आपरेशन ब्ल्यू स्टार की 40वीं बरसी पर अमृतसर में कट्टरपंथी सिखों ने खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। श्री अकाल तख्त साहिब के बाहर हवा में तलवारें भी लहराई गईं। खालिस्तान समर्थन में नारे लगाने के साथ लोगों ने जरनैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीर लगे पोस्टर भी लहराए। ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर श्री अकाल तख्त साहिब पर ऑपरेशन में मारे जाने वालों श्रद्धांजलि अर्पित की गई है।
श्री अखंड पाठ के भोग के बाद आयोजित अरदास में 1984 में उसे समय की सरकार द्वारा करवाए गए ऑपरेशन के लिए कांग्रेस पार्टी की निंदा की गई है। अरदास में कहा गया है कि सिख कौम इस घटना को कभी भी नहीं भुला सकती है। सिखों के जख्म सदैव रिसते रहेंगे।
इस मौके पर आप्रेशन के दौरान मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई। समारोह में श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह, फरीदकोट से नवनिर्वाचित सांसद सरबजीत सिंह खालसा (इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह का बेटा), पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान, बलजीत सिंह दादूवाल सहित भारी संख्या में अलगाववादी संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। फरीदकोट से नवनियुक्त सांसद सरबजीत सिंह खालसा ने श्री गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी की रोकथाम के लिए संसद में सख्त कानून बनाए जाने की वकालत की।
ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर श्री अकाल तख्त पर आयोजित समारोह में भाग लेने पहुंचे सरबजीत सिंह ने कहा कि देश के कानून में संशोधित करते हुए बेअदबी करने के आरोपित के खिलाफ इंडियन पीनल कोड की धारा 302 के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए। इसी धारा के तहत आरोपितों के खिलाफ मौत की सजा का प्रावधान होना चाहिए। बकौल सरबजीत, वह इस संदर्भ में संसद में आवाज बुलंद करेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को कैदी सिखों (आतंकियों) की अविलंब रिहाई करनी चाहिए।
वहीं अमृतपाल सिंह को एमपी बनने पर बधाई देते हुए सरबजीत सिंह ने कहा कि अब राज्य सरकार को अमृतपाल की रिहाई के लिए खुद ही पहल कदमी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि डिब्रूगढ़ एवं अन्य जेल में नजरबंद बंदी सिखों को भी रिहा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह सिख कौम की आवाज बनकर संसद में बंदी सिखों की रिहाई में अन्य पंथक मुद्दों को लेकर आवाज बुलंद करेंगे।
ऑपरेशन ब्लू स्टार को हुए 40 साल
बता दें कि आज ऑपरेशन ब्लू स्टार को 40 साल हो गए हैं। आज ही के दिन सेना के जवानों ने स्वर्ण मंदिर में छिपे हुए आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले के खिलाफ कार्रवाई की थी। उस दौरान जरनैल सिंह भिंडरावाले का तो काम तमाम हो गया। लेकिन इस ऑपरेशन के परिणाम काफी भयानक सामने आने वाले थे। सिख धर्मावलंबियों का सबसे पावन धार्मिक स्थल श्री अकाल तख्त इस ऑपरेशन की भेंट चढ़ा था।
कौन था जरनैल सिंह भिंडरावाला
यह तारीख थी 6 जून, 1984 अमृतसर के हरमंदिर साहिब में खालिस्तानी जरनैल सिंह भिंडरावाले के खात्मे की सभी तैयारियां कर ली गई थीं। भिंडरावाले वह नाम जिसने न सिर्फ पंजाब बल्कि दिल्ली की राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे की जड़ों तक को हिला कर रख दिया था। पंजाब में जरनैल सिंह द्वारा बढ़ते अतिवाद, चरमवाद व जंगलराज पर लगाम कसने का केवल एक ही तरीका था। जरनैल सिंह भिंडरवाले का अंत या उसकी गिरफ्तारी।
