मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी पर जैव विविधता पर गंभीर संकट मंडरा रहा है और जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां तेजी से लुप्त होती जा रही हैं। जीव-जंतु और वनस्पति ही धरती पर बेहतर और जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करते हैं लेकिन प्रदूषित वातावरण और प्रकृति के बदलते मिजाज के कारण इनकी अनेक प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। अनेक शोध से यह चिंताजनक तथ्य सामने आ चुका है कि पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र बेहद खराब हो चुका है। मानवीय दखल से दूर रहने के कारण और स्थानीय जनजातीय लोगों की भूमिका के चलते धरती का केवल तीन प्रतिशत हिस्सा ही पारिस्थितिक रूप से सुरक्षित रह गया है। जैव विविधता के मुद्दों के बारे में लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाने तथा धरती पर मौजूद जंतुओं और पौधों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए प्रतिवर्ष 22 मई को एक खास थीम के साथ अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष का विषय है ‘Be part of the Plan’ (योजना का हिस्सा बनें), जो इस बात पर जोर देता है कि हम सभी व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अपने ग्रह की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के शोधकर्ताओं का मानना है कि अगले पांच दशक में जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की प्रत्येक तीन में से एक यानी एक तिहाई प्रजाति विलुप्त हो जाएगी। शोधकर्ताओं ने दुनियाभर के छह सौ स्थानों पर पांच सौ से ज्यादा प्रजातियों पर एक दशक तक अध्ययन करने के बाद पाया कि अधिकांश स्थानों पर 44 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। इस अध्ययन में विभिन्न मौसमी कारकों का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि यदि गर्मी ऐसे ही बढ़ती रही तो 2070 तक दुनियाभर में कई प्रजातियां खत्म हो जाएंगी।
ब्रिटेन स्थित ‘स्मिथसोनियन एनवायरमेंटल रिसर्च सेंटर’ के मुताबिक विश्व के केवल 2.7 प्रतिशत हिस्से में ही अप्रभावित जैव विविधता बची है, जो बिल्कुल वैसी ही है जैसी पांच सौ वर्ष पूर्व हुआ करती थी। इन क्षेत्रों में सदियों पहले जो पेड़-पौधे और जीव पाए जाते थे, वे प्रजातियां आज भी मौजूद हैं। जो अप्रभावित जैव विविधता वाला क्षेत्र बचा है, वह भी जिन-जिन देशों की सीमाओं के अंतर्गत आता है, उनमें से केवल 11 प्रतिशत क्षेत्र को ही संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। अप्रभावित जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से अधिकांश इलाके उत्तरी गोलार्ध में आते हैं, जहां मानव उपस्थिति कम रही है, लेकिन अन्य क्षेत्रों के मुकाबले ये जैव विविधता से समृद्ध नहीं थे।
‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ (आइयूसीएन) एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में वन्यजीवों और वनस्पतियों की हजारों प्रजातियां संकट में हैं और आने वाले समय में इनके विलुप्त होने की संख्या तथा दर में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है। आइयूसीएन ने करीब एक लाख पैंतीस हजार प्रजातियों का आकलन करने के बाद इनमें से सैंतीस हजार चार सौ प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर मानते हुए खतरे की सूची में शामिल किया था। आइयूसीएन के अनुसार नौ सौ से ज्यादा जैव प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और 37 हजार से ज्यादा प्रजातियों पर विलुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ क्राइम रिपोर्ट के मुताबिक वन्यजीवों की तस्करी भी दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरी है। रिपोर्ट के मुताबिक सर्वाधिक तस्करी स्तनधारी जीवों की होती है। वन्यजीव तस्करी में 22 प्रतिशत तस्करी के मामले रेंगने वाले जीवों के और 10 प्रतिशत पक्षियों के होते हैं जबकि पेड़-पौधों की तस्करी का हिस्सा 14.3 फीसद है।
‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड बर्ड्स’ नामक एक रिपोर्ट में यह तथ्य भी सामने आ चुका है कि दुनिया में पक्षियों की करीब 39 प्रतिशत प्रजातियों की संख्या स्थायी है और मात्र 6 प्रतिशत प्रजातियां ही ऐसी हैं, जिनकी संख्या बढ़ रही है, जबकि 48 प्रतिशत प्रजातियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। पक्षियों की प्रजातियों की संख्या में गिरावट को भारत के संदर्भ में देखें तो भारत में जहां 14 प्रतिशत प्रजातियों की संख्या में वृद्धि हुई है, वहीं केवल 6 प्रतिशत प्रजातियों की संख्या ही स्थिर है जबकि 80 प्रतिशत प्रजातियां कम हुई हैं। इनमें से 50 प्रतिशत प्रजातियों की संख्या में भारी गिरावट और 30 प्रतिशत प्रजातियों में कम गिरावट दर्ज की गई है। सालाना पक्षी गणना में अब प्रतिवर्ष पक्षियों की संख्या और विविधता में गिरावट आ रही है, जिसका बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन और जंगलों का कटना है। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में पक्षियों पर हुए शोध के नतीजे भी चौंकाने वाले हैं। वहां वन क्षेत्रों में मानवीय दखल, वनों की कटाई और तेजी से बढ़ते प्रदूषण के कारण पक्षियों की संख्या में 60-80 प्रतिशत तक की कमी आई है।
पर्यावरण वैज्ञानिकों के मुताबिक जैव विविधता के क्षरण का सीधा असर भविष्य में कृषि, खाद्य पैदावार इत्यादि पर पड़ेगा। इसलिए पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी है कि हम पर्यावरणीय संतुलन को न बिगड़ने दें। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस प्रकार जंगलों में अतिक्रमण, कटाई, बढ़ता प्रदूषण और पर्यटन के नाम पर गैर जरूरी गतिविधयों के कारण पूरी दुनिया में जैव विविधता पर संकट मंडरा रहा है, वह पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का स्पष्ट संकेत है और यदि इसमें सुधार के लिए शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में बड़े नुकसान के तौर पर इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। विकास के नाम पर यदि वनों की कटाई बदस्तूर जारी रही और जीव-जंतुओं तथा पक्षियों से उनके आवास छीने जाते रहे तो ये प्रजातियां धरती से एक-एक कर लुप्त होती जाएंगी और भविष्य में इससे पैदा होने वाली भयावह समस्याओं और खतरों का सामना समस्त मानव जाति को ही करना होगा।
बहरहाल, शोधकर्ताओं का पृथ्वी पर जैव विविधता के अस्तित्व पर मंडराते संकट को लेकर कहना है कि अधिकांश प्रजातियां मानव शिकार के कारण लुप्त हुई हैं जबकि कुछ अन्य कारणों में दूसरे जानवरों का हमला और बीमारियां शामिल हैं। हालांकि उपग्रहों से मिली तस्वीरों के आधार पर शोधकर्ताओं का मानना है कि धरती के ऐसे बीस फीसद हिस्से की जैव विविधता को बचाया जा सकता है, जहां अभी पांच या उससे कम बड़े जानवर ही गायब हुए हैं लेकिन इसके लिए मानव प्रभाव से अछूते क्षेत्रों में कुछ प्रजातियों की बसावट बढ़ानी होगी ताकि पारिस्थितिकीय तंत्र में असंतुलन पैदा न हो। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही गर्मी से भी जैव विविधता खतरे में पड़ी है। जैव विविधता पर संकट यदि इसी प्रकार मंडराता रहा तो धरती से प्राणी जगत का खात्मा होने में सैकड़ों साल नहीं लगने वाले।
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