूदेव! यह आपसे मुझे मिले ज्ञान की कीमत नहीं है बल्कि मैं श्रद्धापूर्वक आपको यह उपहार देना चाहता हूं। इस पर गुरु अर्जन देव बोले कि यदि तुम कुछ देना ही चाहते हो तो तुमने जो ज्ञान मुझसे ग्रहण किया है, उसे दूसरों को निःस्वार्थ भाव से बांटो क्योंकि ज्ञान एक प्रसाद है और दुनिया की भलाई के लिए यह प्रसाद लोगों में बंटना ही चाहिए। यह सुनते ही श्रद्धालु गुरू अर्जन देव के चरणों में नतमस्तक होते हुए बोला कि आपका कथन सत्य है गुरूदेव! इस ज्ञान के आगे भला इन स्वर्ण मुद्राओं का क्या मोल? आज से मैं आपका दिए ज्ञान का प्रसाद सभी में प्रेमपूर्वक बांटूंगा ताकि दुनिया और भी सुंदर हो जाए।
गुरू अर्जन देव मन की शांति को सुख प्राप्ति का सबसे अच्छा मार्ग मानते थे। दरअसल मन की शांति अनमोल है, जिसे कभी खरीदा नहीं जा सकता। अलग-अलग व्यक्तियों को अलग-अलग कार्य करके शांति मिलती है लेकिन दूसरों की सेवा करने के भाव से मन को सच्ची और असीम शांति मिलती है। हालांकि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग इस कदर व्यस्त हो गए हैं कि उनके मन की शांति गायब हो गई है। इस कारण लोगों में अवसाद जैसी बीमारियां भी बढ़ रही हैं। जब मन अशांत रहता है तो व्यक्ति का ध्यान भटकता है और मन का शांत न रहना असफलता का सबसे बड़ा कारण बनता है। जब कोई व्यक्ति अपने पास मौजूद संसाधनों से पूरी तरह संतुष्ट हो, जीवन में नकारात्मकता से कोसों दूर हो और चेहरे पर सदैव एक सुकून भरी मुस्कान हो, ऐसे व्यक्ति का मन पूर्ण शांति का अनुभव कर रहा होता है। वास्तव में आत्मसंतोष और संतुष्टि ही मन की शांति है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण कर लेता है, उसका भाग्य बदल जाता है।
गुरू अर्जन देव के समय में बाला और कृष्णा नामक दो पंडित भ्रमण करते हुए जगह-जगह सुंदरकथा का पाठ कर लोगों को आत्मिक शांति प्रदान किया करते थे। कथा सुनने वाले लोग उनसे बहुत प्रभावित होते थे। एक दिन दोनों पंडितों ने गुरु अर्जन देव के दरबार में उपस्थित होकर उनसे प्रार्थना करते हुए कहा, महाराज! हम तो लोगों को सुंदरकथा के माध्यम से आत्मिक शांति प्रदान करते हैं लेकिन हमारे मन में शांति नहीं है, इसलिए आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे हमारे मन को भी शांति मिले। गुरु अर्जुन देव ने उनकी समस्या का समाधान बताते हुए कहा कि यदि तुम मन की शांति चाहते हो तो कथा वाचन के अपने तरीके में बदलाव कर निष्काम भाव से कथा करो, तभी तुम्हें अपने मन में भी सच्ची शांति का अनुभव होगा। कथा के माध्यम से जो तुम अन्य लोगों को समझाते हो, परमात्मा को अपने संग जानकर उस कथनी पर स्वयं भी अमल करो, तब मन को शांति अवश्य मिलेगी। आज के समय में गुरू अर्जन देव के उपदेश बहुत प्रासंगिक हैं। यह जरूरी है कि मन की शांति पाने के लिए प्रतिदिन कुछ पल शांति से बैठकर स्वयं से बातें करें और अपने भीतर की आवाज को सुनने का प्रयास करें। वैसे मन को असली शांति तभी मिलती है, जब दूसरों को कही जाने वाली बातों पर हम स्वयं भी अमल करते हैं।
टिप्पणियाँ