जरनैल सिंह भिंडरावाले का जन्म 2 जून 1947 को हुआ। तीस की उम्र में जब वह दमदमी टकसाल (सिख ग्रंथों से जुडी शिक्षा देने वाली संस्था) का लीडर बना। लीडर बनने के कुछ महीनों बाद ही उसने पंजाब में हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था।
उसने अस्सी के दशक में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की मांग को तीव्र किया जिसमें पंजाब को स्वायत्तता प्रदान करने की बात थी। यानी केंद्र सिर्फ विदेश, संचार और मुद्रा मामलों में ही हस्तक्षेप कर सकता था। इस प्रस्ताव को खालिस्तान की शुरुआत के तौर पर देखा गया। बाद में पंजाब हिंसा की भेंट चढ़ता गया और श्री हरिमंदिर साहिब जैसी पवित्र जगह आतंकवाद के किले के रूप में परिवर्तित हो गई। यहां से निर्दोष लोगों की हत्या के फरमान जारी होने लगे और वारदात करने के बाद आतंकी यहां शरण लेने लगे। पाकिस्तान की शह पर यहां हथियार जुटाए जाने लगे। काबिलेजिक्र है कि यह समय वह था जब भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा पर कंटीली तार नहीं थी और वहां से हथियार व सोने की तस्करी सामान्य बात थी।
पंजाब में बढ़ती हिंसक घटनाओं के बाद केंद्र सरकार ने तत्कालीन पंजाब सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया। वहीं किसी भी तरह के हस्तक्षेप या विरोध से बचने के लिए जरनैल सिंह ने स्वर्ण मंदिर में श्री अकाल तख्त को अपना ठिकाना बना लिया था।
तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने भिंडरावाले को पकडऩे और ये सब रोकने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया। हालांकि इसके परिणाम विपरीत सामने आए। लेकिन उस दौरान जरनैल सिंह को रोकना जरूरी हो गया था। इस ऑपरेशन की शुरुआत 1 जून, 1984 से ही हो गई थी। सूबे में ट्रेनें, यातयात साधनों और टेलीफोन कनेक्शन भी काट दिए गए थे। तारीख 3 जून को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया और फिर आई वो तारीख जब सेना स्वर्ण मंदिर में हमला करते हुए अंदर दाखिल हुई और चेतावनी के बाद भिंडरवाले को मौत के घाट उतारा।
जी बी एस सिद्धू की किताब खालिस्तान षड्यंत्र इंसाइड स्टोरी के अनुसार, 5 जून 1984 को स्वर्ण मंदिर पर सेना की मुख्य कार्रवाई शुरू हुई। ऑपरेशन को लीड कर रहे मेजर जनरल बरार ने अपने जवानों से कहा कि स्वर्ण मंदिर को दुश्मन से छुड़वाना है।
- आदेश में कहा गया कि अकाल तख्त को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।
- ऑपरेशन रात 10:30 बजे शुरू हुआ और सुबह (छह जून) 07:30 बजे तक चला।
- रात 10 बजे तक सेना ने दोनों इमारतों (होटल टेंपल व्यू और ब्रह्म बूटा अखाड़ा को नियंत्रण में ले लिए था।
- 6 जून को आधी रात के बाद 1:00 बजे सेना ने तेजा सिंह समुंदरी हॉल के अंदर प्रवेश किया।
- यहां ये बता दें कि 4 जून को लाउडस्पीकर पर यह घोषणा कर दी गई थी की स्वर्ण मंदिर में मौजूद श्रद्धालु मंदिर परिसर छोड़ दें और वहां छिपे उग्रवादी अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दें। परंतु ऐसा नहीं हुआ।
6 जून को सुबह लगभग 7:00 बजे सेना को टैंकों के इस्तेमाल के लिए अनुमति मिल गई। टैंको द्वारा 80 गोली धागे गए थे जिसे श्री अकाली तख्त को तगड़ा नुकसान पहुंचा। इसी दौरान भिंडरावाला भी मारा जा चुका था। 6 जून को दोपहर तक सेना ने दोनों ही परिषदों में स्थिति को अपने नियंत्रण में कर लिया था। जवानों को अंदर घुसकर हुक्म दिया गया कि रास्ते में आने वाले किसी भी उग्रवादी को गोली मार देनी है। 7 जून को भिंडरावाले का शव सुबह 7:30 बजे क्षत-विक्षत हालत में बरामद हुआ।
इस ऑपरेशन में सरकार द्वारा जारी श्वेतपत्र के अनुसार चार अधिकारियों सहित कुल 83 जवान बलिदान हुए। इसके अलावा 12 अधिकारी और 273 जवान जख्मी हुए। श्वेत पत्र के अनुसार कुल 516 नागरिक उग्रवादी मारे गए और 592 को पकड़ा गया।
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