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भारत बना सौर ऊर्जा का सिरमौर

जापान और जर्मनी जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक देश बन गया है। 2015 में भारत 15वें स्थान पर था। सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के कारण इसने 8 वर्ष में 6 पायदान की छलांग लगाते हुए 2023 में यह उपलब्धि हासिल की और अब उससे भी आगे जा रहा

by अरविंद मिश्र
May 22, 2024, 07:00 am IST
in भारत
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जापान को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक देश बन गया है। भारत से आगे अब सिर्फ अमेरिका और चीन हैं। बीते 8 वर्ष में भारत 6 पायदान ऊपर चढ़ा गया है। ऊर्जा क्षेत्र में काम करने वाले वैश्विक थिंकटैंक एम्बर की रिपोर्ट ‘ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यू 2024’ में इसकी पुष्टि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में भारत 6.57 टेरावाट-घंटे उत्पादन के साथ 9वें स्थान पर था। पिछले वर्ष 113.41 टेरावाट-घंटे की दर से सौर ऊर्जा उत्पादन कर भारत ने जापान को पीछे छोड़ दिया है। 2015 के मुकाबले 2023 में सौर ऊर्जा उत्पादन की दर 17 प्रतिशत अधिक रही। सौर ऊर्जा के साथ यदि पवन ऊर्जा में वृद्धि दर को भी जोड़ लें तो यह लगभग 30 प्रतिशत बैठती है।

भारत सौर ऊर्जा की ओर जिस तेजी से कदम बढ़ा रहा है, उससे वह दिन दूर नहीं लगता जब वह सौर बिजली उत्पादन में पहले पायदान पर होगा। मार्च 2024 तक भारत ने 81.81 गीगावाट (लगभग 81,813 मेगावाट) की कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता हासिल कर ली है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार, देश में सौर ऊर्जा की अनुमानित क्षमता लगभग 750 गीगावाट है। देश में जहां सौर, पवन, जल, हरित हाइड्रोजन और परमाणु ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा संसाधनों का तेजी विकास हो रहा है, वहीं यह पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भी सहायक है।

भारतीय ऊर्जा परिदृश्य

देश में बड़े जल विद्युत नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के साथ संयुक्त स्थापित क्षमता 183.49 गीगावाट है। पिछले वर्ष भारत ने अपने ऊर्जा बास्केट में 13.5 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ी है। गैर-जीवाश्म संसाधनों से जुटाई जा रही ऊर्जा में अभी भी सौर ऊर्जा अग्रणी है। इसका अनुपात लगभग 80 गीगावाट के स्तर पर पहुंच चुका है। वहीं, पवन ऊर्जा उत्पादन पिछले साल 13 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। असीमित ऊर्जा स्रोत से बनी इस स्वच्छ ऊर्जा की स्थापित क्षमता 30 जून, 2023 तक 43.7 गीगावाट थी। केंद्र सरकार 2030 तक इसे बढ़ाकर 99 गीगावाट करने के लिए प्रयासरत है। वहीं, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापित क्षमता भी 7,480 मेगावाट के स्तर पर पहुंच चुकी है। इसके अलावा, अक्षय ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोत हरित हाइड्रोजन के महत्व को समझते हुए सरकार ने जनवरी में ‘हरित हाइड्रोजन मिशन’ को मंजूरी दी है।

सरकार का लक्ष्य इस दशक के अंत तक 5 एमएमटीपीए (मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष) हरित हाइड्रोजन उत्पादन का है। सरकार ने हरित हाइड्रोजन नीति के पहले हिस्से में ठोस कदम उठाए हैं। अब हरित हाइड्रोजन तैयार करने वाली इकाइयां कच्चे माल के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा कहीं से भी और किसी से भी ले सकती हैं। साथ ही, ये कंपनियां सौर या पवन ऊर्जा संयंत्र भी लगा सकती हैं। हरित अमोनिया के निर्यात के लिए बंदरगाहों के पास बंकर बनाए जा रहे हैं। ऊर्जा आत्मनिर्भरता की इस यात्रा में देश जहां एक ओर इस दशक के अंत तक गैर-जीवाश्म स्रोत से 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करेगा, वहीं दूसरी ओर कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी आएगी। यदि हम अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता को 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत कम करने में सफल हुए, तो 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जक देश बनने का लक्ष्य आसानी से हासिल किया जा सकेगा।

