समाज के लिए नर्सों के योगदान को चिन्हित करने के लिए प्रतिवर्ष 12 मई को विश्व नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल की स्मृति में दुनियाभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष यह दिवस ‘हमारी नर्सें, हमारा भविष्य, देखभाल की आर्थिक शक्ति’ थीम के साथ मनाया जा रहा है।
इस विषय के निर्धारण का उद्देश्य नर्सिंग और इसके महत्व के बारे में लोगों की धारणाओं को बदलना है। दरअसल नर्सिंग प्रायः वित्तीय सहायता की कमी के कारण बाधित होती है, इसलिए यह विषय इसे बदलने में मदद करने के प्रयासों के लिए निर्धारित है। यह विषय कोरोना महामारी से सीखे गए सबक पर भी आधारित है और उभरती चुनौतियों से निपटने तथा विश्वभर में स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए स्वास्थ्य देखभाल को आगे बढ़ाने की वैश्विक आकांक्षाओं को रेखांकित करता है। नर्सों की सराहनीय सेवा को मान्यता प्रदान करने हेतु भारत में परिवार एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ की शुरूआत की गई थी, जिसका वितरण प्रतिवर्ष इसी दिन किया जाता है। इस अवसर पर प्रतिवर्ष देश में महामहिम राष्ट्रपति नर्सिंग कर्मियों को उनकी ईमानदारी, समर्पण तथा करूणा के साथ प्रदान की गई निःस्वार्थ सेवा हेतु राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार से सम्मानित करते हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय 1973 से लेकर अब तक 250 से भी अधिक नर्सों को इस पुरस्कार से सम्मानित कर चुका है। इस पुरस्कार में 50 हजार रुपये नकद, प्रशस्ति पत्र तथा मैडल प्रदान किया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा जैसे कई देशों में तो ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ का आयोजन पूरे एक सप्ताह तक किया जाता है। यह दिवस मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों के अमूल्य योगदान, मेहनत और समर्पण के लिए उन्हें सराहना मिले तथा उत्कृष्ट कार्य करने वाली नर्सों को पुरस्कृत किया जाए। वास्तव में यह दिवस स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों के योगदान को सम्मानित करने तथा उनसे संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस का पहला प्रस्ताव 1953 में डोरोथी सुथरलैंड (यूएस स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण विभाग) द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजेनहोवर द्वारा मान्यता प्रदान की गई थी। ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ पहली बार 1965 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेस (आईसीएन) द्वारा मनाया गया और जनवरी 1974 से यह प्रतिवर्ष 12 मई को नोबल नर्सिंग सेवा की शुरूआत करने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाने लगा, जिनका जन्म 12 मई 1820 को हुआ था।
नर्सें किसी भी राष्ट्र की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, फिर चाहे वह सार्वजनिक हो अथवा निजी। चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए नर्सें डॉक्टरों के साथ सांझेदारी करती हैं और चिकित्सा संस्थान में प्रवेश करने से लेकर बाहर निकलने तक अपने मरीजों की भलाई के लिए जिम्मेदार रहती हैं। वे मरीजों के स्वास्थ्य और महत्वपूर्ण संकेतों की निगरानी करती हैं। यही कारण है कि नर्सिंग का पेशा दुनियाभर में सबसे भरोसेमंद पेशों में से एक पेशा माना जाता है। कोरोना काल में नर्सों की अहम भूमिका से इतर देखें तो सामान्य दिनों में भी जब पेशेवर डॉक्टर दूसरे मरीजों को देखने में व्यस्त रहते हैं, तब अस्पतालों में भर्ती मरीजों की चौबीसों घंटे देखभाल का उत्तरदायित्व नर्सों पर ही रहता है। इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि वे रोगियों का मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ उनकी बीमारी को नियंत्रित करने में मित्रवत व्यवहार करें तथा उनके प्रति स्नेहशीलता का परिचय दें। यही कारण है कि रोगियों की उचित देखभाल के लिए नर्सों का शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक स्तर पर शिक्षित, प्रशिक्षित तथा अनुभवी होना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। नर्सिंग एक ऐसा कार्यक्षेत्र है, जिससे जुड़े लोग कभी बेरोजगार नहीं रहते। सरकारों व निजी अस्पतालों, सैन्य बलों, नर्सिंग होम, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में ऐसे लोगों को रोजगार उपलब्ध हो ही जाता है। वैसे नर्सों का कार्य सिर्फ मरीजों की देखभाल तक ही सीमित नहीं होता बल्कि योग्य नर्सों के लिए शैक्षिक, प्रशासनिक एवं शोध कार्यों से संबंधित अवसर भी उपलब्ध होते हैं।
