देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड अवैध मजारों के धंधे के चंगुल में कई सालों से फंसा हुआ है। पिछले एक साल में पांच सौ से ज्यादा अवैध मजारें ध्वस्त करने के बावजूद अभी भी बड़ी संख्या में अवैध मजारें ऐसी है जिनके अस्तित्व पर सवाल खड़े हो रहे हैं। भूरे शाह, कालू सैय्यद शाह जैसे नामों की एक-एक दर्जन मजारें हैं। जिन्हें देख कर साफ-साफ लगता है कि ये सोची समझी साजिश के तहत यहां बनाई गई है और इस अंधविश्वास के धंधे में देव-भूमि के सनातनी लोग गिरफ्त में है।
उल्लेखनीय है कि इस्लाम मजहब में केवल खुदा के आगे सिर झुकाने के मान्यता है और इस धर्म में जिस किसी को जहां दफनाया जाता है वो स्थान कच्चा छोड़ा जाता है। माना जाता है कि मजार किसी फकीर या किसी करिश्माई व्यक्ति की दफनाई जगह होती है। जैसे अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह या रुड़की में पीरान कलियर दरगाह है। इन फकीरों की दरगाह के नाम से देश दुनिया में कोई और मजार या दरगाह नहीं देखी न सुनी गई है। मानने वाले यहां मन्नत मांगने आए मन्नत पूरा होने पर जाते हैं।
देवभूमि उत्तराखंड में कालू सैय्यद नाम की एक दर्जन से ज्यादा मजारें बनी हुई है अब कालू सैय्यद की असली मजार कौन सी है? है भी की नहीं, इस पर सवाल उठ रहे हैं। जानकारी के अनुसार, कालू सैय्यद नाम से जसपुर, रानीखेत, ए हल्द्वानी, कालाढूंगी, लोहाघाट आदि स्थानों में मजारें अभी भी है। ऐसा बताया गया है कि अल्मोड़ा में भी कालू सैय्यद में मजार है,उनके साथ में यहां उनके घोड़े की भी मजार है और अंधविश्वासी लोग घोड़े को भी अगरबत्ती लगा रहे हैं।
कालू सैय्यद कौन थे ? क्या चमत्कार उन्होंने दिखाए ये सब बातें सुनी सुनाई है, जिसमें ये बात भी सुनी गई है कि कालू सैय्यद, तुर्की के रहने वाले थे यहां घोड़े पर आए थे, अब कहां तुर्की कहां देवभूमि उत्तराखंड के शहर और जंगल ? वो अपना देश वतन छोड़ कर यहां क्यों और कैसे चले आए इस पर कोई जवाब नहीं देता। अभी कुछ दिन पहले ये भी जानकारी सामने आई कि कालू सैयद की एक मजार गुजरात में भी देखी गई। माना कि कालू सैय्यद पीर, हजरत, फकीर होंगे, घोड़े पर भी आए होंगे। लेकिन, उनका जब भी इंतकाल हुआ होगा तो एक ही जगह हुआ होगा और वहीं उनकी मजार भी बनी होगी। ऐसा तो हुआ नहीं होगा कि एक पीर फकीर दस-दस जगह दफना दिया गया होगा।
साफ तौर पर लगता है कि कालू सैय्यद के नाम से जो भी मजारें है वो एक तरह से फ्रेंचाइजी मजारें हैं और ये बिजनेस माड्यूल है जो कि एक षड्यंत्र के तहत देवभूमि में फैलाया गया और इसके पीछे मंतव्य यही दिखता है कि सनातनी लोगों को देवी-देवताओं से दूर करते हुए उनसे धन चढ़ावा वसूला जाए। हर साल उर्स के बहाने मेले लगते हैं जहां मुस्लिम लोग आकर प्रसाद चादर धूप अगरबत्ती आदि की दुकानें और खेल झूले लगाते हैं और हिंदू लोग वहां उनके कारोबार में फंसते है। इन उर्स में इस्लामिक कव्वालियां होती है और सनातनी लोगों को खुदा की इबादत सिखाई जाती है। बताया जाता है कि इन कालू सैयद मजारों की धंधे की चेन, बरेलवी मुस्लिमों द्वारा बनाई गई है जिसका मुख्यालय यूपी के बरेली में है।
सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर बनाई कालू सैय्यद मजारें
देवभूमि उत्तराखंड में जहां-जहां भी कालू सैयद नाम की मजारें है वो सरकारी भूमि पर अवैध रूप से कब्जा करके बनाई गई है और ये मजारें कभी दस बाई दस फुट की जमीन को घेर कर बनाई होंगी। लेकिन, अब आसपास की हजारों वर्ग फुट पर कब्जे कर लिए है और यहां आसपास बनी दुकानें भी अवैध कब्जे कर बनाई गई है। उधम सिंह नगर में तराई पश्चिम फॉरेस्ट जोकि रिजर्व वाइल्ड लाइफ फॉरेस्ट माना जाता है, यहां बीचों-बीच एक मजार बना दी गई है।
इस बारे में जब फॉरेस्ट के अधिकारियों से पूछा जाता है तो वे खामोश हो जाते है। आरक्षित जंगल में किसी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है,यहां जंगलों में रहने वाले लोगों तक को बाहर कर दिया गया है,लेकिन मजार तक जाने और उर्स पर मेला लगाने की इजाजत वन विभाग देकर अपना दोहरा चरित्र पेश कर रहा है। रानीखेत कैंट एरिया है वहां ये मजार कैसे बन गई? जबकि, ये आर्मी एरिया है और यहां कैसे सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया गया? ऐसे ही लोहा घाट और अल्मोड़ा में सरकारी जमीनों पर कब्जा कर ये मजारें किस के आदेश पर और कैसे बनी? इस पर शासन प्रशासन खामोशी की चादर ओढ़ लेता है।
क्या कहते हैं सीएम धामी
देवभूमि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं कि वो देवभूमि का मूल स्वरूप बिगड़ने नही देंगे। यहां देवी देवता निवास करते है सनातन यहां की आध्यात्मिक सांस्कृतिक पहचान है। हम यहां नीली हरी चादर डाल कर सरकारी जमीनों पर कब्जे करने की इजाजत नहीं देंगे। हमने 536 ऐसे अवैध कब्जे हटाएं हैं।
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