देहरादून । प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय शोध समन्वय प्रमुख अजय मित्तल ने कहा कि आजादी के संघर्ष में पत्रकारों ने नारदजी के विचारों पर कार्य किया। इसमें काफी कठिनाईयां आईं, लेकिन वे अपने काम से डिगे नहीं और उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को संघर्ष, त्याग, आस्था, शक्ति का प्रतीक बना दिया। अंग्रेजों ने 1908-10 में दो ऐसे कानून बनाए थे जो कभी उन्होंने इंग्लैंड में नहीं बनाए, वह है प्रेस एक्ट व प्रेस इंसाइटमेंट टू वाइलेंस एक्ट। इन दोनों कानून के आधार पर इन्होंने भारत में प्रेस का गला घोंट दिया।
देवऋषि नारद जयंती पर रविवार को विश्व संवाद केंद्र देहरादून-उत्तराखंड की ओर से आयोजित पत्रकार सम्मान समारोह में मुख्य वक्ता के तौर पर अजय मित्तल ने कहा कि जो नार प्रदान करे वह नारद है। नार यानी दिव्य प्रकृति का ज्ञान। नारदजी ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं और भगवान विष्णु के साक्षात मानस हैं। भगवान विष्णु के मन में क्या चल रहा है, इसकी जानकारी सबसे पहले नारदजी को होती है। नारदजी तीनों लोकों में भ्रमण करते रहते हैं। देवताओं, दानव, असुर, मनुष्य, सभी में वे समान रूप से विश्वसनीय हैं। विश्वसनीयता का जो संकट आज मीडिया जगत झेल रहा है, उनको नारदजी से नारदत्व सीखना चाहिए। वो लोक मंगल में ही हमेशा व्यस्त रहते हैं। नारदजी लोक कल्याण के भाव से कार्य करते हैं।
श्री मित्तल ने कहा कि गांधीजी ने अखबारों के तीन कर्तव्य बनाए हैं। वो आज मीडिया के महत्वपूर्ण है जैसे गांधीजी के समय में थे। गांधीजी के ये तीन कसौटियाें पर खरा उतरने की कोशिश करनी चाहिए। गांधी ने जब पत्रकारिता की थी तो उन्होंने लिखा था- किसी भी समाचार पत्र का पहला उद्देश्य सावर्जनिक संवेदना काे समझना और उन्हें अभिव्यक्ति प्रदान करना है। दूसरा उद्देश्य समाज में वांछनीय भावनाओं का प्रसार करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों का निडरता पूर्वक पर्दाफाश करना है। उन्होंने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने भी पत्रकारिता-अखबारों के जरिए देश को नई दिशा-जागृति प्रदान करने की कोशिश की। इसके अलावा स्वाधीनता संग्राम के समय के महापुरुषों ने भी प्रेस का सहारा लिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने भी संकल्प साप्ताहिक और स्वतंत्र दैनिक पत्र निकाले थे। कुल मिलाकर इन सब ने संघर्षों के बीच पत्रकारिता के सहारे देश को ऐसा जागृत किया कि यहां अंग्रेज अधिक समय तक रह नहीं पाए। सरदार भगत सिंह भी पत्रकारिता में रूचि रखते थे। सुभाष चंद्र बोस, पं. दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी भी पत्रिका निकालते थे।
नारदजी के पद चिन्हों पर चलें पत्रकार, वेदांत से वैराग्य और मोक्ष की तरफ बढ़ें
कार्यक्रम अध्यक्ष मास्को स्थित भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक केन्द्र के पूर्व निदेशक और वर्तमान में सांस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली के सहयोगी संस्थाओं में कला सलाहकार के रूप में सेवा दे रही डॉ. उषा राधाकृष्ण ने देवऋषि नारदजी के पत्रकारिता विधा पर चर्चा की और कहा कि पत्रकारों को नारदजी के पद चिन्हों पर चलना चाहिए। संवाद, विवेक और निर्भीकता पत्रकार के आभूषण होते हैं।
भारतीय संस्कृति ने हमें विवेक दिया है और भारतीय संस्कृति में विनय जरूरी है, फिर विनय के बाद वीरता चाहिए। उसमें से अहम को साइड में रखना चाहिए। ईश्वर ने हमें सबकुछ दिया है, केवल उसे टटोलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति ने जो हमें विरासत में दिया है वह हमारे खून में है कि हम कहीं भी खड़े होकर बोल सकते हैं। हम कुछ भी डिबेट कर सकते हैं। हम कहीं भी जा सकते हैं और हम कुछ भी कर सकते हैं। ये चार गुण सभी को अपनाना होगा। वेदांत से वैराग्य और मोक्ष की तरफ बढ़ने को कहा।
