राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता के लिए तन, मन और धन से निरंतर कार्य करते हैं। गत 3 मई को कोटा जिले की इटावा तहसील में स्वयंसेवकों ने एक ऐसा कार्य किया, जिसकी खूब चर्चा हुई।
इस दिन इटावा में रहने वाले गाड़िया लोहार समाज के बाबूलाल की पुत्री का विवाह था। इसमें समरसता का संदेश देते हुए स्वयंसेवकों ने कन्यादान किया, बारातियों का स्वागत कर भोजन-व्यवस्था संभाली तथा बाद में गाड़िया लोहार समाज के साथ भोजन किया। इस अवसर पर जिला संघचालक ने कहा कि आप (गाड़िया लोहार) और हम अलग नहीं हैं। आपके और हमारे महापुरुष एक हैं।
हमारा रक्त का संबंध है। उन्होंने कहा कि विमुक्त, घुमंतू, अर्द्धघुमंतू, जनजाति समाज को मुख्यधारा में लाना आवश्यक है। बता दें कि गाड़िया लोहार समाज के पूर्वज चित्तौड़ शासकों के सहयोगी के रूप में लोहे का काम करते थे।
वे 16वीं शताब्दी तक मेवाड़ राज्य का हिस्सा थे और सामान्य जीवन जी रहे थे, लेकिन 1568 में चित्तौड़ पर अकबर के हमले के बाद ये लोग वहां से निकल गए और प्रतिज्ञा की कि जब तक चित्तौड़ पुराने वैभव को प्राप्त नहीं कर लेगा, हम घर बनाकर नहीं रहेंगे, पलंग पर नहीं सोएंगे।
तब से लेकर आज तक ये लोग अपनी गाड़ियों में ही जीवन- यापन करते हैं। इसीलिए इन्हें गाड़िया लोहार कहा जाता है। ये लोहे का सामान बनाने में कुशल होते हैं। महाराणा सांगा के समय सेना के लिए हथियार बनाना व उनकी मरम्मत करना ही इनका काम था।
बाद में जब अंग्रेजों ने बिना लाइसेंस शस्त्रों को रखने पर प्रतिबंध लगा दिया, तब से ये कृषि उपकरण व घरेलू उपयोग की वस्तुएं जैसे कुल्हाड़ी, फावड़ा, तगारी, तवा, कढ़ाई, चिमटा, बाल्टी, गेट आदि बनाने लगे।
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