मील का पत्थर

देश को सौर ऊर्जा का सिरमौर बनाने में ‘सौर ऊर्जा और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं का विकास’ योजना मील का पत्थर साबित हुई है। नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के शुरुआती वर्ष दिसंबर 2014 में इस योजना को लागू किया था। 20,000 मेगावाट क्षमता के साथ शुरू हुई इस योजना की क्षमता 2017 में बढ़ाकर 40,000 मेगावाट कर दी गई। 30 नवंबर, 2023 तक 12 राज्यों में लगभग 37,490 मेगावाट क्षमता वाले 50 सौर पार्कों की मंजूरी मिल चुकी है। इनमें कुल 10,401 मेगावाट क्षमता वाली सौर ऊर्जा परियोजनाएं चालू हो चुकी हैं। मध्य प्रदेश के रीवा में 750 मेगावाट का अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्रोजेक्ट, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में 75 मेगावाट, प्रयागराज में 50 मेगावाट, जालौन में 40 मेगावाट, छत्तीसगढ़ के भिलाई चरोदा में स्थापित 50 मेगावाट के सौर संयंत्र जैसे अनेक सौर पार्क इस परियोजना की देन हैं।

ईंधन के अक्षय स्रोतों से ऊर्जा आत्मनिर्भरता की इस उपलब्धि में केंद्र और राज्य सरकारों के एकीकृत प्रयास सबसे अहम हैं। पूरी तरह सौर ऊर्जा से जगमग गुजरात के मेहसाणा के मोढ़ेरा गांव से लेकर अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन में देश की ऊर्जामयी प्रतिबद्धता नजर आती है। सौर ऊर्जा से जुड़ी तकनीक और वित्तीय आदान-प्रदान को सुलभ बनाने के लिए भारत के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन (आईएसए) के रूप में वैश्विक पहल हुई है। आईएसए 2015 में अस्तित्व में आया था। इसने 2030 तक विश्व में सौर ऊर्जा के माध्यम से 1 ट्रिलियन वाट यानी (1,000 गीगावाट) ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।

योजनाओं से कार्य सुगम

सोलर पीवी के लिए पीएलआई योजना : सोलर फोटोवोल्टिक (पीवी) एक ऐसी हरित प्रौद्योगिकी है, जो सूरज के प्रकाश को सीधे विद्युत में परिवर्तित करती है। सौर ऊर्जा संयंत्र के सबसे महत्वपूर्ण उपकरण पीवी के लिए भारत को आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए सरकार ने उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसे उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना से संबद्ध किया है। सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में जुटी कंपनियां अब पीएलआई से जुड़ रही हैं। तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले के श्रीपेरंबदूर, तिरुनेलवेली और राजस्थान के जयपुर में सौर पीवी का उत्पादन शुरू हो चुका है।

प्रधानमंत्री कुसुम योजना : सौर ऊर्जा की लोकप्रियता की दिशा में 2019 में शुरू हुई ‘पीएम कुसुम योजना’ एक अभिनव पहल साबित हुई है। इसके अंतर्गत किसानों को अपनी जमीन पर सोलर पैनल लगाने की सुविधा मिलती है। यह योजना तीन चरणों में क्रियान्वित की जा रही है। पहले चरण में किसान, किसान उत्पादक संगठन या सहकारी समितियों को अपनी बंजर भूमि पर सौर संयंत्र लगाने की सुविधा मिलती है। दूसरे चरण में किसानों को सौर ऊर्जा पंप वितरित किए जाते हैं, जबकि तीसरे चरण में किसानों को सौर ऊर्जा से अतिरिक्त बिजली उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत सौर संयंत्र लगवाने के लिए शुरुआत में मात्र 10 प्रतिशत राशि ही खर्च करनी पड़ती है। शेष 90 प्रतिशत खर्च सरकार और बैंक संयुक्त रूप से वहन करते हैं। राज्य सरकारें सोलर पैनल पर 60 प्रतिशत सब्सिडी सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में भेजती हैं, जबकि 30 प्रतिशत सब्सिडी बैंक की ओर से दी जाती है।