विश्व संवाद केंद्र प्रचार तंत्र के विधाओं को आगे बढ़ाने का कर रहा काम –
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र सामाजिक समरसता प्रमुख लक्ष्मी प्रसाद जायसवाल ने कहा कि जिसके मूल में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद निरंतर रहता है ऐसे प्रचार तंत्र के विधाओं को आगे बढ़ाने का काम विश्व संवाद केंद्र करता आ रहा है। इसी श्रृंखला में नारद जयंती पर पत्रकारों का सम्मान किया गया है। देवऋषि नारद के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि मैं वृक्षों में पवित्र पीपल का वृक्ष और ऋषियों में मैं श्रेष्ठ नारद हूं। देवऋषि नारद का व्यक्तित्व आदर्शवादी है। नारदजी को पत्रकार जगत ने देव माना है। कई बार प्रगतिशील विचारधारा के लोग आरोप लगाते हैं कि मीडिया जगत में नारद जयंती का कार्यक्रम संघ विचार परिवार का योजना है मीडिया को भगवाकरण करने का। उनको शायद नहीं मालूम है कि जब भारत वर्ष में सबसे पहले और हिंदी की साप्ताहिक पत्रिका उदंत मार्तंद का 30 मई 1826 को कलकत्ता से श्रीगणेश हुआ। वह दिवस नारद जयंती का ही दिवस था। 1840 में पत्रकारिता का औपचारिक रूप से शिक्षण कार्य नागपुर के एक क्रिश्चियन कालेज में प्रारंभ हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पत्रकारिता बहुत बड़ा माध्यम था। उस समय क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों ने पत्रकारिता को आधार बनाया और पत्रिका का प्रकाशन करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन के कार्य को आगे बढ़ाया। जगत में सामाजिक समरता और एकाग्रता निर्माण करने की मीडिया की जिम्मेवारी है। इसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। पत्रकारिता में सत्य, अहिंसा, सुचिता और विश्वसनीयता आवश्यक है। नारदजी इसी आधार पर पत्रकार जगत के आराध्य हैं।
पत्रकार सम्मान समारोह का साक्षी बना आईआरडीटी सभागार-
सर्वे चौक स्थित आईआरडीटी सभागार पत्रकार सम्मान समारोह का साक्षी बना। मौका था देवऋषि नारद जयंती का। विश्व संवाद केंद्र देहरादून-उत्तराखंड की ओर से आयोजित पत्रकार सम्मान समारोह में वरिष्ठ पत्रकार निशीथ जोशी देहरादून, चिरंजीव सेमवाल उत्तरकाशी प्रेस क्लब अध्यक्ष, प्रकाश कपरूवाण जोशीमठ, अमित कुमार शर्मा हरिद्वार प्रेस क्लब अध्यक्ष, आशा प्रसाद सेमवाल गुप्तकाशी, अरविंद प्रसाद टिहरी, प्रदीप आनंद सोशल मीडिया पत्रकार सम्मानित किए गए।
प्रांत मीडिया संवाद प्रमुख बलदेव पराशर ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि इस बार पत्रकार सम्मान के लिए गढ़वाल सम्भाग के प्रत्येक जिले से एक नाम का चयन किया गया। कला गुरु निशा मार्कण्डेय के शिष्यों ने वंदे मातरम का गायन कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
इन्होंने कार्यक्रम की बढ़ाई शोभा-
पत्रकार समारोह में आरएसएस के प्रांत प्रचार प्रमुख संजय कुमार, सह प्रचार प्रमुख हेम पांडेय, विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष सुरेंद्र मित्तल, सचिव राजकुमार टांक, रीता गोयल, मनीष बागड़ी, गजेंद्र खंडूड़ी, अशोक चक्र विजेता स्व. हवलदार बहादुर सिंह बोहरा की धर्मपत्नी शांति बोहरा, प्रेम चमोला,दिनेश उपमन्यु के अलावा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार, छायाकार सहित संभ्रांत नागरिकों ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
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