दुनिया में अधिकांश देशों में आज भी प्रशिक्षित नर्सों की भारी कमी चल रही है लेकिन विकासशील देशों में यह कमी और भी अधिक देखने को मिल रही है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छे वेतनमान और सुविधाओं के लालच में आज भी विकासशील देशों से बड़ी संख्या में नर्सें विकसित देशों में नौकरी के लिए जाती हैं, जिससे विकासशील देशों को प्रशिक्षित नर्सों की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में अमीर और गरीब दोनों प्रकार के देशों में नर्सों की कमी चल रही है। विकसित देश अपने यहां नर्सों की कमी को अन्य देशों से नर्सों को बुलाकर पूरा कर लेते हैं और उनको वहां पर अच्छा वेतन और सुविधाएं देते हैं, जिस कारण नर्सें विकसित देशों में जाने में देरी नहीं करती। दूसरी ओर विकासशील देशों में नर्सों को अधिक वेतन और सुविधाओं की कमी रहती है और आगे का भविष्य भी अधिक उज्ज्वल नहीं दिखाई देता, जिसके कारण वे विकसित देशों के बुलावे पर नौकरी के लिए चली जाती हैं। भारत में महानगरों तथा बड़े शहरों में चिकित्सा व्यवस्था कुछ ठीक होने के कारण इन इलाकों में नर्सों की संख्या में इतनी कमी नहीं है, जितनी कि छोटे शहरों और गांवों में है। किसी भी देश में नर्सों की कमी उस देश की खराब चिकित्सा व्यवस्था को बताती है। नर्सों की कमी का सीधा प्रभाव नवजात शिशु और बाल मृत्यु दर पर पड़ता है।
अच्छे वेतन और सुविधाओं के लिए पहले जितनी अधिक संख्या में प्रशिक्षित नर्सें विदेश जाती थी, आज उनकी संख्या में कमी आई है। दरअसल आज सरकारी अस्पतालों में नर्सों को अच्छा वेतन और अन्य सुविधाएं मिल रही हैं, जिससे उनकी स्थिति सुदृढ़ हुई है और यही कारण है कि भारत से प्रशिक्षित नर्सों का पलायन काफी हद तक रूका है। हालांकि तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि कुछ राज्यों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों में नर्सों की स्थिति आज भी संतोषजनक नहीं है, जहां उन्हें लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है और फिर भी वे सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाती, जिनकी वे हकदार हैं। भारत में विदेशों के लिए नर्सों के पलायन में पहले की अपेक्षा कमी आने के बावजूद रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण रोगी और नर्स के अनुपात में अंतर बढ़ा है। कुछ समय पूर्व तक विदेशों में शानदार ऑफर्स के चलते देश से बड़ी संख्या से नर्सिंग प्रतिभाओं का पलायन हुआ, जिसके चलते हमारे यहां नर्सिंग पेशेवरों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई किन्तु कुछ समय से इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा देश में नर्सिंग व्यवस्था को पुनर्जीवित करने तथा नर्सों की कमी के मामले में स्थिति में सुधार के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, काबिले तारीफ हैं।
देश में इस समय करीब 1100 की आबादी पर एक नर्स है। हालांकि विश्वभर में प्रशिक्षित नर्सों की मांग को देखते हुए भारत में भी युवाओं का इस पेशे की ओर रूझान काफी बढ़ा है। कुछ समय पहले तक नर्सिंग क्षेत्र पर महिलाओं का ही एकाधिकार माना जाता था लेकिन अब महिलाओं के साथ पुरूष भी इस क्षेत्र में भागीदारी कर रहे हैं। नर्सिंग न केवल दुनियाभर में एक सम्मानजनक पेशा माना जाता है बल्कि इसे दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य पेशे के रूप में भी जाना जाता है। यही कारण है कि सरकारों द्वारा भी नर्सिंग सेक्टर को प्रोत्साहन देने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं और अब देशभर में कई और जनरल नर्सिंग मिडवाइफरी (जीएनएम) तथा ऑग्जिलरी नर्सिंग मिडवाइफरी (एएनएम) कॉलेज खोले जाने की योजना है ताकि देश में प्रशिक्षित नर्सों की कमी को पूरा किया जा सके।
(लेखक 34 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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