पीएम सूर्य घर : घरों में होने वाले बिजली खपत में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने ‘पीएम सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना’ को मंजूरी दी है। इसके अंतर्गत एक करोड़ घरों की छत पर रूफटॉप पैनल लगाए जाएंगे। हालांकि सोलर रुफटॉप योजना पहले से ही क्रियान्वित थी, लेकिन बाजारोन्मुख होने के कारण यह लोकप्रिय नहीं हो पा रही थी। अब राज्य सरकारें लक्ष्य के साथ सीधे इस योजना को क्रियान्वित करेंगी। इस योजना के अंतर्गत एक किलोवाट के सोलर पैनल से एक घर औसतन हर माह 300 यूनिट से अधिक बिजली पैदा कर सकेगा। अनुमान है कि सिर्फ इसी योजना से सौर ऊर्जा उत्पादन 30 गीगावाट बढ़ेगा। अगले 25 वर्ष में यह 720 मिलियन टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन में कमी करेगा।

गोबर धन योजना

कृषि अपशिष्ट से जैव ईंधन तैयार करने के लिए केंद्र सरकार ने 2018-19 के बजट में गोबर धन योजना (गैल्वनाइजिंग आर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन योजना) शुरू की थी। इससे हरियाणा के कुरुक्षेत्र में निर्माणाधीन पहली सीबीजी इकाई से सालाना चार लाख टन एडवांस जैव ईंधन उत्पादित होने की उम्मीद है। इसी के साथ करनाल में अगले वर्ष तक बायो गैस संयंत्र का निर्माण भी पूरा हो जाएगा। इसमें सालाना 40,000 टन पराली की खपत होगी। इससे किसानों को पराली जलाने से छुटकारा और उन्हें आय भी होगी।

जैविक ईंधन से जुड़ी परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने 2023 में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की नींव रखी थी। इसके भारत के अलावा अमेरिका, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, ब्राजील, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात इसके प्रारंभिक प्रवर्तक हैं। कनाडा और सिंगापुर को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है। इससे जैव ईंधन से जुड़ी आधुनिक तकनीक की देश की पहुंच आसान होगी और भारत को नया निवेश आकर्षित करने में सफलता मिलेगी।

सौर पार्क योजना

12 मार्च को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े 75 मेगावाट (101 मेगावाट डीसी) क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र का उद्घाटन किया। मिर्जापुर जिले के विजयपुर ग्राम में लगभग 528 करोड़ रुपए की लागत से स्थापित इस संयंत्र से प्रतिवर्ष 13 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन होगा। इस संयंत्र की स्थापना फ्रांस की कंपनी ई.एन.जी.आई.ई. ने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की सौर पार्क योजना के अंतर्गत की है।

कृषि अपशिष्ट बेहतरीन साधन

कृषि प्रधान देश होने के बावजूद जैव ईंधन उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी मात्र 3 प्रतिशत थी, जबकि अमेरिका 55 प्रतिशत इथेनॉल उत्पादन के साथ अग्रणी है। वहीं, ब्राजील 27 प्रतिशत जैविक ईंधन का उत्पादन कर रहा है। अब भारत ने भी तेजी से इस दिशा में कदम बढ़ाया है। देश में कृषि अपशिष्ट को ऊर्जा के अक्षय स्रोत के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है। सरकार जैविक कचरे से किसानों को एक लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय उपलब्ध कराने जा रही है। यह कार्ययोजना स्वच्छ ईंधन पर आधारित सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड अफॉर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (सतत) अभियान का हिस्सा है। इसके अंतर्गत कम्प्रेस्ड बायो गैस (सीबीजी) आधारित परियोजनाओं पर दो लाख करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार, 2024 तक सीबीजी संयंत्रों में 15 एमएमटी के उत्पादन लक्ष्य के साथ लगभग 20 बिलियन डॉलर का निवेश किया जाएगा। इनमें सार्वजनिक क्षेत्र के साथ सहकारी संस्थाओं द्वारा स्थापित सीबीजी प्लांट भी शामिल हैं। शुरुआती तौर पर इन इकाइयों से डेढ़ करोड़ टन संपीड़ित जैव ईंधन यानी कम्प्रेस्ड बायो फ्यूल का उत्पादन होगा। इन इकाइयों के लिए कृषि, जंगल, पशुपालन, समुद्र और नगर पालिका से निकलने वाले कचरे की मदद से बायो गैस तैयार की जाएगी। यह तेल और परंपरागत प्राकृतिक गैस पर निर्भरता घटाएगा। दुनिया के अलग-अलग देशों में जिस प्रकार परिवहन तंत्र में संपीड़ित बायो गैस की उपयोगिता बढ़ रही है, उससे भारत के लिए यह तेल और प्राकृतिक गैस का एक बड़ा विकल्प बन कर उभरी है। भारी-भरकम तेल आयात बिल के साथ हम कुल प्राकृतिक गैस खपत का लगभग 53 प्रतिशत आयात के जरिए ही पूरा करते हैं।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक देश में प्रतिवर्ष 387.8 मिलियन टन अपशिष्ट सृजित होगा। इसमें सर्वाधिक अनुपात हरित अवशेषों का रहेगा। सामान्यत: हरित या जैव अपशिष्ट कृषि अवशेष, रसोई से निकले कचरे, खाद्य प्रसंस्करण इकाई से निकलने वाले वियोजन योग्य कचरे के रूप में होता है। भारत में पाए जाने वाले हरित अवशेष का एक बड़ा हिस्सा पशुधन आधारित अवशेष के रूप में मौजूद है। केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी विभाग की 2019 की पशु गणना के अनुसार, देश में 535.78 मिलियन पशुधन है। इससे प्रतिदिन एकत्रित होने वाले जैव अपशिष्ट में जैव ईंधन, बिजली, और जैविक खाद तैयार करने वाले सभी अवयव पाए जाते हैं।

जैविक कचरे को यदि ऊर्जा के कच्चे माल के रूप में विकसित किया जाए तो इससे प्रदूषण जनित बीमारियां भी कम होंगी। कई राज्य सरकारें कचरा प्रबंधन, पुनर्चक्रण, गैसिफिकेशन, ताप अपघटन (पाइरालिसिस) आधारित अनेक सीबीजी संयंत्र स्थापित कर रही हैं। सूखी पत्तियां, मृत शाखाएं, सूखी घास जैसे बायोमास अपशिष्ट के निपटान क्रम में पहले कचरे को उपयुक्त आकार के टुकड़ों में बांटा जाता है। इसके बाद इसे बायो गैस डाइजेस्टर के घोल में मिलाया जाता है। कोयले की ईंट या ब्रिकेट के लिए यह मिश्रण फीड स्टॉक का कार्य करता है। इसे कई जगहों पर भोजन पकाने के ईंधन के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है।

Topics: ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यू 2024वैश्विक थिंकटैंक एम्बरऊर्जा मंत्रालयSolar Energy Producing CountriesGlobal Electricity Review 2024आत्मनिर्भरताGlobal Think Tank AMBERSelf-relianceMinistry of Energyनवीकरणीय ऊर्जाrenewable energyपाञ्चजन्य विशेषसौर ऊर्जा उत्पादक देश
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